आज के समय में सोशल मीडिया (Social Media) अपने विचार व्यक्त करने का और उसे अनगिनत लोगों तक पहुंचाने का एक बेहतरीन माध्यम बन गया है. अपनी ख़ुशी, दुःख, दर्द, समस्या, अचीवमेंट, परेशानी यानी A टू Z कुछ भी, कभी भी साझा करना हो, सोशल मीडिया आपकी सेवा में हमेशा उपस्थित रहता है. तभी तो आए दिन हमें कुछ न कुछ ट्रेंडिंग और चटपटा मसाला इंटरनेट पर दिख ही जाता है. अब जब किसी की बात निकली है तो दूर तलक तो जाएगी ही, लेकिन क्या कभी सोचा है कि सोशल मीडिया पर आपकी बात को इतनी दूर तलक पहुंचाता कौन है. जिसकी वजह से देश-विदेश से लोग आपके कंटेंट को पढ़ या देख पाते हैं.  

दरअसल, ये सारा किया धरा हैशटैग का है. हां, वही हैशटैग जिसे आप ट्विटर के ट्रेंड्स में, इंस्टाग्राम के पोस्ट्स में, फ़ेसबुक के वीडियोज़ में आदि हर जगह देखते हैं. अगर यूं कह लें कि सोशल मीडिया की दुनिया पर असली राज़ इसी का चल रहा है, तो भी ग़लत नहीं होगा. 

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चलिए जान लेते हैं कि हैशटैग में क्या सुपरपॉवर होती हैं, जिससे वो ऐसा कर पाता है. ये कैसे काम करता है और इसको लाने के पीछे की कहानी क्या है. कहने का मतलब ये है कि आज हम आपको इसका पूरा कच्चा-चिट्ठा बताएंगे. 

हैशटैग का कॉन्सेप्ट

हैशटैग पहली बार कहां इस्तेमाल किया गया था?

साल 1988 में पहला हैश सिंबल इंटरनेट रिले चैट (IRC) पर उन ग्रुप्स और टॉपिक्स को लेबल करने के लिए यूज़ किया गया था जो पूरे नेटवर्क पर उपलब्ध थे. उनका इस्तेमाल एक जैसे मैसेजस और कंटेंट को ग्रुप करने के लिए जाता था ताकि यूज़र्स को आसानी से वो जानकारी मिल सके, जिसकी वो तलाश कर रहे थे. 

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हमेशा से ट्विटर में नहीं था हैशटैग फ़ीचर

आज के समय में ट्विटर का मतलब हैशटैग. यानी ट्विटर की पूरी दुनिया ही हैशटैग पर टिकी है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. शुरुआती दिनों में ट्विटर पर अनाप-शनाप कंटेंट ही देखने को मिलते थे. इस प्रॉब्लम का हल निकालने के लिए सैन फ्रांसिस्को के पूर्व गूगल डेवलपर क्रिस मेसिना ने IRC से इंस्पिरेशन लेते हुए 23 अगस्त 2007 को अपना पहला ट्विटर हैशटैग का कॉन्सेप्ट जारी किया. उनका किया गया पहला ट्वीट ये रहा. 

ट्विटर ने रिजेक्ट कर दिया था हैशटैग का आइडिया  

क्रिस मेसिना ने हैशटैग का इस्तेमाल तो किया, लेकिन उस समय लोगों ने इसे नज़र अंदाज़ कर दिया. लेकिन क्रिस चुप बैठने वालों में से नहीं थे. वो अपना ये आइडिया ट्विटर के को-फाउंडर बिज़ स्टोन के पास ले गए. पर बिज़ ने भी उनके इस आइडिया को कुछ ख़ास भाव नहीं दिया. इसके बाद भी क्रिस रुके नहीं. वो लगातार अपने ट्वीट्स में हैशटैग का इस्तेमाल करते रहे. साल 2007 में क्रिस ने हैशटैग को नोटिस करवाने का एक अवसर ढूंढ ही लिया. उस दौरान कैलीफोर्निया का एक निवासी Nate Ritter लगातार जंगल में लगी आग के बारे में ट्वीट कर रहा था. मेसिना ने उस वक्त ये भी नोटिस किया कि Flickr पर SanDiegoFire एक टैग की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. इसने मेसिना को Ritter तक पहुंचने और सभी इससे जुड़े ट्वीट्स पर #SanDiegoFire के उपयोग के लिए प्रेरित किया. 

फ़िर क्या था. Ritter के ट्वीट्स इतने लोगों तक पहुंचे कि ट्विटर यूज़र्स ने इससे सम्बंधित कंटेंट पोस्ट करने के लिए इसी हैशटैग का कॉन्सेप्ट इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. साल 2009 में ट्विटर को आख़िरकार हैशटैग की पॉवर पता चली. नतीजा ये हुआ कि ट्विटर ने एक सर्च टूल का फ़ीचर जोड़ दिया ताकि यूज़र्स ये देख सकें कि एक विशेष हैशटैग को उस समय कौन-कौन यूज़ कर रहा है. इसके अगले साल ट्विटर ने ‘ट्रेंडिंग टॉपिक्स‘ का भी फ़ीचर जोड़ा, जिसमें एक विशेष समय पर चलने वाले पॉपुलर हैशटैग को दिखाया जाने लगा. (हैशटैग का कॉन्सेप्ट)

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बाकी प्लेटफॉर्म ने भी अपनाया 

इसके बाद तो सोशल मीडिया पर हैशटैग के ऐसे जलवे दिखने लगे कि पूछो मत. फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं बचा, जहां ये स्थापित न हुआ हो. आज के समय में अपनी कहानियां कहने और उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए हैशटैग एक पॉवरफ़ुल टूल बन चुका है. कैटेगरी चाहे जो भी हो, एक ही हैशटैग के इस्तेमाल से ये पता किया जा सकता है कि कौन किसके बारे में क्या लिख या बोल रहा है. एक हैशटैग का यूजर्स पर कितना प्रभाव है, इसकी जानकारी एनालिटिक्स टूल से देखी जा सकती है. उदाहरण के तौर पर #MeToo का इस्तेमाल यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाता है. इस हैशटैग के ज़रिए कई लोगों ने अपनी कहानियां इंटरनेट पर बयां की थीं. (हैशटैग का कॉन्सेप्ट)

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तो भईया हैशटैग को कमज़ोर समझने की ग़लती कतई न करना.