मुंबई, सपनों की नगरी या माया नगरी या यूं कहें कि कभी न रुकने, कभी न थमने वाली मुंबई. इस शहर का नाम आते ही बड़ी-बड़ी ऊंची इमारतें आंखों के सामने आ जाती हैं. लेकिन एक चीज़ और है जो मुंबई के नाम के साथ दिमाग में आती है और वो हैं इस शहर के झुग्गी-झोपड़ी या स्लम एरिया. स्लम के नाम से ही गन्दी, तंग गलियां, खुली नालियां, छोटे-छोटे घर और उनके आस-पास कूड़े का ढेर ऐसा ही नज़ारा आता है.
मगर आज हम आपको जिस ख़बर के बारे में बताने जा रहे हैं वो स्लम के बारे में आपके नज़रिये को बदलने का काम करेगी. जी हां मुंबई में एक स्लम एरिया ऐसा भी है, जिसको इटली के एक गांव Positano (पोजितानो) के समतुल्य माना जा रहा है.
मुंबई का ये स्लम एरिया असल्फा स्लम के नाम से जाना जाता है और ये घाटकोपर इलाके में स्थित है. ये असल्फा स्लम इसलिए ख़ास है क्योंकि इसको अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल करके इतना रंगीन बना दिया गया है कि कोई भी इस देखने के बाद इसे स्लम कहेगा ही नहीं. इस स्लम की दीवारों को देखकर कोई भी हैरान हो जाएगा और विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा कि क्या यह सच में एक स्लम है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हमेशा से ये असल्फा स्लम ऐसा साफ़-सुथरा और रंगीन नहीं था, बल्कि झुग्गी-झोपड़ी वाली इस बस्ती के रंग-रूप को बदलने के पीछे ‘चल रंग दे’ नाम के एनजीओ का हाथ है. ये एनजीओ ऐसी बस्तियों के घरों की दीवारों को खूबसूरत रंगों से संवारने का काम करता है.
इस एनजीओ की हेड देदीप्य रेड्डी के मन में इस स्लम को दशा को बदलने का विचार आया. उन्होंने मुंबई मेट्रो और पेंट बनानेवाली कंपनी स्नोसेम के साथ इस नेक काम को करने का फ़ैसला किया. इसके बाद देदीप्य रेड्डी ने असल्फा बस्ती में रहने वाले लोगों से इस बारे में बात की और उसके बाद अपनी टीम के साथ मिलकर एक वेबसाइट बनाई. फिर वेबसाइट के ज़रिये बस्ती में इस काम को अंजाम देने के लिए वॉलेंटियर्स ढूंढने की शुरुआत कर दी. वॉलेंटियर्स के रूप में इस काम को करने के लिए सीनियर सिटिजन तक आगे आये और इन सबने मिलकर असल्फा बस्ती की सभी 175 दीवारों को अलग-अलग रंगों में रंग दिया.
गौरतलब है कि इस सराहनीय काम को करने के लिए 750 लोगों ने आर्थिक रूप से मदद की. इस बस्ती की सभी दीवारों को रंगने में लगभग 400 लीटर पेंट इस्तेमाल हुआ. लेकिन जब बस्ती की रंगाई-पुताई का काम पूरा हुआ, तो इसकी रंगत ही बदल चुकी थी. इसकी कलाकारी ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. इतना ही नहीं मेट्रो से आने-जाने वाले लोगों को भी इसने लुभाया. अब तो आलम ये है कि कई विदेशी टूरिस्ट भी यहां आकर फ़ोटो खिंचवाते और खींचते नज़र आ जाते हैं. इस स्लम को सुन्दर बनाने वाले लोगों ने यहां की दीवारों को सिर्फ़ रंगा ही नहीं, बल्कि दीवारों पर तरह-तरह की कलाकृतियां भी बनाई हैं.
एनजीओ ‘चल रंग दे’ की हेड देदीप्य रेड्डी ने बताया कि अब उनका अगला लक्ष्य बांद्रा के स्लम को खूबसूरत रंगों से सजाना है.