Record for Losing 100 Election : यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए जमकर तैयारियां भी की जा रही हैं. आम भाषणों से लेकर डिजिटल तरीक़ों के ज़रिए प्रचार अभियान का काम किया जा रहा है. वहीं, चुनावी तारिख़ की ओर बढ़ता समय यूपी राजनीति से जुड़ी कई दिलचस्प ख़बरों को भी उछाल रहा है जैसे टिकट न मिलने पर रोते-बिलखते और एक पार्टी से नाराज़ होकर दूसरी पार्टी में शामिल होते नेता. 

 इस बीच एक दिलचस्प बात ये सामने आई है कि इस चुनाव में यूपी एक ऐसा भी शख़्स हिस्सा ले रहा है जिसका उद्देश्य चुनाव जीतना नहीं बल्कि हारना है. जी हां, सही सुना आपने, यूपी के 74 वर्षीय एक बुज़ुर्ग चुनाव हारने में शतक लगाना चाहते हैं. आइये, जानते हैं कि कौन हैं ये बुज़ुर्ग और क्या है इनकी पूरी चुनावी कहानी (Record for Losing 100 Election).  

आइये, अब विस्तार से बताते हैं उस शख़्स के बारे में जो 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड (Record for Losing 100 Election) बनाना चाहता है. 

हसनूराम अंबेडकरी

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हम जिस बुज़ुर्ग की बात कर रहे हैं उनका नाम है हसनूराम अंबेडकरी. हसनूराम यूपी के आगरा शहर के रहने वाले हैं और उनकी उम्र 74 वर्ष है. इस साल होने जा रहे यूपी विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने आगरा शहर की खेरागढ़ सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है और इसके लिए कलेक्ट्रेट ऑफ़िस में पर्चा भी डाल दिया है.  

हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं  

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जानकारी के अनुसार, हसनूराम अंबेडकरी 1985 से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन वो आजतक एक भी चुनाव जीते नहीं हैं. इनके चुनावी संघर्ष की ख़ास बात ये है कि ये चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाने के लिए चुनाव लड़ते हैं. अब तक हसनूराम अंबेडकरी 93वें बार चुनाव हार चुके हैं और अब 94वें बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. 

 मीडिया के अनुसार, वो एक मनरेगा मज़दूर हैं. हालांकि, उनकी कोई स्कूली शिक्षा नहीं है लेकिन वो हिंदी, उर्दू व अंग्रेज़ी पढ़ व लिख सकते हैं. वहीं, वो कभी राजस्व विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने नौकरी से इस्तिफ़ा दे दिया था. 
वो कहते हैं कि “मैं जीतने के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए चुनाव लड़ता हूं. जीतने वाले नेता लोगों को भूल जाते हैं. मैं 100 बार चुनाव हारकर रिकॉर्ड (Record for Losing 100 Election) बनाना चाहता हूं. मुझे परवाह नहीं कि मेरे आगे कौन खड़ा है. मैं बाबा साहेब अंबेडकर की विचारधारा का पालन करता हूं.”

किया था राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन 

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हसनूराम अंबेडकरी कई तरह के चुनाव में हिस्सा ले चुके हैं जिनमें ग्राम पंचायत, सांसद, विधायक व एमएलसी शामिल हैं. इसके अलावा, उन्होंने 1988 में राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन किया था, हालांकि उनका ये नामांकन खारिज कर दिया गया था. 1989 में उन्होंने फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें 36 हज़ार वोट मिले थे. कहा जाता है कि उन्होंने आगरा और फतेहपुर सिकरी से 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वो अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए थे. साथ ही उन्होंने 2021 में ज़िला पंचायत का चुनाव भी लड़ा था.  

चुभ गई थी एक बात

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मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो वो कभी बामसेफ़ के कार्यकर्ता रह चुके हैं और साथ ही कुछ समय के लिए बसपा से भी जुड़े थे. वहीं, कहा जाता है कि जब उन्होंने 1985 में पार्टी से टिकट मांगा, तो उनका मज़ाक बनाया गया था और साथ ही ये भी कहा गया कि “तुम्हें तुम्हारी पत्नी भी वोट नहीं देगी”. वो बात हसनूराम को इतनी चुभी वो 1985 से लगातार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते आ रहे हैं.