Groom Market In Bihar: बाज़ार वो जगह होती है, जहां लोग सामानों की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए इकट्ठा होते हैं. कपड़ा बाज़ार, सब्ज़ी बाज़ार, शेयर बाज़ार जैसे मार्केट्स के बारे में आप जानते ही होंगे. मगर क्या कभी आपने ‘दूल्हों के बाज़ार’ (Groom Market) के बारे में सुना है?

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Groom Market In Bihar

जी हां, आप सही सुन रहे हैं. बिहार (Bihar) के मधुबनी (Madhubani) में एक ऐसा ही बाज़ार सजता है. यहां दूल्हे बिकने के लिए खड़े होते हैं और लड़की वाले उनके लिए बोली लगाते हैं. दूल्हों के इस सालाना बाज़ार को ‘सौराठ सभा’ (Saurath Sabha) कहते हैं.

लड़की वाले लड़कियों को साथ लेकर आते हैं

बिहार के मधुबनी जिले में एक सौराठ नाम का गांव है. यहीं पर दूल्हों का बज़ार लगता है. इसलिए इसे सौराठ सभा कहते हैं. यहां लड़की वाले लड़कियों के साथ आते हैं. फिर वो बाज़ार में बैठे दूल्हे में से बेहतर दूल्हे का चुनाव अपनी बेटी के लिए करते हैं. 

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चुनाव के लिए वो लड़के की क्वालिफिकेशन, घर-परिवार, व्यवहार और जन्म पत्री वगैरह देखते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक़, लड़की वाले दूल्हों को दूर से ही देखते हैं, ताकि कोई दूसरा समझ न पाए. एक बार अगर वो दूल्हा पसंद कर लेते हैं, तो फिर एक मिथिला गमछा उस पर डाल देते हैं. ताकि सबको मालूम पड़ जाए कि अमुक दूल्हा उन्होंने सेलेक्ट कर लिया है.

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सब सही होने पर अगर लड़का-लड़की भी एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं, तो आगे की बातचीत का जिम्मा परिवार के पुरूष सदस्यों का ही होता है. बातचीत क्या, इसमें दहेज की बात होती है. लड़के की जैसी क्वालिफ़िकेश होगी, उसके हिसाब से दाम तय होगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां बोली तक लगती है. जैसा दूल्हा वैसी बोली. डॉक्टर, इंजीनियर्स के लिए तो काफ़ी दहेज देना पड़ता है.

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700 साल पुरानी है ये प्रथा

कहते हैं सौराठ सभा की ये प्रथा 700 साल पुरानी है. इसकी शुरुआत कर्नाट वंश के राजा हरि सिंह ने की थी. जिसका उद्देश्य था अलग-अलग गोत्र में शादी करवाना और दहेज रहित विवाह करवाना. राजा ने पंजीकरण व्यवस्था की शुरुआत भी की थी. पंजीकार का दायित्व था कि वे एरिया के लोगों के कुल-खानदान के बारे में जानकारी इकट्ठा कर उसे रजिस्टर में दर्ज करें. इससे ये पता चल जाता था कि अमुक परिवार किस कुल या गोत्र का है. इस सभा में सात पीढ़ियों से रक्त संबंध और रक्त समूह पाए जाने पर विवाह की अनुमति नहीं है.

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गौर करने वाली बात है कि इसकी प्रथा की शुरुआत में दहेज रहित विवाह करवाना भी शामिल था. मगर समय के साथ ये उद्देश्य पीछे छूट गया. पहले की तरह ये सभा अब दहेज रहित नहीं रही. यहां धड़ल्ले से लड़के वाले पैसा मांगते हैं और लड़की वाले बढ़िया दूल्हे के लिए दहेज देने को भी तैयार रहते.