राधा मात्र एक नाम नहीं जो कृष्ण के पूर्व हैं. राधा मात्र एक प्रेम स्तम्भ नहीं, जो कदम्ब के नीचे कृष्ण के संग सोची जाती हैं. राधा एक आध्यात्मिक पृष्ठ है, जहां द्वैत से अद्वैत का मिलन है. राधा एक सम्पूर्ण काल का उद्गम हैं, जो कृष्ण रुपी समुद्र से मिलती हैं. श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं और विश्व में प्रेम का प्रतिमान बनकर बस गईं. जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी.यही वजह है कि आज भी हर जगह श्रीकृष्ण राधारानी के संग ही नज़र आते हैं.
प्रेम कभी भी शरीर की अवधारणा में नहीं सिमट सकता. प्रेम वह अनुभूति है, जिसमें दूर होकर भी साथ होने का एहसास निरंतर होता है. न उम्र, न जाति, न ऊंच-नीच. प्रेम सभी बन्धनों से परे एक आत्मशक्ति है, जहां कुछ न होकर भी सब कुछ होता है. इतने अतुलित और असीम प्रेम के बावजूद राधा और श्रीकृष्ण का विवाह क्यों नहीं हो सका, ये सवाल हमारे जेहन में उठता है. ये बात तो हम अकसर सुनते आए हैं कि राधा और कृष्ण केवल प्रेमी-प्रेमिका थे. उन दोनों का वैवाहिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक व अलौकिक रिश्ता था. लेकिन ये भी सच है कि इस बारे में कोई एक प्रमाण नहीं है. हर जगह अलग-अलग व्याख्याएं दी गई हैं.
श्रीकृष्ण और राधा के अतुलनीय प्रेम की गहराई को दर्शाते कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में दिए गए है. उन्हीं के अनुसार, एक बार राधारानी ने श्रीकृष्ण से पूछा- हे कृष्ण! तुम प्रेम तो मुझसे करते हो, परंतु तुमने विवाह मुझसे नहीं किया, ऐसा क्यों? मैं अच्छे से जानती हूं, तुम साक्षात भगवान ही हो और तुम कुछ भी कर सकते हो, भाग्य का लिखा बदलने में तुम सक्षम हो, फिर भी तुमने रुक्मणी से शादी की, मुझसे नहीं. राधा की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- हे राधे, विवाह के लिए दो अलग-अलग व्यक्तियों की आवश्यकता होती है. तुम मुझे यह बताओ कि राधा और कृष्ण में दूसरा कौन है? हम तो एक ही हैं, फिर हमें विवाह की क्या आवश्यकता है!
कहते हैं कि नारद जी के शाप के कारण राधा-कृष्ण को विरह सहना पड़ा. राधा और रूक्मिणी दोनों ही माता लक्ष्मी का अंश हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने नारद जी की परीक्षा लेने के लिए अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया. उस नगर के राजा ने अपनी रूपवती पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में नारद मुनि भी पहुंचे और कामदेव के प्रभाव से राजकुमारी पर मोहित हो गए. वह भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे कि प्रभु मुझे आप सुंदर रूप प्रदान करें, क्योंकि मुझे राजकुमारी से प्रेम हो गया है और मैं उससे विवाह की इच्छा रखता हूं. नारद जी के वचनों को सुनकर भगवान मुस्कुराए और कहा तुम्हें हरि (वानर) रूप देता हूं.
जब नारद विष्णु (हरि) रूप लेकर स्वयंवर में पहुंचे, तो राजकुमारी ने विष्णु जी के गले में वर माला डाल दी और नारद जी वहां से दु:खी होकर चले आ रहे थे. मार्ग में उन्हें एक जलाशय दिखा, जिसमें उन्होंने चेहरा देखा तो समझ गए कि विष्णु भगवान ने उनको छल से वानर रूप दिया है. नारदजी ने विष्णु भगवान को शाप दिया कि ‘आपको भी प्राण प्रिया का वियोग सहना होगा’. नारद जी के इस शाप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्र को सीता माता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में श्री राधा का वियोग सहना पड़ा था.
राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी बचपन में ही शुरू हो गई थी. राधा उम्र में कृष्ण से बड़ी भी थीं, लेकिन प्रेम उम्र के दायरे में बंधकर नहीं रह सकता है. लक्ष्मी जी ही राधा के रूप में धरती पर आई थीं. ये बात स्वयं देवी लक्ष्मी ने कही थी कि भगवान विष्णु के अलावा अन्य किसी के साथ उनका विवाह नहीं होगा, स्पष्ट है कि राधा ने अवश्य ही कृष्ण से विवाह किया होगा.
गर्ग संहिता के अनुसार, राधा और कृष्ण का विवाह स्वयं ब्रह्मा जी ने करवाया था. नंद बाबा अपने पुत्र कृष्ण को गोद में उठाकर भंडीर ग्राम ले जाया करते थे. एक दिन कृष्ण उनकी गोद में खेल रहे थे कि अचानक तेज रोशनी और तूफान आ गया, अंधेरा छा गया और उस अंधेरे में नंद बाबा को किसी पारलौकिक शक्ति का अनुभव हुआ. वह शक्ति और कोई नहीं, बल्कि स्वयं राधारानी थीं. राधा के आते ही भगवान कृष्ण ने भी अपने बाल रूप को त्यागकर किशोर रूप धारण कर लिए. इसी समय भंडीर जंगल में ब्रह्मा जी ने ललिता और विशाखा की उपस्थिति में राधा और कृष्ण का विवाह करवाया था. विवाह होते ही माहौल सामान्य हो गया. राधा, ब्रह्मा, ललिता, विशाखा सभी अंतर्ध्यान हो गए और कृष्ण बाल रूप में वापस लौट आए.
परंतु राधा और कृष्ण के विवाह से अलग एक अन्य कहानी ये बताती है कि राधा का विवाह कृष्ण से नहीं, बल्कि अभिमन्यु से हुआ था. एक पौराणिक कहानी के अनुसार, जतिला नाम की एक गोपी जावत गांव में रहती थी. योगमाया के कहने पर जतिला के पुत्र अभिमन्यु का विवाह राधा के साथ संपन्न हुआ था, लेकिन योगमाया के ही प्रभाव की वजह से अभिमन्यु कभी अपनी पत्नी राधा को छू तक नहीं पाया था. दरअसल, अभिमन्यु कार्यों में व्यस्त रहता था और शर्म के कारण कभी पत्नी से बात नहीं करता था.
राधा को ही ब्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, पूरे ब्रज क्षेत्र में लोग राधे-राधे कहते ही नज़र आते हैं. राधा कृष्ण से पूर्व याद की जाती हैं. कहते हैं कि ये श्रीकृष्ण की ही इच्छा थी कि उनके नाम से पूर्व जो राधा का नाम लेता है या उनके बिना भी जो राधा को याद करता है, वो स्वयं उस पर कृपा करते हैं. ऐसे अद्भुत प्रेम का उदाहरण पूरे ब्रह्माण्ड में दूसरा नहीं मिलता. एक ऐसा प्रेम, जो कभी नहीं मिटा, सदियां भी इसे धूमिल न कर सकीं, बल्कि उस प्रेम की लोग पूजा करने लगे, जिसमें कुछ भी पाना न था, सिर्फ़ और सिर्फ़ खोना था. उन्होंने खोकर भी एक-दूजे को पा लिया.