भाई-बहन का त्यौहार, प्यार का त्यौहार, भरोसे का त्यौहार, वादे का त्यौहार, ऐसा त्यौहार, वैसा त्यौहार यानी रक्षा-बंधन का त्योहार. कैडबरी के एड में सुपर क्यूट दिखने वाला ये त्यौहार मुझे कभी भी पसंद नहीं था. उम्र के हर पड़ाव पर मुझे इससे अलग किस्म की दिक्कत थी. और ये मैं सिर्फ़ अपनी बात नहीं कर रहा, बहुत से लोग हैं जो मेरी बातों से थोड़ी या पूरी तरह सहमत होंगे.

1. हम सिर्फ़ दो भाई हैं

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हमारी कोई बहन नहीं है और दोनों भाईयों में मै छोटा हूं. राखी की जो पहली याद मेरे ज़हन में है, वो ये कि मेरे भईया को राखी बंधवानी थी और ‘अपनी’ बहन से बंधवानी थी. मम्मी-पापा तत्काल प्रभाव से अपने लाडले बेटे के इस डिमांड को पूरी तो कर नहीं सकते थे, तो उन्होंने इस(यानी की मैं) बच्चे के सहमति के बिना उसका जेंडर चेंज कर दिया. भईया को कुछ तो भी पट्टी पढ़ाई गई कि तुम्हारा छोटा भाई ही तुम्हारी बहन है, तुम्हें ही इसकी रक्षा करनी है. नवाबज़ाद्दे (बड़े भाई) इस लॉज़िक से कन्विंस्ड थे लेकिन उन्हें फ़ील नहीं आ रही थी, तो इसके लिए मुझे लड़कियों वाले कपड़े पहनाए गए. उस रक्षाबंधन की तस्वीर भी है लेकिन मैं दिखाऊंगा नहीं.

2. अपनी बहन से राखी बंधवाना

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हम दो हमारे दो, के सिद्धांत को मम्मी-पापा ने बिना चूक के पालन किया. मेरे सारे दोस्त राखी बंधवाते थे, उनके हाथ राखी से सजे होते थे. मैं उस दिन घर से निकलने से बचता था. ऐसा लगता था जैसे मोहल्ले के सभी लोगों की नज़र मेरे सूने हाथों पर होगी और सब मन ही मन मेरे ऊपर हंसेंगे. छुट्टी होने के बावजूद मैं उस दिन खेलने नहीं जाता था. लेकिन कुछ कमीने दोस्त(उस वक़्त सिर्फ़ दोस्त थे, कमीने बाद में हो गए) अगले दिन भी राखी बांंधे होते थे, शायद मुझे जलाने के लिए.

3. बुआ क्यों राखी बांधती है?

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क्योंकि हमारी कोई बहन नहीं थी, तो किसी-किसी साल बुआ हमे राखी बांध देती थी. मुझे ये ख़ास तौर पर नहीं पसंद था, क्योंकि मैं समझ जाता था ये सिर्फ़ हमारे मन की ख़ुशी के लिए है.

4. नए पड़ोसी

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नए लोग हमारे पड़ोस में आए थे, ‘हम दो हमारे दो’ वाले, लेकिन उनकी दो बेटियां थीं. ठीक से याद नहीं लेकिन किसी के दिमाग़ में ये ख़्याल आया कि इस साल ये दोनों लड़कियां हम दोनों भाईयो को राखी बांधेगी. हम इससे कोई परेशानी नहीं थी. राखी के दिन सुबह-सुबह पापा ने 100 रुपये दिए. मैं ख़ुश, आज तो रईसों वाली पार्टी होगी. जब वो राखी बांधने आईं, पापा ने मेरे पैसै उन दोनों में बांट देने के लिए कह दिया. बदले में मुझे क्या मिला? दो गुलाब जामुन. ये सिलसिला भी कुछ सालों तक चला.

5. अब मैं बड़ा हो चुका था

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नए-नए स्कूल में एडमिशन हुआ था हमारा, उम्र कोई 13-14 साल रही होगी. इस उम्र में स्कूल कोई बहन बनाना तो नहीं जाता है, लेकिन कम्बख़तों ने एक रिवाज़ चला रखा था कि लड़कियां लड़कों को राखी बांधेगी. उस दिन जो मैं ‘कन्सेंट’ का मतलब समझा था, आज भी सब को समझाता फिरता हूं. रिश्ते बनाने में कोई बुराई नहीं है, बस इसमें आपसी सहमति होनी चाहिए.

6. राखी की छुट्टी

ये सब तो पुरानी बातें हो गईं, अब रक्षाबंधन को न पसंद करने की वज़ह छुट्टी है. मतलब, ऑफ़िस वालों को समझना चाहिए, भाई-बहन का त्यौहार, प्यार का त्यौहार, भरोसे का त्यौहार, वादे का त्यौहार, ऐसा त्यौहार, वैसा त्यौहार… और ऑफ़िस वाले छुट्टी तक नहीं देते. एक छुट्टी तो बनती है इस दिन की.

बाकी आप लोगों का रक्षाबंधन की शुभकामनाएं. 

Feature Image Source: Indian Express