मैं दिल्ली में रही, कोलकाता में भी रही, कुछ दिन लखनऊ में भी गुज़ारे लेकिन कानपुर से मुझे अलग ही लगाव है. हो भी क्यों न, मेरा जन्म कानपुर में ही हुआ है. मेरा बचपन वहीं बीता, मेरी पढ़ाई भी वहीं हुई और पहली जॉब भी मैंने वहीं की. वैसे देखा जाए, तो हर व्यक्ति को अपना शहर जहां वो पाला-बढ़ा होता है, वो दुनिया में सबसे प्यारा होता है. क्यों आप भी मेरी इस बात से सहमत हैं ना?

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मैं कानपुर से हूं और मैं दुनिया के किसी कोने में ही क्यों न रहूं, पर जो अपनापन मुझे अपने कानपुर में मिलता है, वो कहीं और नहीं. मैं पिछले 10 सालों से दिल्ली में रह रहीं हूं और जॉब कर रही हूं. दिल्ली की चकाचौंध और भीड़-भाड़ के बीच होने के बावजूद हमेशा एक खालीपन रहता है. आज भी भीड़ के बीच कहीं से कोई हम बोलने वाले की आवाज़ सुनाई दे जाए तो आंखें उसे खोजने लगती हैं.

अब आप सोचेंगे कि हम में ऐसा क्या है? ‘हम’ कानपुर वाले अकेले खड़े होते हैं तब भी हम ही बोलते हैं, हम में एक नज़ाकत है, एक अदा है. इस हम से एक किस्सा याद आता है, शुरु-शुरु में जब मैं कानपुर से दिल्ली आयी थी जॉब करने तो पहले दिन जैसे ही मैंने अपने बारे में बताते हुए कलीग्ज़ से सामने बोला कि हम कानपुर से हैं, तो सब लोग ही मेरे आजू-बाजू देखकर बोले कि बाकी लोग कहां हैं, और तुम्हारे साथ और कौन-कौन है… वो दिन था और आज का दिन अभी तक कोई मेरे लहजे को बदल नहीं सका है क्योंकि हमारा हम है ही इतना ख़ास.

तो चलिए अब आपको बताते हैं कि क्यों आज भी मुझे कानपुर से इतना प्यार है:

1. कानपुर के लोग

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कानपुर के लोग बहुत ही मिलनसार और दोस्ताना होते हैं. ये आपके बारे में सब कुछ जानने की कोशिश करते हैं, साथ ही हर ज़रूरत में आपकी मदद के लिए तैयार रहते हैं. कई बार तो अगर आपको मदद की ज़रूरत न भी तो ही मदद कर ही देते हैं. कानपुर के लोगों की एक खासियत ये भी है कि भले ही आप अपने परिवार के लोगों पर नज़र न रखें लेकिन वो सीसीटीवी बनकर हर पल पर नज़र रखते हैं. पर जो भी मज़ेदार बड़े होते हैं हमारे कानपुर वाले.

2. नवीन मार्केट या शिवालय बाज़ार

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आज भी जब मैं कानपुर जाती हूं, ऐसा हो नहीं सकता कि वहां के शिवालय या नवीन मार्केट न जाऊं. शिवालय की तंग गलियां और वहां की चाट हमेशा मुझे बुलाती हैं.

3. कानपुर की गड़बड़ चाट हो या बदनाम कुल्फ़ी

कानपुर के खाने का स्वाद मुझे आज दिन तक कहीं और नहीं मिला. फिर चाहे वो गड़बड़ चाट हो या बदनाम कुल्फ़ी या फिर कल्लू के खस्ते.

4. गली-नुक्कड़ पर मिलने वाली चाट-पापड़ी

कानपुर के मेन मार्केट में तो आपको कई चाट के ठेले मिल जाएंगे, पर रोज़ शाम को हर गली और नुक्कड़ पर लगने वाले पापड़ी-चाट और पांच पानी वाले गोलगप्पे आपको कहीं नहीं मिलेंगे.

5. लेदर का सामान

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जब भी मैं दिल्ली में किसी लेदर के सामान वाली शॉप पर जाती हूं, मुझे कानपुर की याद बहुत आती है. वजह ये है कि यहां आपको लेदर के नाम पर कुछ भी बेच देते हैं, पर कानपुर में लेदर की कई सारी फ़ैक्टरीज़ हैं और वहां से अच्छा लेदर कहीं नहीं मिलता.

6. पनकी पावर हाउस

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हालांकि, वर्तमान में तो पनकी पावर हाउस की स्थिति डामाडोल है, पर पनकी पावर हाउस ने कई इलाकों, जिलों और कस्बों को रौशन किया है.

7. गंगा बैराज

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गंगा में भले ही पानी न हो या काला पानी हो, लेकिन हर कानपुर वाले की टाइम लाइन पर गंगा बैराज की एक सेल्फ़ी ज़रूर दिख जायेगी.

8. हर मोहल्ले में बना पार्क

अभी भी अकसर याद आ जाता है, वो रोज़ शाम को होमवर्क करके सामने वाले पार्क में खेलना. कैसे पूरे मोहल्ले के बच्चे पार्क में इकठ्ठा होकर खेलते थे. आजकल तो बच्चे भारी बैग और इंटरनेट के बोझ ताल दब गए हैं. 

9. हर रात होने वाला पावरकट

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10. जेके मंदिर

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कानपुर की शान है जेके मंदिर. किसी का रिश्ता पक्का करना हो या प्रेमी युगल को मिलना हो जेके मंदिर सबसे सही जगह है. और मंदिर इतना सुन्दर की देखते ही रह जाओ.

11. चिड़िया घर

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बचपन में हर संडे ज़िद करने पापा के साथ चिड़िया घर (एलन फ़ॉरेस्ट ज़ू) जाना तो पक्का था, घर के पास जो था और छुट्टी का दिन ही होता था जब पापा के साथ जा सकते थे. वो वीकेंड अब कभी नहीं आते और ना आएंगे.

भले ही आज हम मेट्रो सिटी में रह रहे हैं, लेकिन अपना शहर अपना ही होता है, ठीक वैसे ही जैसे अपना घर अपना होता है क्योंकि चैन की नींद तो अपने ही घर में आती है ना… क्यों सही पकड़े हैं ना?