Pallabi Ghosh Rescue Children From Human Trafficking: मानव तस्करी भारत और उसके पड़ोसी देशों में एक बड़ी समस्या है. छोटे शहरों के बच्चों और महिलाओं को बहला-फ़ुसलाकर लोग बड़े शहरों में बेच देते हैं. किसी को घरों के काम में लगाया जाता है तो किसी को प्रॉस्टीट्यूशन की काली दुनिया में धकेल दिया जाता है. असम (Asaam) की पल्लबी घोष ऐसे ही ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग के पीड़ितों की मदद करती हैं. उन्होंने अब तक 10,000 से ज़्यादा लोगों को ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग से रेस्क्यू किया है. पल्लबी घोष का काम उन्हें एक सुपरवुमेन बनाता है. (The Impact and Dialogue Foundation) #DearMentor

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आइए हमारे #DearMentor कैंपेन के ज़रिए जानते हैं पल्लबी घोष की कहानी और कैसे वो ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग के शिकार लोगों को बचाती हैं.

12 साल की उम्र में देखा मानव तस्करी का पहला मामला

पल्लबी घोष लुमडिंग, असम में पली-बढ़ी हैं. वो अक्सर कोलकाता जाती थीं, जहां उनके चाचा रहते थे. ऐसी ही एक गर्मी की छुट्टी के दौरान वो कोलकाता में थीं. शाम के वक़्त उन्हें एक शख़्स की चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. वो बदहवास शख़्स अपनी बेटी को ढूंढ रहा था, जो ग़ायब हो गई थी. पल्लबी को काफ़ी शॉक लगा कि कैसे उनकी उम्र की एक लड़की अचानक ग़ायब हो गई और उसे कौन ले गया होगा. (Child Trafficking In India)

तब ही एक शख़्स ने बताया कि ‘ये बहुत आम बात है. एक भइया आते हैं यामाह से और इन्हें लेकर जाते हैं.’

उसके बाद से पल्लबी ने लोगों को मानव तस्करी से बचाने और उन्हें नयी ज़िंदगी देने को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. वो कहती हैं कि उन्होंने कई संगठनों के साथ साझेदारी करके 10,000 से अधिक बच्चों को बचाने में कामयाबी हासिल की है. और बाद में, उन्होंने अपना एक ‘इम्पैक्ट एंड डायलॉग फ़ाउंडेशन’ (The Impact and Dialogue Foundation) शुरू किया.

Pallabi Ghosh Rescue Children From Human Trafficking

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लापता बच्चों के बारे में जानना शुरू किया

मानव तस्करी और लापता बच्चों के बारे में समझने के लिए पल्लबी ने अपने माता-पिता, दोस्तों और अपने आस-पास के अन्य लोगों से बात करना शुरू किया. लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं था. इसलिए, जब वो 11वीं क्लास में थी तो उन्होंने ख़ुद पड़ताल करना शुरू किया. वो सबसे पहले असम रेलवे स्टेशन पहुंची.

उन्होंने कहा कि ‘ज़्यादातर लोग यहां बंगाली ही बोलते हैं. मगर मैंने पाया कि कई बच्चे धाराप्रवाह हिंदी बोल रहे थे. बात करने पर मालूम पड़ा कि ये बच्चे राजस्थान के हैं. तब मुझे पता चला कि ये सब बाल तस्करी का शिकार हैं.’

इतना ही नहीं, इन बच्चों को वैश्यालयों में सेक्स वर्कर्स बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी. मालूम पड़ा कि ज़्यादातर बच्चों के साथ ऐसा ही होता है. पल्लबी ने बताया कि इन सब बच्चों को बेहतर भविष्य का सपना दिखा कर यहां लाया जाता था.

कभी अलमारी तोड़ कर तो कई टनल से लड़कियों को निकाला

साल 2012 में पल्लबी दिल्ली में एक संगठन के साथ जुड़ीं. वो बतौर एक रिसर्च ऑफ़िसर काम करने लगीं कि आख़िर क्यों मानव तस्करी की जाती है और इसे कैसे रोका जा सकता है. एक दिन जब संगठन एक बचाव मिशन की तैयारी कर रहा था, तो मुख्य अधिकारी बीमार था. ऐसे में पल्लबी ने ख़ुद ये काम करने की पेशकश की.

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पल्लबी कहती हैं कि ‘रेस्क्यू मिशन सफ़ल रहा और मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में रहना पसंद करूंगी, जो इन बच्चों के जीवन में बदलाव ला सके.’

इसके बाद उन्होंने अगले छह सालों तक यही काम किया और हज़ारों बच्चों को बचाया. इस पूरे सफ़र में आई मुश्किलों के बारे में पल्लबी बताती हैं कि उन्होंने कई मामलों में अलमारी तोड़कर और टनल से लड़कियों को निकाला है.

पल्लबी कहती हैं, ‘मानसिक, शारीरिक तौर पर ये पूरा सफ़र बहुत मुश्किल भरा रहा है. मैं घंटों-घंटो थाने में बैठी रहती थी, क्योंकि पुलिस के बगैर किसी अवैध इलाके में जाना मुश्किल है. दूसरा, अस्पतालों में लड़की का जब रेस्क्यू होता है तब उनका पूरा मेडिकल एग्जामिनेशन होता है. इसमें 4-4 घंटे लगते हैं. अब सोचिए कि आपने एक साथ 15 लड़कियों को रेस्क्यू किया है. तब कितना समय लगेगा.’

पल्लबी कहती हैं कि ट्रैफ़किंंग करके लड़कियों की शादी भी कराई जाती है. हरियाणा के कई गांवों में ऐसी शादियां होती हैं. क्योंकि, वहां भ्रूण हत्या के कारण लड़के ज़्यादा और लड़कियां कम हैं. उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा जैसे इलाकों से जिन बच्चों की तस्करी होती है वो वैश्यावृत्ति के लिए होती है. जबरन शादी के लिए असम से तस्करी होती है. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से सिर्फ़ मजदूरी के लिए बच्चों की तस्करी होती है. (What Happen To Missing Children)

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सिर्फ़ बचाना ही काफ़ी नहीं

पल्लबी कहती हैं, सबसे बड़ी दिक्कत है कि लोगों को ट्रैफिकिंग के बारे में पता ही नहीं है. यही कारण है कि मुझे एक ऑर्गनाइजेशन इम्पैक्ट एंड डायलॉग फ़ाउंडेशन खोलनी पड़ी. साथ ही उन्हें एहसास हुआ कि सिर्फ़ बचाना ही काफ़ी नहीं है, बल्क़ि बचाने के बाद उन्हें सशक्त करना और बेहतर जीवन देना भी ज़रूरी है.

‘केवल बच्चों को बचाना ही काफी नहीं है. उनका पुनर्वास करना महत्वपूर्ण है, वरना मानव तस्करी के इस काले व्यापार को रोका नहीं जा सकता. ऐसे में मैंने अपना ख़ुद का एक फ़ाउंडेशन शुरू करने का फ़ैसला किया, जो न केवल इन बच्चों को बचाएगा बल्कि उन्हें सशक्त भी करेगा.’

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दिसंबर 2020 में अपनी स्थापना के बाद से फाउंडेशन ने पश्चिम बंगाल, असम, भूटान, म्यांमार आदि क्षेत्रों से कई लड़कियों को बेहतर जीवन प्रदान किया है. पल्लबी कहती हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जिन परिस्थितियों में उन्होंने शुरुआत की थी, उन्हें देखते हुए वो ऐसा प्रभाव डाल पाएंगी. पल्लबी ने पूर्वोत्तर में 75,000 महिलाओं को इस सामाजिक बुराई के बारे में जानकारी दी.

उनके लिए तब बेहद ख़ुशी का पल था, जब गांव की एक महिला ने बताया कि वे बाल विवाह रोकने में कामयाब रहे हैं और बाल तस्करी का एक मामला देखने पर उन्होंने तुरंत पुलिस को जानकारी दी. पल्लबी महिलाओं को ट्रेनिंग देकर सशक्त भी बना रही हैं.

पल्लबी ने बताया, ‘मुझे 2019 में एक लड़की का मामला याद आता है, जिसकी तस्करी कर गुजरात में बेचा गया था. वो अब डॉक्टर बनने की पढ़ाई कर रही है. हम जिन लड़कियों को छुड़ाते हैं, उनमें से अधिकांश शादी करने का इरादा रखती हैं, लेकिन ये लड़की कुछ अलग करना चाहती थी.’

वो कहती हैं कि एसी कमरों में बैठकर काम नहीं किया जा सकता, ग्राउंड पर उतरना पड़ेगा. ट्रैफिकिंग गरीबों की होती है, इसलिए उनसे बात करना ज़रूरी है.

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