Harshini Kanhekar Fire Fighter : दयालु ह्रदय, तेज़ दिमाग़ और बहादुर आत्मा- ये सभी क्वालिटीज़ भारत की पहली फ़ायर फ़ाइटर महिला को परिभाषित करती हैं. आज हम एक 37 वर्षीय महिला की बात करेंगे, जिसने धारणा बदलने का काम किया है. वो आग से नहीं डरती, बल्कि उसके साथ प्रोफ़ेशनल की तरह खेलती हैं.
एक ऐसा देश, जहां महिलाओं को सामने पूजा जाता है, लेकिन बंद दरवाज़ों के पीछे टॉर्चर किया जाता है, उस देश में हर्षिनी कान्हेकर (Harshini Kanhekar) एक प्रेरणा हैं. वो भारत के इतिहास की पहली महिला फ़ायर फ़ाइटर हैं. अगर महिलाएं चांद पर जा सकती हैं, तो वो आग से भी खेल सकती हैं.
ये भी पढ़ें: जब सुधा मूर्ति ने JRD टाटा को मनाया और TELCO की पहली फ़ीमेल इंजीनियर बनीं
बचपन में था आर्म्ड फ़ोर्स जॉइन करने का सपना
बचपन में हर्षिनी हमेशा से आर्म्ड फ़ोर्स ज्वाइन करने का सपना देखती थीं. वो नागपुर के एक गर्ल्स स्कूल में पढ़ी थीं. वो स्कूल में ब्राइट स्टूडेंट नहीं थीं, लेकिन वो एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज़ के लिए हमेशा एक्टिव रहती थीं. कुछ लोग महान चीज़ें जैसे ज़िन्दगी बचाना और धारणा बदलने के लिए पैदा होते हैं. हर्षिनी कान्हेकर उन्हीं महिलाओं में से एक हैं, जो हमें अपने सपनों को पूरा करने और निडर बनना सिखाती हैं.
माता-पिता थे हर्षिनी की ताक़त
हर्षिनी नागपुर के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके माता-पिता हमेशा से जानते थे कि उनकी बेटी सशस्त्र बलों में जाएगी. उन्होंने सभी बाधाओं के बावजूद उनका समर्थन किया. हर्षिनी ने लेडी अमृताबाई दागा कॉलेज से साइंस में बैचलर्स किया और वहां उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें एक बदलाव की ज़रूरत है. उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में नेशनल कैडेट ज्वाइन किया और कई कॉम्पटीशन में हिस्सा लिया. अपनी ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद, उन्होंने MBA कोर्स ज्वाइन किया. लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वो ये करना नहीं चाहती हैं.
वो एक यूनिफ़ॉर्म पहनना चाहती थीं और इसलिए जब उन्होंने फ़ायर इंजीनियरिंग कोर्स में अप्लाई किया, तो उनके माता-पिता को बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ. उन्हें बिल्कुल भी आइडिया नहीं था कि उनके पास सेलेक्शन की कॉल आएगी. हर्षिनी पहली महिला हैं, जिनको नागपुर के नेशनल फ़ायर सर्विस कॉलेज में एडमिशन मिला था. ये उनके पेरेंट्स के लिए एक ऐतिहासिक पल था.
सामने आईं काफ़ी चुनौतियां
हर्षिनी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, “हमें दिन में एक से ज्यादा बार वर्दी बदलने की आवश्यकता होती थी. मुझे ऐसा करने के लिए खाली कक्षाएं ढूंढनी पड़ती थीं. लेकिन ये हर समय संभव नहीं था.” हर्षिनी ने कभी भी पुरुषों से भरी कक्षा में बैठने में असहजता महसूस नहीं की. लेकिन कॉलेज के लिए लोग जरूर महसूस करते थे. उनके लिए इस तथ्य को पचाना लगभग अविश्वसनीय था कि एक लड़की ने कॉलेज में एडमिशन लिया है.
ये भी पढ़ें: भारत की पहली महिला सिविल इंजीनियर, जिन्होंने कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक 69 पुलों का निर्माण किया था
2005 में दिया था साहस का परिचय
साल 2005 में दीवाली की रात हर्षिनी की साहस की परीक्षा का समय था. उस दौरान दिल्ली के शास्त्री नगर में जूते की एक फैक्ट्री में आग लग गई थी. इस आग को बुझाने में उन्हें और उनकी टीम को लगभग 6 घंटे लग गए, लेकिन वो डटी रहीं. ओएनजीसी के साथ उनके कार्यकाल के दौरान, उन्हें एक अपतटीय तेल रिग में काम करने का अवसर दिया गया, जिससे वे रिग में तैनात होने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक बन गईं. वहां हर गुज़रते वक़्त में ज़बरदस्त ज़ोखिम था. काम पानी के नीचे था और चीज़ें आसान नहीं थीं. यहां विस्फ़ोट कभी भी हो सकता था. यहां पर भी हर्षिनी ने बहादुरी का उदाहरण पेश किया था.
‘जेंडर न्यूट्रल हैं नौकरियां’
हर्षिनी कहती है, “नौकरियां जेंडर के बेसिस पर नहीं होती हैं. इसलिए, कौन कहता है कि यह नौकरी पुरुषों के लिए है और ये नौकरी महिलाओं के लिए है. वास्तव में, मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं जब यह ‘फ़ायरमैन’ शब्द ‘फ़ायरपर्सन’ में बदल जाएगा.”