Inspiring Story Of Hyderabad Yoga Teacher Arpita: ज़िंदगी में क्या होना उसका निर्णय भगवान करता है, लेकिन ज़िंदगी में क्या करना है उसका निर्णय हमारे हाथ में होता है. जैसे कोई हानि या एक्सीडेंट हो जाना उसे रोक पाना हमारे या आपके किसी के बस में नहीं है मगर मेहनत करके दोबारा खड़े होना हमारे बस में है. ठीक ऐसा ही कुछ हैदराबाद की अर्पिता रॉय ने किया, जिन्होंने 17 साल पहले एक हादसे के चलते अपने दोनों पैर खो दिए और आज वो एक सफल योगा ट्रेनर हैं.

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आइए अर्पिता रॉय की प्रेरणादायक कहानी (Inspiring Story Of Hyderabad Yoga Teacher Arpita) को जानते हैं कि कैसे एक टूटी हुई लड़की सफल और प्रेरणादायक योगा ट्रेनर बनी?

हादसे किसी की भी ज़िंदगी में कभी भी हो सकते हैं. ऐसा ही एक हादसा हैदराबाद की अर्पिता रॉय की ज़िंदगी में 17 साल पहले हुआ, जब वो महज़ 20 साल की थी. 22 अप्रैल 2006 की वो भयानक शाम जिसमें वो अपने दोस्त के साथ कोलकाता की सड़कों पर बाइक से जा रही थीं और मार्केट से क्या लेना है उसकी लिस्ट बना रही थीं. उसी दौरान बाइक एक लॉरी से जा टकराई और कुछ सेकेंड्स के अंदर अर्पिता की पूरी ज़िंदगी बदल गई.

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अर्पिता के बैरकपुर वाले घर से कोलकाता 30 किलोमीटर की दूरी पर था. अर्पिता जब गिरीं तो लॉरी उनके दोनों पैरों पर चढ़ गईं, जिससे वो दोनों पैरों से विकलांग हो गईं. हालांकि, अर्पिता होश में थीं, लेकिन वो समझ नहीं पा रही थीं कि चोट लगी कहां हैं जब किसी ने उनके ख़ून से लथपथ पैरों की ओर इशारा किया तब वो पूरी तरह से टूट गईं. जहां ये हादसा हुआ ता वहीं पास में अस्पताल था.

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जैसे-तैसे दर्द की दवाइयां देकर अर्पिता के दर्द को तो कम कर लिया गया, लेकिन मिडिल क्लास की आर्थिक स्तिथि उनके पैरों को नहीं बचा पाई. दरअसल, डॉक्टर ने सर्जरी के लिए जिसमें पैसों की समस्या होने के चलते 12 दिनों का समय लग गया, जो तुरंत करानी थी.

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अर्पिता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ The Better India को बताया,

अगर हमारे पास पर्याप्त पैसा होता तो मेरे पैर बच सकते थे, लेकिन मैंने अपनी कड़वी हक़ीक़त को इन कड़वी गोलियों की तरह जल्दी ही निगल और स्वीकार कर लिया. ‘क्या होगा अगर’ जैसी इन बातों को सोचने में मैंने वक़्त ही नहीं गंवाया. मैं चार महीने तक अस्पताल में रही क्योंकि गैंग्रीन मेरे शरीर के 80 प्रतिशत हिस्से में फैल चुका था.

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ऐसा हादसा किसी के साथ हो तो वो चलना दूर खड़े होने के बारे में भी सोचेगा, लेकिन अर्पिता न केवल चलीं बल्कि उन्होंने ख़ुद को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया ताकि वो दूसरों पर निर्भर न रहें. कॉलेज जाने वाली 20 साल की लड़की उन कुछ घंटों में अचानक से बड़ी हो गई और अपनी ज़िंदगी को मुश्किलों के साथ स्वीकार करने में लग गई. अर्पिता कुछ समय के बाद कृत्रिम पैरों के साथ खड़ी हुईं. ख़ुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नौकरी करनी शुरू की. अर्पिता को देखकर दूसरे उन पर तरस दिखाते थे, लेकिन उन्होंने कभी ख़ुद पर तरस नहीं खाया.

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अर्पिता ने बताया,

मेरा भाई, जो अकेला कमाने वाला था, पहले ही मेरे अंगों और दवाओं के लिए काफ़ी खर्च कर चुका था. इन सबके बीच लोगों ने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं एक बोझ हूं. मैं एक नौकरी चाहती थी और उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी. मेरी पूरी जर्नी में मेरे भाई ने मेरा बहुत सपोर्ट किया, जिसकी वजह से मैं अपनी ज़िंदगी के बारे में सोच पाई तब जब मुझे लोग तरस भरी निगाहों से देख रहे थे.

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ऑपरेशन के दौरान, सर्जिकल टीम ने चोट वाले हिस्से को बंद करने के लिए शरीर के अन्य हिस्सों से मांस लेकर ग्राफ़्टिंग की. साथ ही ये सुनिश्चित करने के लिए कि पैरों की पोजीशन सही है इसके लिए रोजाना एक घंटे तक खड़े रहने का सुझाव दिया. अपननी मेहनत और दृढ़ता के चलते अर्पिता कुछ महीनों बाद चलने लगीं और 2007 में उन्हें एक कॉल सेंटर में नौकरी मिली. शादी होने तक 2.5 साल तक वहां काम किया.

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सब कुछ आसान नहीं था अपनी इस हीलिंग जर्नी के दौरान काफ़ी बार अर्पिता टूटीं भी और रोईं भी क्योंकि जब लोगों ने अधूरे ज्ञान के चलते उनके कृत्रिम अंगों को पोलियो या चोट समझ लिया. इसलिए बिना डरे अर्पिता ने अपनी कहानी बताई, उन्होंने कहा कि,

हमें विकलांगता के प्रति बहुत अधिक संवेदनशीलता और जागरूकता की आवश्यकता है. बहुत से लोग नहीं जानते कि क्या पूछना है या सही संदेश देना है. शुरू में, मैं झिझक रही थी इसलिए मैंने अपनी लाइफ़ को निजी रखा. अपने डर और असुरक्षा को दूर करना मेरे लिए सबसे मुश्किल काम था.

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इस दौरान, एक्सरसाइज़ ने एक दोस्त की तरह हाथ थामा और यहीं से शुरू हुआ उनका फ़िटनेस का सफ़र. ऐसा उन्होंने अपने कृत्रिम अंगों में फ़िट रहने के लिए ताकि उनका वज़न न बढ़े और उन्हें किसी तरह की समस्या न आए. 2015 में, अर्पिता ने योग करना शुरू किया, कुछ ऐसा जिसमें लचीलेपन, स्वस्थ घुटनों और अधिक महत्वपूर्ण पैरों की आवश्यकता होती है.

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अर्पिता कहती हैं,

योग सिर्फ़ आसन करने या शरीर को बैलंस करने के नहीं, मन को बैलेंस करने के लिए भी काफ़ी कारगर है. मैंने साल 2015 में योग सीखना शुरू किया था. समय के साथ मेरी रुचि योग में इतनी बढ़ गई कि महज़ चार साल में मैं हैंडस्टैंड जैसे कठिन आसन भी आराम से करने लगी.

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धीरे-धीरे प्रैक्टिस करके 2019 तक अर्पिता ने सभी आसनों को सीख लिया था. इसके बाद ही वो योग ट्रेनर बन गई. COVID-19 महामारी से पहले, अर्पिता के पास 25 स्टूडेंट थे, जिनमें कुछ विकलांग भी शामिल थे.

अर्पिता कहती हैं,

मैं उस दिन मर सकती थी या इससे भी बदतर एक वानस्पतिक अवस्था में जा सकती थी लेकिन मैं भाग्यशाली थी कि मुझे कृत्रिम अंग मिले और मैंने ख़ुद को फिर से खड़ा किया, जो सबको भी करना चाहिए.

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अपने आत्म विश्वास और लगन से आज अर्पिता ज़िंदगी में हारी हुई लड़की नहीं बल्कि एक जीती हुई सफल योग ट्रेनर हैं, जो कई लोगों को ऑफ़लाइन और ऑनलाइन योग सिखाती हैं. अर्पिता के जज़्बे को दिल से सलाम है.