Padma Shri Durga Bai Vyam: पद्मश्री सम्मान उस व्यक्ति को मिलता है, जिसने देश के लिए बेहतर योगदान दिया हो. हाल ही में, पद्मश्री अवॉर्ड दिए गए, जिसमें कई महिलाओं को इस सम्मान से नवाज़ा गया. इसमें से एक मध्य प्रदेेश की दुर्गा बाई व्योम (Durga Bai Vyam) भी थीं, जिन्होंने भले ही कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा मगर अपनी कला से उस मुक़ाम को छुआ, जिसका सब सपना देखते हैं.
![padma shri durga bai vyam](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/03/Durgabai-Vyam-a-Pardhan-Gond-signing-a-copy-of-Bhimayana.jpg?w=1024)
आइए, दुर्गाबाई के सफ़र के बारे में जानते हैं कि कैसे उन्होंने पद्मश्री (Padma Shri Durga Bai Vyam) तक का रास्ता तय किया.
47 वर्षीया दुर्गाबाई मूल रूप से मध्य प्रदेश के डिंडोरी के गांव बुरबासपुर की रहने वाली हैं. इनके चार भाई-बहन थे और इनके पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि जिससे चार भाई-बहनों की परवरिश करना मुश्किल था. बस इसी के चलते दुर्गाबाई कभी स्कूल नहीं जा पाईं, लेकिन दुर्गा को बचपन से ही चित्रकारी करने का शौक़ था. इन्होंने महज़ 6 साल की उम्र में गोंड परंपरा से जुड़ी ट्राइबल आर्ट करनी शुरू कर दी थी, जिसमें गोंड समुदाय की लोककथाएं झलकती थीं. इस कला को दुर्गा ने अपने पूर्वजों की धरोहर मानकर हमेशा आगे बढ़ाया.
![padma shri durga bai vyam](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/03/Screenshot-2023-03-30-150233-1.png)
दुर्गा ने अपनी दादी और मां से “दिग्ना” (Digna) कला सीखी, जिसमें शादियों और खेती से जुड़े त्यौहारों में घर की दीवारों पर एक ख़ास अंदाज में चित्रकारी की जाती है, यही कला दुर्गा की पहचान बन गई. इसी आदिवासी कला को नई पहचान देने के लिए दुर्गा बाई को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
ये भी पढ़ें: जानिए सिद्दी समाज की महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करने वाली हीराबाई लोबी की प्रेरक कहानी
दुर्गाबाई का विवाह महज़ 15 साल की उम्र में सुभाष व्योम नाम के शख़्स से हो गया था. सुभाष भी इनकी ही तरह के कला से जुड़े थे उन्हें मिट्टी और लकड़ी की मूर्तियां बनाने के लिए जाना जाता था. 1996 में, जब सुभाष को भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लकड़ी से मूर्तियां बनाने का काम मिला तो वो पहली बार दपर्गा को गांव से शहर लेकर आए.
अपने पति के साथ-साथ दुर्गा ने भी कला में उनका साथ दिया, तब गोंड कला के कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम और आनंद सिंह श्याम ने दुर्गा की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें गोंड चित्रकला के और भी गुर सिखाए. इसी बीच दुर्गा के बेटे की तबियत ख़राब होने से उन्हें भोपाल में ही रुकना पड़ा. इसी दौरान, वो भारत भवन से जुड़ीं.
![padma shri durga bai vyam](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/03/SAVE_20220126_243449.jpg?w=683)
भोपाल ने दुर्गा को बुला तो लिया, लेकिन भोपाल में तीन बच्चों के साथ रहना दुर्गा और उनके पति के लिए आसान नहीं था. इसलिए इन्होंने घर खर्च चलाने के लिए घरों में झाड़ू-पोछा करने का काम शुरू किया. इसी बीच इन्होंने अपनी चित्रकला को भी जारी रखा. दुर्गा की पहली पेंटिंग 1997 में प्रदर्शित हुई थी.
![padma shri durga bai vyam](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/03/DSC08752-Edit_1000.jpg)
1997 की पहल के बाद दुर्गाबाई ने भोपाल ही नहीं, बल्कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे कई महानगरों में अपनी कला का प्रदर्शन किया. इतना ही नहीं विदेश में इंग्लैंड और UAE जैसे देशों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी आदिवासी कलाओं से लोगों को परिचित कराया. इन्होंने संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन को पेंटिंग के जरिए दर्शाया है, जो 11 अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है.
![padma shri durga bai vyam](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/03/maxresdefault-28.jpg?w=1024)
ये भी पढ़ें: फ़ातिमा शेख़: देश की पहली मुस्लिम महिला टीचर, जिसने महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना जीवन लगा दिया
आपको बता दें, पद्म श्री से सम्मानित होने से पहले दुर्गाबाई ‘रानी दुर्गावती राष्ट्रीय अवॉर्ड’ और ‘विक्रम अवॉर्ड’ जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं.