Unsung Women Hero Alina Alam: किसी कैफ़े में जाएं और वहां आपका ऑर्डर लेने दिव्यांग आए, यहां तक की उसका मैनेजर और शेफ़ आदि भी सब दिव्यांग हों तो आप थोड़े समय के लिए सोच में पड़ सकते हैं. जबकि ये हैरान होने की बात नहीं है जनाब, देशभर में ऐसे कई कैफ़े दिव्यांग लोग चला रहे हैं. इससे आपको चकित होने की नहीं बल्कि प्रेरणा लेने की ज़रूरत है.
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मिट्टी कैफ़े के नाम से ये कैफ़े न सिर्फ़ लोगों का पेट भर रहे हैं बल्कि दिव्यांग लोगों की ज़िंदगी भी रौशन कर रहे हैं. इस अनोखी सोच वाले कैफ़े के पीछे एक महिला का हाथ है. आज हम अपने #DearMentor कैंपेन में उस साहसी महिला की कहानी लेकर आए हैं और बता रहे हैं कि कैसे वो एक कैफ़े और एनजीओ के ज़रिये दिव्यांग जनों का जीवन संवार रही हैं.
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2017 में हुई शुरुआत
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Mitti Cafe की शुरुआत साल 2017 में हुई थी. इसका सपना बेंगलुरू की रहने वाली अलीना आलम ने देखा था. बात 2016 की है जब वो कॉलेज में थीं. तब उन्होंने अपने कॉलेज में विदर्भ (महाराष्ट्र) में आत्महत्या कर रहे किसानों पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी. इस डॉक्यूमेंट्री को देख अलीना को एहसास कराया कि चुप रहना और अत्याचारों को अपनी आंखों के सामने होते देखना भी आपको उत्पीड़क के साथ खड़ा कर देता है.
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NGO के ज़रिये दिव्यांग लोगों की मदद करने की ठानी
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अलीना की दादी मां ने उनका पालन पोषण किया है. वो दिव्यांग होते हुए भी अलीना का ख़ूब ख़्याल रख लेती थीं. इससे उनको पता था कि दिव्यांग लोगों की क्षमता क्या होती है. इस तरह उन्होंने ठान लिया कि कॉलेज के बाद वो नौकरी नहीं बल्कि एक NGO की शुरुआत करेंगी और दिव्यांग लोगों के लिए कुछ करेंगी.
18 साल की उम्र में खोला पहला NGO
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18 साल की उम्र में उन्होंने के एनजीओ की शुरुआत की. Student Social Reform Initiative नाम का ये संगठन उन्होंने मुंबई में शुरू किया. इसके कुछ दिनों बाद अलीना को मास्टर्स करने के लिए बेंगलुरु आना पड़ा. यहां पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने एक और एनजीओ खोला. ‘पहल’ नाम के इस संगठन का भी मकसद ऐसे युवाओं को साथ लाना था जो समाज में बदलाव लाने के लिए काम कर सकें.
कोई साथ देने को तैयार न था
अब अलीना के पास दो-दो एनजीओ चलाने का अनुभव था. Mitti Cafe इनका तीसरा NGO और उधम था जिसका मकसद आजीविका कमाने के साथ ही विकलांग लोगों के जीवन को संवारना था. अलीना ने मिट्टी कैफ़े की शुरुआत बिना किसी कैपिटल यानी पूंजी के की थी. उनके पास आइडिया था लेकिन कोई उनके इस आइडिया में पैसे इनवेस्ट करने को तैयार नहीं था. फिर भी अलीना ने हार नहीं मानी.
हुबली में खुला पहला कैफ़े
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वो लगातार कोशिश करती रहीं. बेंगलुरु में कोई उन्हें कैफ़े खोलने के लिए जगह देने को तैयार न था. इस मुश्किल समय में हुबली (कर्नाटक) के देशपांडे फ़ाउंडेशन ने अलीना की मदद की. उन्होने एक गोदाम में कैफ़े चलाने की अनुमति दे दी. दूसरे स्टूडेंट्स की मदद से वो इसाक सेटअप करने में कामयाब रहीं. उनकी पहली कर्मचारी एक दिव्यांग कीर्ती थीं, जो व्हीलचेयर न होने के कारण ज़मीन पर सरकते हुए उनके पास आईं थीं.
खुल चुके हैं अब तक 26 आउटलेट
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ग़रीब होने के चलते वो अपने लिए व्हीलचेर नहीं ख़रीद सकती थीं. कीर्ती और अलीना ने मिलकर इस कैफ़े को हिट किया. इस कैफ़े में नौकरी करने के बाद न सिर्फ़ उन्होंने अपने लिए व्हीलचेयर ख़रीदी बल्कि अपने परिवार को भी सपोर्ट किया. कीर्ती अब हुबली वाले कैफ़े की मैनेजर हैं. पहले कैफ़े की सफ़लता के बाद मिट्टी कैफ़े के दिल्ली, कोलकाता और कर्नाटक में क़रीब 26 आउटलेट हैं अब तक खोले जा चुके है.
दिव्यांग लोग करते हैं यहां काम
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वहां तकरीबन 250 से अधिक दिव्यांग और बौद्धिक अक्षमताओं वाले लोग काम करते हैं. यहां चाय-कॉफ़ी के साथ ही मैगी, व्रैप, पास्ता, छोले भटूरे आदि भी परोसे जाते हैं. इनका एक कैफ़े केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भी है और ये 24 घंटे ओपन रहता है. किसी एयरपोर्ट पर दिव्यांगों द्वारा चलाया जाने वाला ये एकमात्र कैफ़े है.
2700 दिव्यांगों को दे चुकी हैं ट्रेनिंग
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इनके कैफ़े के ज़रिये बहुत से ऐसे शारीरिक रूप से कमज़ोर लोगों को रोज़गार मिला है जिन्हें कोई अपने यहां काम पर नहीं रखना चाहता था. अलीना आलम अधिकतर ऐसे लोगों को काम पर रखती हैं जो सड़क पर भीख मांगते या बेघर उनको मिले. इन्हें वो ट्रेनिंग भी देती हैं. इनके कैफ़े से अब तक 2700 लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है. इनमें से कुछ दूसरी जगहों पर भी ट्रेनिंग देने सहित अन्य काम भी कर रहे हैं.
मिल चुके हैं अवॉर्ड
अलीना को इस कैफ़े के लिए कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. 2022 में ‘आज़ादी का अमृतमहोत्सव’ के दौरान अलीना को Women Transforming India (WTI) अवार्ड से सम्मानित किया था. नीति आयोग ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था.
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आलम का कहना है कि करुणा और साहस वो दो चीज़ें हैं जो इस दुनिया को बदल सकती हैं. महिलाओं में ये बहुत अधिक होता है. उनके इस NGO का मकसद दुनियाभर के लोगों को साथ लाकर दिव्यांगजनों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बना उन्हें सम्मान की ज़िंदगी देना है.
हमारी पूरी टीम की तरफ़ से अलीना आलम को सैल्यूट है.