Disha Malhotra Julka: पीवी सिंधु, साइना नेहवाल, सानिया मिर्ज़ा जैसी बहुत सी भारतीय महिलाएं हैं जिन्होंने खेलों की दुनिया में देश और अपना नाम रौशन किया है. इनके लिए यहां तक आना आसान नहीं था, लेकिन इन्होंने कर दिखाया. वैसे आज भी खेलों की दुनिया में महिलाओं की स्थिति ज़्यादा बदली नहीं है.
महिलाओं को खेल खेलने से लेकर उसमें आगे बढ़ने तक पुरुषों की अपेक्षा बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. फ़ुटबॉल का गेम भी इससे अछूता नहीं है. लेकिन एक ऐसी महिला भी है जो इस खेल में लड़कियों को आगे ला रही हैं और कोच बनने की ट्रेनिंग देकर उन्हें मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी हैं.
हमारे #DearMentor कैंपेन में आज हम आपके लिए उनकी ही ये इंस्पिरेशनल स्टोरी लेकर आए हैं.
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नेशनल टीम का रही हैं हिस्सा
हम बात कर रहे हैं दिल्ली की रहने वाली फ़ुटबॉलर और कोच दिशा मल्होत्रा जुल्का की. वो नेशनल लेवल पर भारतीय टीम में बतौर फ़ुटबॉल प्लेयर खेल चुकी हैं. यही नहीं वो भारतीय टीम की अंडर 17 फ़ुटबॉल टीम के साथ बतौर असिस्टेंट कोच भी काम कर चुकी हैं. दिशा को 2018-19 में बेस्ट फ़ीमेल कोच का अवॉर्ड भी मिल चुका है.
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आसान नहीं था फ़ुटबॉल खेलना
दिशा के लिए ये मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. घरवाले तो सपोर्टिव थे मगर उन्हें बाहर बहुत संघर्ष करना पड़ा. सबसे पहली लड़ाई तो स्कूल के दिनों में शुरू करनी पड़ी क्योंकि उनके स्कूल में कोई फ़ुटबॉल टीम नहीं थी. दिशा को ख़ुद अपने दम पर ऐसी लड़कियों की टीम बनानी पड़ी जो खेल में दिलचस्पी रखती थीं. उस वक़्त दिशा अपने माता-पिता के साथ करोलबाग में रहती थीं.
बनाया अपने स्कूल का पहला फ़ुटबॉल क्लब
उनका स्कूल चाणक्यपुरी में था. उन्होंने अपने स्कूल संस्कृति में पहली महिलाओं की फ़ुटबॉल टीम और क्लब बनाया था. वो अपने साथ खेलने के लिए लड़कियों को ढूंढ-ढूंढ कर लाती थीं. 12वीं के बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई और अमेरिका आगे की पढ़ाई करने चली गई. यहां मिशिगन विश्वविद्यालय से Bachelors of Art in Sport Management की डिग्री हासिल की.
F.A. लेवल 2 लाइसेंस पाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं
वो इस दौरान एक फ़ुटबॉल क्लब के साथ फ़ुटबॉल भी खेलती थीं. डिग्री हासिल करने के दौरान ही उन्होंने ठान लिया था कि वो भारत जाएंगी और महिलाओं को इस खेल को खेलने और उन्हें इसमें आगे बढ़ाने की दिशा में काम करेंगी. हुआ भी ऐसा ही. दिल्ली वापस आने के बाद दिशा ने एक फ़ुटबॉल क्लब जॉइन किया और कोचिंग देने लगी. वो एफ़. ए. लेवल 2 लाइसेंस पाने वाली पहली भारतीय महिला कोच बनी.
ग्रामीण महिलाओं को सिखाई फ़ुटबॉल
इसके बाद उन्हें भारत की अंडर 17 फ़ुटबॉल टीम को भी कोचिंग देने का काम मिला. प्लेयर्स कोचिंग देने के साथ ही दिशा ने Naandi Foundation एनजीओ के साथ हाथ मिलाया. इनके प्रोजेक्ट Game Changers के तहत ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को सॉकर यानी फ़ुटबॉल खेलने को प्रेरित किया. इस प्रोजेक्ट के तहत दिशा ने सैंकड़ों महिलाओं को फ़ुटबॉल की एबीसीडी सिखाई और उन्हें कोच बनने के लिए ट्रेन किया.
महिलाओं को बना रही हैं कोच
दिशा को यहां भी संघर्ष करना पड़ा. क्योंकि महिलाएं बहुत कम ही खेलने में ध्यान देतीं, उनकी प्राथमिकताएं रोज़ी कमाना या घर संभालना था. इसका तोड़ निकालते हुए दिशा ने छुट्टी यानी संडे के दिन उन्हें फ़ुटबॉल का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया. इसमें उन्होंने कामयाबी पाई और गुजरात से 12 महिलाओं को पहली बार D लेवल का कोचिंग सर्टिफ़ीकेट दिलवाने में कामयाबी हासिल की. ये All Indian Football Federation (AIFF) से मान्यता प्राप्त है.
इस स्कूल की हैं हेड कोच
ट्रेनिंग देने के साथ ही उन्होंने नंदी सुपर लीग के टूर्नामेंट का भी आयोजन किया ताकि लड़कियों को ट्रेनिंग के साथ एक्सपीरियंस भी मिल सके. इसके अलावा वो Sudheva Residential Football School से भी जुड़ी हैं. यहां भावी-पीढ़ी को पढ़ाई के साथ ही फ़ुटबॉल की कोचिंग भी दी जाती है. वो इसकी हेड कोच भी हैं. यहां भी वो महिलाओं को फ़ुटबॉल सिखा और उन्हें कोच बनने की ट्रेनिंग दे रही हैं.
महिला कोच की संख्या बढ़ाना है उद्देश्य
दिशा मल्होत्रा जुल्का का मानना है कि महिला कोच की संख्या बढ़ाकर वो इस खेल में औरतों की स्थिति को सुधार सकती हैं. इससे अधिक से अधिक महिलाएं फ़ुटबॉल को अपनाने के लिए आगे आएंगी. ये भारत में महिला कोच को रखने की प्रवृत्ति को बढ़ाने में भी सहायक होगा. इस काम में वो ज़िंदगी भर लगी रहेंगी.