Electrician Devi Bihar: पेशा कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता और न ही महिलाओं और पुरुषों में बंटा होता है. मगर हमारे समाज में आज भी कुछ पेशे ऐसे हैं जिन पर पुरुषों का लेबल लगा दिया गया है फिर चाहे उनकी उसकी नॉलेज हो या न हो. घर हो या बाहर हर किसी का माइंड सेट है कि ये पुरुषों का काम है वो कर ही लेंगे. जैसे, घर में पंखा, बल्ब, बिजली, कूलर आदि ख़राब होता है तो घर के पुरुषों को आवाज़ लगाई जाती है. इलेक्ट्रिशियन भी बुलाया जाएगा तो भी पुरुष ही होगा.
महिलाएं ख़ुद भी इन तारों में नहीं उलझना चाहतीं. मगर कहीं-कहीं अब घरों में महिलाएं बिजली के काम ख़ुद कर लेती हैं. जहां महिलाओं को ऐसा लगता है कि, ये काम उनके बस का नहीं है. ऐसी महिलाओं को बिहार के गया की इलेक्ट्रीशियन देवी (Electrician Devi Bihar) से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो अपने घर की रौशनी ही नहीं, बल्कि कई घरों की रौशनी लाने का काम कर रही हैं.
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चलिए जानते हैं कि, ये ‘इलेक्ट्रीशियन देवी’ कौन हैं और कैसे उनको ये नाम मिला?
बिहार के गया ज़िले की रहने वाली सीता देवी को ही इलेक्ट्रीशियन देवी (Electrician Devi Bihar) के नाम से जाना जाता है. इस नाम से मशहूर होने से पहले सीता एक साधारण सी गृहणी थी, जिसे पति, बच्चे और घर के अलावा कुछ नहीं दिखता था. मगर ज़िंदगी ने ऐसी करवट बदली कि घर की दहलीज़ को लांघ कर बाहर निकलना पड़ा और कमाना पड़ा. सीता ने कमाई का साधन उसे ही बनाया, जो उसके पति की दुकान थी.
दरअसल, सीता देवी के पति जितेंद्र मिस्त्री एक इलेक्ट्रीशियन हैं, जो घर हो या दुकान दोनों ही जगह बिजली से संबंधित उलझनें सुलझाते थे. सीता भी कोई चीज़ ख़राब होने पर अपने पति को ही कहती थीं, लेकिन एक दिन ऐसा आया जब इनके पति काफ़ी बीमार रहने लगे और दुकान पर भी जाना कम कर दिया. इससे सीता को घर चलाने में दिक्कतें होने लगी.
सीता अपने पति का दुकान में हाथ बंटाती थीं, लेकिन धीरे-धीरे उनके पति के लीवर में सूजन ज़्यादा बढ़ने से बिल्कुल दुकान जाना बंद कर दिया. फिर सीता ने अपने पति की जगह सारी ज़िम्मेदारी ख़ुद उठा ली. सीता ने अपने पति से ही बिजली के उपकरण ठीक करना सीखा पहले वो हेल्पर के तौर पर काम करती थीं और अब सारा दारोमदार उन्हीं पर है. सीता बताती हैं कि,
मेरे पति ने मुझे कुछ उपकरण जैसे, पंखा, मिक्सर, लाइट ठीक करना सिखाया. इन्हीं उपकरणों की शिकायत ज़्यादा आती है. पहले पति की हेल्पर थी और अब काम में माहिर हो चुकी हूं. इसलिए मैंने उन्हें आराम करने दिया और ख़ुद सब कुछ संभाल लिया.
सीता की ये कहानी सुनने में जितनी आसान लगती है उसे जीना उतना ही मुश्किल था क्योंकि जब सीता ने दुकान संभाली तो उनका एक बेटा महज़ 1 साल का था. सीता अपने बेटे क दुकान लेकर जातीं और ज़रूरत पड़ने पर कस्टमर के घर भी लेकर जाती थीं. बच्चों और घर की ज़िम्मेदारी उठाने के साथ-साथ उन्हें समाज के और रिश्तेदारों के भी ताने सुनने पड़े, जिन्हें उनका काम करना शोभा नहीं देता था.
सीता कहती हैं,
काम करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि मुझे अपने घर को चलाना था, बच्चों की पढ़ाई, उनके खाने, पति की दवाइयों के लिए पैसे जोड़ने थे. सबने ताने तो ख़ूब मारे लेकिन किसी ने भी मेरे घर की ज़िम्मेदारी नहीं उठाई. उनका कहना था कि, ये आदमियों का काम है. काम करना ही है तो औरतों वाले काम करो, लेकिन मुझे अपने काम पर भरोसा था और मैंने इसे ही चुना.
मेरे पति मेरे साथ थे उन्होंने कहा,
मेरे ग्राहकों का मुझ पर विश्वास है और इस विश्वास को तुम्हें बनाए रखना है. इसलिए दुनिया की परवाह किए बिना तुम वो करो जो तुम कर रही हो.
सीता देवी अपने ज़िले की पहली महिला इलेक्ट्रीशियन हैं. 15 साल पहले की ज़िंदगी और अबकी ज़िंदगी में बहुत अंतर आ चुका है. आज सीता देवी एक मां, पत्नी होने के साथ-साथ एक बेहतरीन कारीगर भी हैं. जिन पर कई लोग भरोसा करते हैं. सीता की दुकान काशीमोड़ पर स्थित है, जिससे वो रोज़ की क़रीब 1000 से 1200 रुपये तक की कमाई कर लेती हैं.
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सीता के बेटे अब बड़े हो चुके हैं जो दुकान में अपनी मां का हाथ बंटाते हैं. इनकी दुकान अच्छी चलती है और सीता का घर भी अब संपन्न है. सीता के काम को इतनी सराहना मिली कि वो सीता से पूरे ज़िले की इलेक्ट्रीशियन देवी बन गईं.
परेशानियों में रोकर, थककर हारने से अच्छा अपने आस-पास देखो और वो करने की कोशिश करो जो आपकी क्षमता है. इससे न तो दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा और न ही किसी के आगे हाथ फैलाने पड़ेंगे. सीता देवी चाहती तो हाथ फैला सकती थीं, लेकिन वो अपने आत्मविश्वास के साथ खड़ी हुईं और उस पेशे को अपनाया जिसमें एक महिला को तो सोचा भी नहीं जा सकता. इसलिए, नामुमकिन कुछ भी नहीं है अगर कोशिश की जाए तो.