प्राचीनकाल से ही महिलाएं समाज में किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण योगदान देती आ रही हैं. इतिहास में कई महिलाएं ऐसी हुई, जिन्होंने अन्याय के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ी. बचपन में हमने इतिहास के पन्नों में इन गौरवशाली महिलाओं की कहानियां भी पढ़ी हैं. ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी भोपाल की ‘सुल्तान जहां बेगम’ की भी है.
सुल्तान जहां बेगम कौन थीं?
सुल्तान बेग़म के इन्हीं कार्यों की वजह से उन्हें समाजसेवी और उन्नतिशील नवाब बेग़म के रूप में पहचाना जाता है.
भोपाल की सियासत
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अहम योगदान
कहते हैं कि शेख़ अब्दुल्ला ने अलीगढ़ में एक ‘गर्ल्स स्कूल’ भी शुरू किया था, जिसमें बेग़म हर महीने 100 रुपये दान करती थीं. शिक्षा के प्रति उनके योगदानों को देखते हुए उन्हें 1914 में भारतीय मुस्लिम महिला संघ की अध्यक्ष बना दिया गया था.
भोपाल की बेग़म ने सिर्फ़ शिक्षा ही नहीं, बल्कि पुलिस, सेना, कृषि, स्वास्थ्य और स्वच्छता सुधार के लिये बहुत कार्य किया. उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान क़रीब 26 क़िताबें भी लिखीं थीं. 25 साल भोपाल पर राज करने वाली बेग़म ने 1926 में अपने पुत्र हमीदुल्ला ख़ान के लिये सिंहासन छोड़ा. इसके बाद 71 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.