महारानी अहिल्याबाई होल्कर. इतिहास की वो महारानी जो एक बहादुर योद्धा, प्रभावशाली शासक और कुशल राजनीतिज्ञ थीं. अहिल्याबाई होल्कर का जन्म अहमदनगर के चोंडी गांव में हुआ था. अहिल्याबाई होल्कर के पिता नकोजी राव शिंदे गांव के मुखिया हुआ करते थे. अहिल्याबाई होलकर स्कूल नहीं गई, लेकिन उनके पिता ने उन्हें घर पर रह कर शिक्षित किया.  

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साधारण घर की बच्ची कैसे बनी एक राजा की बहू 

कहा जाता है कि एक बार मालवा राज्य के पेशवा (राजा) मल्हार राव होल्कर चोंडी गांव में आराम करने के लिये रुके थे. इस दौरान उन्होंने देखा एक बच्ची ग़रीबों को खाना खिला रही थीं. 8 साल की बच्ची का ये रूप देख पेशवा बहुत प्रसन्न हुए और बच्ची का हाथ अपने पुत्र खांडेराव होलकर के लिये मांग लिया. ये बच्ची कोई और नहीं, बल्कि अहिल्याबाई थी. 

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21 साल की उम्र में खो दिया पति

8 साल की उम्र में अहिल्याबाई खांडेराव की महारानी बन कर मालवा आ गईं. मासूम सी बच्ची को पता भी नहीं था कि खेलने-कूदने की उम्र में उसके ऊपर दुख पहाड़ टूटने वाले हैं. 1754 में कुम्भार युद्ध छिड़ा और उसमें उन्होंने अपने पति खांडेराव को खो दिया. महज़ 21 साल की उम्र में वो विधवा हो चुकी थीं. इस दौरान अहिल्याबाई ने पति के साथ सति होने का फ़ैसला लिया, लेकिन उनके ससुर ने उन्हें सति होने से बचा लिया.

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इसके बाद 1766 में अहिल्याबाई के ससुर का भी देहांत हो गया. पति और ससुर को खोने के बाद राज्य की ज़िम्मेदारी उनके बेटे मालेराव होलकर को सौंप दी गई. क़िस्मत देखिये 1767 में उनके बेटे मालेराव की भी मृत्यु हो गई. पति, ससुर और बेटे को खोने के बाद अहिल्याबाई खु़द बिखर चुकी थीं, लेकिन उन्होंने अपने राज्य को बिखरने नहीं दिया.

जब अहिल्याबाई ने संभाली इंदौर की गद्दी

राज्य की जनता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए महारानी अहिल्याबाई 11 दिसंबर 1767 को इंदौर की शासक बन गईं. राज्य की कमान हाथ में लेते ही महारानी अहिल्याबाई ने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया. मालवा को लूटने आये लोगों से उसकी रक्षा की. इसके साथ ही समय-समय पर दुश्मनों को मुंह-तोड़ जवाब भी दिया. 

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भांप ली थी अंग्रज़ों की चाल 

कहा जाता है कि महारानी अहिल्याबाई एक सिर्फ़ बहादुर योद्धा और शासक ही नहीं, बल्कि अच्छी राजनीतिज्ञ भी थीं. 1772 के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के इरादों को पहचान लिया और फ़ौरन पेशवा को आगाह करते हुए एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने कहा था कि अंग्रेज़ों की चाल को समझें, क्योंकि वो उस जानवर की तरह हैं जिस पर विजय पाना आसान नहीं है.  

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महारानी अहिल्याबाई ने इंदौर पर लगभग 30 साल तक शासन किया और एक छोटे से गांव को शहर बना दिया. उनके शासन में व्यापारों को बढ़ावा मिला और इसके साथ किसान भी आत्मनिर्भर बनें. 70 साल की उम्र में बहादुर योद्धा ने दुनिया को अलविदा कहा, जिसके बाद उनके क़रीबी तुकोजीराव होलकर ने राज्य का कार्यभार संभाला.