एक दौर था जब महिलाओं के लिए एक सीमा थी, जिसे वो पार करना चाहें भी तो शिक्षा की कमी, बाहरी समझ की कमी और कहीं न कहीं आर्थिक कमी रोक लेती थी. मगर आज के दौर में ये सब बदल चुका है. आज महिलाएं शिक्षित हैं, ख़ुद के लिए कमा सकती हैं. इससे उनमें आत्मविश्वास पनपा है. अब उन्हें कोई सीमा नहीं रोक पाती, वो बेहद होकर अपने सपनों को जी रही हैं और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं.
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ऐसी ही एक 2010 बैच की महिला आईएएस ऑफ़िसर हैं दिव्या देवराजन, जिन्होंने पूरी ईमानदारी से अपने कार्य को किया. इसके बदले में तोहफ़े के रूप में आदिवासी लोगों ने अपने गांव का नाम उनके नाम पर दिव्यागुड़ा रखा.
इसके पीछे की कहानी दिव्या बताती हैं कि जब 2017 में जब आदिवासी लोगों की कई समस्याओं की ख़बरें आ रही थीं. उसी समय इनकी पोस्टिंग तेलंगाना के आदिलाबाद में हुई. उन्होंने The Better India को बताया,
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आदिवासियों पर बढ़ रहे संकट के चलते मेरी पोस्टिंग आनन-फ़ानन में आदिलबाद में कर दी गई. मैं एक रात का सफ़र तय कर वहां पहुंची. मैंने कार्यभार संभालने के बाद वहां की परेशानियों को समझा. मैं समझ गई कि चीज़ों को बात करके सुधारा जा सकता है. इसलिए मैंने 3 महीने में उनकी गोंडी भाषा सीखी.
उन्होंने आगे बताया,
लोग अपनी बातें कहना चाहते थे. जब उन्हें लगा कि मैं उनकी भाषा बोल सकती हूं, तो वो मुझसे बात करने में सहज होने लगे.
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दिव्या ने कई सरकारी अस्पतालों में विशेष आदिवासी समन्वयकों और भाषा अनुवादकों की नियुक्ति की. साथ ही आदिवासी लोगों का प्रशासनिक कार्यालय पहुंचने का रास्ता आसान किया. अपनी इन्हीं कोशिशों के चलते वो इन आदिवासी लोगों की ‘अधिकारी मैडम’ बन गईं. बस इन्हें सम्मान देने के लिए ग्रामीणों ने उनके ही नाम पर गांव का नाम रख दिया.
इसके अलावा दिव्या ने अशिक्षा, बेरोजगारी, स्वच्छता, सिंचाई, स्वास्थ्य और बाढ़ जैसे मुद्दों पर भी काम किया. दिव्या बताती हैं,
मैंने आदिवासियों के मुद्दों के गंभीरता से समझने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया. ताकि मैं अपनी समझ के साथ-साथ और लोगों की भी सोच को समझ पाऊं.
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अंतरजातीय हिंसा, कर्फ़्यू और डेटा कनेक्टिविटी बंद करने जैसे मुद्दों से जूझ रहे लोगों को उभारने वाली दिव्या ने इन लोगों के दिलों में जल्द ही अपनी जगह बना ली.
थोटी समुदाय के एक आदिवासी नेता मारूति, जिन्होंने गांव का नाम, दिव्यगुड़ा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने The Better India के बताया, दिव्या मैम के आने पर सबने यहां काम को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. मैं भी इससे पहले कभी कार्यालय नहीं गया, लेकिन जबसे मैमआईं मैंने भी कार्यालय जाना शुरू किया.
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दिव्या के बारे में बताते हुए कहा,
उन्होंने हर शख़्स का कार्यालय तक पहुंचना आसान बनाया. वो गांव के हर घर का दौरा करती थीं और हर एक का नाम जानती थीं. इसके अलावा जहां मारुति रहते हैं, वहां हर साल बाढ़ आने की संभावना रहती है. दिव्या ने कार्यभार संभालने के बाद उस जगह को समतल कराने का काम शुरू करवाया, जिससे लोगों को काफ़ी राहत मिली.
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बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग करने वाली दिव्या की प्रेरणा उनके पापा और दादा रहे हैं. उन्हीं को देखकर उनके अंदर लोगों की सेवा करने की भावना जागी. इनके दादा एक किसान थे और पापा तमिलनाडु बिजली बोर्ड में कार्यरत थे. फ़िलहाल दिव्या का आदिलाबाद से तबादला हो चुका है और 2020 मे उन्हें महिला, बाल, विकलांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सचिव और आयुक्त के पद पर नियुक्त किया गया है.
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