जब संघर्ष के दिनों में मनोज बाजपेयी को वड़ा पाव ख़रीदना भी लगता था महंगा, किराये के नहीं थे पैसे

Kratika Nigam

सुशांत सिंह राजपूत के दुनिया को अलविदा कहने के बाद से बॉलीवुड की कई हस्तियां खुलकर अपने संघर्षों की कहानी बयां कर रही हैं. उनके साथ क्या हुआ? वो भी मूवी माफ़िया की बदसलूकी का शिकार हुए थे, उन्हें भी यहां जगह बनाने में कितना संघर्ष करना पड़ा. इन सबके बारे में दिल से बात कर रहे हैं. सोचने वाली बात ये है कि ये सब आउटसाइडर्स हैं. इन्हें बॉलीवुड में टैलेंट से नहीं, बल्कि ये जहां से आते हैं उसके हिसाब से काम मिलता है. अब एक्टर मनोज बाजपेयी ने भी अपने शुरुआती दिनों के संघर्ष के बारे में Humans Of Bombay से बात की है.

बैंडिट क्वीन के मंगल से सत्या के भीकू म्हात्रे और फिर नेशनल अवॉर्ड विनर बनने का सफ़र बहुत ही संघर्षों भरा था. मनोज बाजपेयी ने स्ट्रगल के दिनों को याद करते हुए कई चौंकाने वाले खुलासे किए. उन्होंने कहा,

9 साल की उम्र में मैं जानता था कि मैं एक्टिंग के लिए बना हूं. मैं एक किसान का बेटा हूँ. मैं बिहार में 5 भाई-बहनों के साथ पला-बढ़ा हूं. हम एक झोपड़ी वाले स्कूल में पढ़ने जाते थे. हमारा जीवन बहुत ही साधारण सा था, लेकिन जब भी हम शहर जाते, तो हम थियेटर ज़रूर जाते थे क्योंकि मैं अमिताभ बच्चन का बहुत बड़ा फ़ैन था और उनके जैसा बनना चाहता था. 9 साल की उम्र में मुझे पता था कि अभिनय ही है जो मुझे अपनी ओर खींचता है, लेकिन मैं अपने सपने को जी नहीं सकता था इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. मगर मेरा दिमाग़ कहीं और लगता ही नहीं था. फिर 17 साल की उम्र में मैं डीयू के लिए रवाना हुआ. वहां, मैंने थिएटर किया लेकिन मेरे परिवार को ये पता नहीं था. आख़िरकार, मैंने पिताजी को एक पत्र लिखा, वो नाराज नहीं हुए और उन्होंने मुझे फ़ीस के लिए 200 रुपये भेजे. 
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उन्होंने आगे कहा,

लोग मुझे अक्सर घर वापस जाने के लिए कहते थे, मुझे जताते थे कि मुझमें कोई बात नहीं है, लेकिन मुझे अपने सपने पर भरोसा था. मैं एक आउटसाइडर्स था, इसलिए इन लोगों के बीच फ़िट होने के लिए मैंने अंग्रेज़ी और हिंदी सीखी क्योंकि मैं भोजपुरी बोलता था. इसी दौरान मैंने एनएसडी में एडमिशन के लिए फ़ॉर्म भरा लेकिन मुझे वहां से तीन बार रिजेक्ट कर दिया गया. इसके बाद मेरे मन में आत्महत्या जैसे ख़्याल आने लगे, लेकिन मेरे दोस्तों ने मेरा साथ दिया. वो मेरे बगल में ही सोते थे. मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे, उन्होंने मुझे अपने साथ तब तक रखा जब तक मुझे कोई काम नहीं मिल गया. 
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शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन में रोल मिलने के क़िस्सा बताया,

उस साल, मैं एक चाय की दुकान पर था, जब तिग्मांशु अपनी खटारा स्कूटर पर मुझे ढूंढते हुए आए थे. तिग्मांशु ने कहा, शेखर कपूर मुझे बैंडिट क्वीन में कास्ट करना चाहते हैं. तब मुझे लगा कि अब मुझे मुंबई जाना चाहिए और मैं मुंबई चला गया. मैंने वहां 5 दोस्तों के साथ एक चॉल किराए पर ली और काम की तलाश में जुट गया, लेकिन कोई रोल नहीं मिला. एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने तो एकबार मेरा फ़ोटो फाड़ दिया और मुझे निकल जाने को कहा क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं हीरो फ़ेस नहीं हूं, मैं स्क्रीन पर अच्छा नहीं दिखूंगा. मैंने एक दिन में 3 प्रोजेक्ट खोए हैं. एकबार तो मेरे 1 शॉट के बाद मुझे बाहर निकलने को तक कह दिया गया. उन दिनों मैं चॉल का किराया देने के लिए संघर्ष कर रहा था. मुझे वड़ापाव तक महंगा लगता था, लेकिन मेरे अंदर की उस आग ने मुझे हिम्मत दी, जो सक्सेसफ़ुल बनने के लिए मेरे दिल में जल रही थी.
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मनोज बाजपेयी के संघर्षों का अंत क़रीब 4 साल बाद हुआ, जब उन्हें महेश भट्ट का टीवी सीरियल मिला. इसके बारे में वो कहते हैं,

चार साल के स्ट्रगल के बाद मुझे महेश भट्ट के टीवी सीरीज़ में पहली बार काम मिला, जिसके एक एपिसोड के मुझे 1500 रुपये मिलते थे. वो मेरी पहली कमाई थी. मेरे काम को पहचाना गया और इसके बाद मुझे बॉलीवुड में मेरी पहली फिल्म मिली ‘सत्या’. 
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इतनी मुश्किलों के बाद ‘सत्या’ में भीकू म्हात्रे बनकर मनोज ऐसे छाए कि उन्होंने अपने नाम नेशनल अवॉर्ड कर लिया. इसके बाद उन्होंने मुंबई में अपना घर लिया. मनोज क़रीब 67 फ़िल्में कर चुके हैं. अपने सपनों के बारे में बात करते हुए कहते हैं, अगर सपने देखोगे तो मुश्किलें तो आएंगी. मायने रखता है बस, उस 9 साल के बिहारी लड़के का विश्वास.

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आपको बता दें कि मनोज बाजपेयी ने इंडस्ट्री में जो मुक़ाम बनाया है वो ख़ुद के दम पर बनाया है. उन्हें पद्श्री से नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा फ़िल्म पिंजर के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला था. मनोज बाजपेयी ने हमें कई शानदार फ़िल्में जैसे, अलीगढ़, राजनीति, सत्याग्रह, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर दी हैं, वो अभिषेक चौबे की फ़िल्म ‘सोन चिरैय्या’ में सुशांत सिंह राजपूत के साथ नज़र आए थे. कुछ टाइम पहले इनकी फ़िल्म मिसेज़ सीरियल किलर Netflix पर रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा 2019 में मनोज बाजपेयी ने वेब सीरीज़ ‘द फ़ैमिली मैन’ से अपना डिजिटल डेब्यू भी किया. जल्द जी मनोज बाजपेयी सूरज मेहरा की ‘सूरज पर मंगल भारी’ फ़िल्म में नज़र आएंगे.

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