Martyr Sukhdev Thapar : आज हम जितने सुकून से आज़ाद भारत में जी रहे हैं, उसका श्रेय उन वीर सपूतों और क्रांतिकारियों को जाता है, जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की. अंग्रेज़ी हुकूमत से भारत को छुड़ाने के लिए जो संभव हो सका वीर क्रांतिकारियों ने किया. इसलिए, हमारी एक ज़िम्मेदारी ये भी बनती है कि हम उन्हें याद करें, ताकि आने वाली पीढ़ी भी आज़ादी के नायकों के बलिदान को समझ सकें. इसी क्रम में हम शहीद दिवस पर जानते हैं शहीद सुखदेव के बारे में, जिन्होंने अपनी मृत्यु तक निभाई दोस्ती और अंग्रेज़ी हुकूमत को हिलाने में निभाई अहम भूमिका.
आइये, अब विस्तार से नज़र डालते हैं शहीद सुखदेव (Martyr Sukhdev Thapar) के जीवन पर.
शहीद सुखदेव का जन्म
शहीद सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर (Martyr Sukhdev Thapar) है. उनका जन्म 15 मई 1907 में लुधियाना के नौघरा इलाक़े में हुआ था. उनके पिता का नाम राम लाल था और वहीं माता का नाम रल्ली देवी. माना जाता है कि पिता की मृत्यु के बाद उनका लालन पालन उनके ताऊ लाला अचिंत राम की देखरेख में हुआ. वहीं, सुखदेव के अंदर देशभक्ति की भावना बचपन से ही आ गई थी, क्योंकि उन्होंने अंग्रेज़ों का जुल्म अपनी आंखों से देखा था.
क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य
जैसा कि हमने बताया कि उनके अंदर देशभक्ति की भावन बचपन से ही आ गई थी. वहीं, बड़े होते-होते वो क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य भी बन गए थे. इसी बीच वो भगत सिंह के साथ-साथ चंद्रशेखर आज़ाद के क़रीबी सहयोगी भी बनें. वहीं, उन्होंने पंजाब के साथ-साथ उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में जाकर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया और क्रांतिकारी संगठनों की विभिन्न इकाई बनाने में अहम भूमिका भी निभाई. वहीं, उन्होंने नौजवान भारत सभा को बनाने में भी अपनी भागीदारी दी थी.
अंग्रेज़ी सरकार की नींव हिलाई
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुखदेव (Martyr Sukhdev Thapar) ने भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और बटुकेश्वर बत्त के साथ मिलकर ऐसी कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेज़ी सरकार की नींव हिलाकर रख दी थी. वहीं, इतिहासकार मानते हैं कि सुखदेव (Shaheed Sukhdev) कई क्रांतिकारी आंदोलन की नींंव व रीढ़ रहे.
सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का फ़ैसला
Martyr Sukhdev Thapar : शहीद सुखदेव पर किताब लिख चुके डॉक्टर हरदीप सिंह के अनुसार, सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की ज़िम्मेदारी पहले भगत सिंह को नहीं दी गई थी. इस विषय में जब बैठक हुई तब पार्टी ने ये फ़ैसला किया था कि भगत सिंह को न भेजा जाए, क्योंकि पुलिस पहले से ही उनकी तलाश में थी. लेकिन, वो सुखदेव जी ही थे जिन्होंने कहा था कि असेंबली में बम फेंकने भगत सिंह ही जाएंगे, क्योंकि इस काम के लिए एक ऐसे प्रभावी व्यक्ति की ज़रूरत थी, जिसकी गिरफ़्तारी से आम जनता जागृत हो. दोस्त का ये फ़ैसला भगत सिंह को पसंद आया था.
मृत्यु तक निभाई दोस्ती
Martyr Sukhdev Thapar और भगत सिंह की दोस्ती इतनी गहरी थी कि जब मौत भी आई तो दोनों को साथ. सुखदेव (Shaheed Sukhdev) ने अपनी मृत्यु तक दोस्त भगत सिंह के साथ अपनी दोस्ती निभाई. 23 मार्च 1931 वो दिन था जब लाहौर षडयंत्र मामले में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेज़ी सरकार ने फांसी के फंदे पर लटकाया था. उनपर एकतरफ़ा अदलाती कार्रवाई हुई थी. आज़ादी के इन तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपनी जान मुस्कुराते हुए न्योछावर कर दी.