23, एक ऐसी उम्र जिसमें मैंने ढंग से ख़ुद को ही नहीं जाना था और 23 की उम्र में पूरे देश के लिए फांसी के फंदे को चूमा. भगत सिंह एक ऐसा नाम जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पर्याय है. जिसकी एक हुंकार ने अंग्रेज़ों के पैरों तले की ज़मीन खिसका दी. 


क्या हुआ जब भगत सिंह शहीद होने के एक ज़माने के बाद अपने हिन्दुस्तान से मिलने आए, पढ़िए.

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1. जब भगत सिंह पहुंचे राज घाट के बाहर 

Peacock Ride

अरे ये दिल्ली को क्या हो गया है, टोपी, पतली मूंछों, साधारण सफ़ेद शर्ट और पैंट पहने वो शख़्स सोचने लगा. तभी उनका चेहरा छपी हुई एक गाड़ी, लगभग उसे टक्कर मारती हुई निकल गई. वो संभले और एक गाड़ी पर अपनी शक़्ल देखते हुए सोच ही रहे थे कि सामने से आवाज़ आई,

‘आर यू फ़किंग ब्लाइंड, मरेगा ब#$चो@!’
गाड़ी धुंआ उड़ाती और तेज़ संगीत बजाती निकल गई, भगत सोचते रह गए और धीमे से ख़ुद से कहा, ‘मेरी शक़्ल तो जनाब ने गाड़ी पर चिपका ली, मुझे असलियत में भी पहचान लिया होता’. भगत सिंह अंदर गए बापू को प्रणाम कहा और हल्की सी मुस्कान लिए न जाने क्या सोचते हुए निकल आए.

2. जब भगत सिंह पहुंचे एक यूनिवर्सिटी के बाहर

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The Indian Express

अरे-अरे यहां तो कई मतवाले दिख रहे हैं, भगत ने मन ही मन सोचा. ये क्या, यहां भी मेरे पोस्टर हैं. सही है, लोगों ने याद तो रखा है हमें. अरे ये क्या, ये कौन इन्हें मार रहे हैं, ये तो पुलिस नहीं है. ये तो नक़ाबपोश हैं, अंबेडकर साहब ने तो बताया था कि उन्होंने संविधान की रचना कर दी है तो फिर ये कैसी अराजकता. ये नक़ाबपोश छात्रों को क्यों पीट रहे हैं, अरे यहां तो पुलिस भी है, ये मैं क्या देख रहा हूं! निहत्थे छात्रों और शिक्षकों पर बात. तभी किसी ने भगत की ओर चिल्लाकर कहा, ‘ये खड़ा सब देख रहा है, घेर लो इस कौमी, लिब्रांडू को.’ 

जैसे ही भगत की ओर लाठीधारी पहुंचे, 4-5 छात्र-छात्राएं उनके आगे आ गए और उन्हें बचा लिया. भगत की आंखें छलछला आईं कि अब भी इस अराजकता के बीच कुछ ऐसे लोग हैं जो दूसरों की सहायता कर रहे हैं. 

3. जब भगत सिंह पहुंचे एक ‘हिन्दू राष्ट्र’ की मांग करती छात्र सभा में

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ये क्या देख रहा हूं मैं! हर तरफ़ रंग केसरिया. अहा, कितना मनोरम दृश्य है. भगत को अपना आख़िरी सफ़र याद आ गया, वो मस्ती में ‘मेरा रंग दे बसंती चोला, माय रंग दे’ गाने लगे. इतने में उनका ध्यान मंच पर से भाषण देती लड़की पर गया. वो ‘अखंड हिन्दू राष्ट्र’ की बात कर रही थी. साथ ही भगत का ध्यान मंच पर लगे बड़े से पोस्टर पर भी गया जिसमें बापू, सुखदेव, राजगुरू और ख़ुद उनकी तस्वीर थी. भगत सोच में पड़ गए कि मैं तो ठहरा नास्तिक तो मेरी तस्वीर लगाकर ये एक धर्म की बात कैसे कर सकती हैं. इससे पहले की वो कुछ कह पाते कि किसी ने पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे शुरू कर दिए. भगत को याद आया कि उनकी जन्मस्थली अब हिन्दुस्तान नहीं पाकिस्तान है. भगत को अपना घर-द्वार, खेत, मां याद आ गईं. भगत से उन नफ़रत भरे बोल के बीच रुका न गया.

4. जब भगत पहुंचे उत्तर-पूर्वी दिल्ली 

Gulf Today

एक तरफ़ ख़ून से लतपथ सफ़ेद कपड़ों में दाढ़ी वाला एक शख़्स पड़ा था वहीं दूसरी तरफ़ जलते मकान थे. इससे पहले भगत कुछ कर पाते उनके सामने, पेट्रोल बम आकर गिरा और आग लग गई, भगत बाल-बाल बचे. भगत को अपना असेंब्ली में बम फेंकना याद आया और अपनी बात याद आई ‘बहरों को सुनाने के लिए बम के धमाकों की ज़रूरत पड़ती है.’ भगत के गाल भिगने लगे, वो एक तरफ़ हिन्दुस्तान की जलती राजधानी देख रहे थे और दूसरी तरफ़ धर्म के नाम पर नंगी होती इंसानियत. भगत उस शख़्स को बचाने के लिए बढ़ने ही वाले थे कि कुछ लोगों ने उन्हें पकड़ लिया. बता तू मूल्ला है या हिन्दू, बता. भगत ने शांत लहज़े में जवाब दिया, ‘मैं नास्तिक हूं.’

5. जब भगत पहुंचे संसद

Money Control

तो यहां बैठते हैं हिन्दुस्तान के भूरे बाबु लोग. वाह भाई, तो ये है सेक्यूलर, सोशलिस्ट रिपब्लिक. दुनिया के सबसे लंबे संविधान, सबसे बड़े गणतंत्र की संसद. मानना पड़ेगा हमारे यहां के आर्किटेक्चर को. भगत प्रवेश द्वार का पता पूछने ही वाले थे कि एक खद्दर धारी ने आवाज़ लगाई, अरे आपने तो हद ही कर दी, श्रीमान्! लोग ट्वीट करके और पोस्टर लगाते हैं, आप तो ख़ुद भगत सिंह का भेष बनाकर आ गए! हो हो हो. अगले महीने मैं गांधी बन कर आऊंगा. आज मैं भगत के बारे में पढ़कर आया हूं, वो हिन्दू थे और ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जे’ गाते थे. आज कोई रिपोर्टर मेरी हंसी नहीं उड़ा पाएगा.’ भगत कुछ कह पाते कि उनको कई माइकधारियों ने घेर लिया. कई कैमरे उनकी तरफ़ ताकने लगे. एक माइकधारी चिल्ला-चिल्लाकर पूछने लगा, ‘क्या ये विपक्ष की नई चाल है, नहीं आप मोदी को चैन से काम करने क्यों नहीं देना चाहते? आपकी परेशानी क्या है? जवाब दीजिए. चुप क्यों हैं? तो क्या मैं समझ लूं आप बस पब्लिसिटी चाहते थे. बताइए, मैं सवाल करता रहूंगा. बताइए. चुप क्यों हो विपक्षी ढोंगी. कैमरे पर देखकर बात करो. तुम छिप नहीं सकते.’ भगत सिंह के कान में तेज़ दर्द उठा. तभी पीछे से आवाज़ आई. ‘भगत इधर चले आओ, बेटा.’ भगत ने देखा अंबेडकर, गांधी, नेहरू उन्हें बुला रहे हैं. भगत भारी मन से हिन्दुस्तान के बारे में सोचते हुए लौट गए…