राजस्थान का मशहूर ‘आमेर का क़िला’ जयपुर की आन, बान और शान है. इस ख़ूबसूरत क़िले को देखने हर साल लाखों भारतीय और विदेशी पर्यटक जयपुर आते हैं. इस ऐतिहासिक क़िले की स्थापना 967 ईसवी में राजा आलन सिंह ने की थी. बाद में आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने इसका पुनर्निर्माण कराया. साल 2013 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था.
जयपुर सिटी से क़रीब 11 किलोमीटर की दूरी पर ‘अरावली पहाड़ी’ की चोटी पर स्थित ‘आमेर का क़िला’ राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण एवं सबसे विशाल क़िलों में से एक है. लाल बलुआ पत्थर एवं संगमरमर से बना ये क़िला अपनी अनूठी वास्तुशैली और शानदार संरचना के लिए काफ़ी मशहूर है. ये राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से भी एक है.
इस क़िले की आकर्षक डिज़ाइन और भव्यता को देखते हुए इसे ‘विश्व विरासत’ की लिस्ट में शामिल किया गया है. हिंदू-राजपूताना वास्तुशैली से बना ये अनूठा क़िला भारत के समृद्ध इतिहास एवं भव्य स्थापत्य कला का नायाब नमूना है. भारत के सबसे प्राचीनतम क़िलों में से एक ‘आमेर के क़िले’ को पहले ‘कदीमी महल’ के नाम से भी जाना जाता था, इस महल के अंदर ‘शीला माता देवी’ का मशहूर मंदिर भी स्थित है, जिसका निर्माण राजा मान सिंह द्वारा करवाया गया था.
इतिहासकारों की मानें तो इस ऐतिहासिक क़िले का पूर्ण निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया था. इस दौरान क़रीब 150 सालों तक राजा मानसिंह के उत्तराधिकारियों और शासकों ने इस क़िले का विस्तार और नवीनीकरण का काम किया. सन 1727 में सवाई जय सिंह ने अपनी राजधानी आमेर से जयपुर शिफ़्ट कर दी थे.
बताया जाता है कि इस क़िले का नाम आमेर, भगवान शिव के नाम ‘अंबिकेश्वर’ पर रखा गया था. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इसका नाम मां दुर्गा का नाम ‘अंबा’ से लिया गया है.
इस क़िले के इतिहास के बारे में तो जान लिया. चलिए अब इसकी 100 साल पुरानी इन तस्वीरों को भी देख लीजिए-
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