किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टांग से
बिलकुल बेखबर
हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक, केदारनाथ सिंह (Kedarnath Singh) ने ‘बनारस’ कविता में महादेव की काशी का कुछ ऐसा वर्णन किया. वाराणसी (Varanasi), एक ऐसा शहर जो संस्कृति है और संस्कृति से भी पुराना है, जो ऐतिहासिक है और इतिहास से भी पुराना है, जितना पुराना है उतना ही नया भी लगता है. भगवान शिव की प्रिय काशी (Kashi) का अपना ही रंग है, ढंग है. जो इक बार काशी आता है, यहीं का होकर रह जाता है. गंगा के तट पर बसा इस शहर का अपना ही मिजाज़ है. ऋग्वेद में भी काशी का वर्णन मिलता है. विश्व के सबसे पुराने शहरों में से एक काशी.
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चलिये, अतीत में झांकते हैं और काशी की कुछ पुरानी तस्वीरें देखते हैं-
1. बनारस के घाट, 1890

2. बनारस के घाट पर गंगा स्नान, 1870-1880 के बीच

3. बनारस गंगा घाट, 1890

4. दुर्गा मंदिर, रामगनर, 1893
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5. बनारस के साधु-संत, 1890

6. मणिकर्निका घाट, 1870

7. गंगा घाट, 1870

8. नेपाली मंदिर, 1860

9. नेपाली मंदिर, 1860
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10. इंदौर के महाराज का किला, 1890s

11. औरंगज़ेब मस्जिद, 1890s

12. गंगा घाट, 1890s

13. ज्ञानवापी कुंआ, 1870

14. मणिकर्निका घाट, 1880s
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15. काशी के घाट, 1880s

16. काशी विश्वनाथ मंदिर, 1860s

17. काशी विश्वनाथ मंदिर, 1865

18. सिंधिया घाट पर हाथ से रंगे हुये नाव,

पेशकश कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में बताइये.
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