भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 को पंजाब के अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब (गोल्डन टेंपल) परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए ‘आपरेशन ब्लू स्टार’ (Operation Blue Star) चलाया था. भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 जवान शहीद हो गए जबकि 249 घायल हो गए थे. इस दौरान 493 चरमपंथी या आम नागरिक भी मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ़्तार किया गया.

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सन 1970 के दशक में अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों के तौर पर पंजाब की राजनीति में खींचतान शुरू हुई थी. सन 1973 और 1978 में ‘अकाली दल’ ने ‘आनंदपुर साहिब प्रस्ताव’ पारित किया. इस प्रस्ताव के मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हो.  

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दरअसल, अकाली भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्वायत्तता चाहते थे. उनकी मांग थी कि चंडीगढ़ केवल पंजाब की राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएं. नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए. इसी बीच 13 अप्रैल 1978 को अमृतसर में अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई. इस झड़प में 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए.

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इसके बाद पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगी. सितंबर 1981 में हिंदी समाचार ‘पंजाब केसरी’ अख़बार के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई. जालंधर, तरन तारन, अमृतसर, फ़रीदकोट और गुरदासपुर में हुई हिंसक घटनाओं में कई जानें गईं. भिंडरांवाले पर हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगे. सितंबर 1981 में भिंडरांवाले के ‘महता चौक’ गुरुद्वारे के सामने गिरफ़्तार होने पर वहां एकत्र भीड़ और पुलिस के बीच गोलीबारी शुरू हुई इस दौरान 11 लोगों की मौत हो गई.

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इसके बाद तो मानो पंजाब में हिंसा का विकराल दौर शुरु हो गया. इस बीच सिख छात्र संघ के सदस्यों ने ‘एयर इंडिया’ के विमान का अपहरण कर लिया. इसके बाद स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरांवाले ने अपने साथी ‘अखिल भारतीय सिख छात्र संघ’ के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई के लिए नया अभियान शुरु कर दिया अकालियों ने अपने मोर्चे का भिंडरांवाले के मोर्चे में विलय कर दिया. इस दौरान पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर भी हमला हुआ.

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अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक ए.एस. अटवाल को दिन दहाड़े हरिमंदिर साहब परिसर में गोली मार दी गई. कुछ महीने बाद पंजाब रोडवेज़ की एक बस में घुसे बंदूकधारियों ने जालंधर के पास कई हिंदुओं को मार डाला. इस बीच इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की काँग्रेस सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. मार्च 1984 तक हिंसक घटनाओं में 284 लोग मारे जा चुके थे.

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1 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात ‘केंद्रीय रिज़र्व आरक्षी बल’ के बीच गोलीबारी हुई. संत जरनैल सिंह, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख सटूडेंट्स फ़ेडरेशन ने स्वर्ण मंदिर परिसर के चारों तरफ़ ख़ासी मोर्चाबंदी कर ली थी. उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और गोला-बारूद भी जमा कर लिया था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सन 1985 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं. इस दौरान उन्होंने भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ करने का आदेश दे दिया.

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3 जून को गुरु अर्जुन देव के ‘शहीदी दिवस’ के मौके पर हज़ारों श्रद्धालुओं ने 2 जून से ही अमृतसर के हरमंदिर साहिब परिसर में आना शुरु कर दिया था. अकाली और निरंकारियों के बीच झड़प की संभावना के चलते केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार इसे गंभीरता से देख रही थी. इस दौरान इंदिरा गांधी ने साफ़ आदेश दे दिए कि झड़प की स्थिति में भारत सरकार कोई भी कार्रवाई कर सकती है. इस बीच पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया.

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इसके बाद 3 जून 1984 को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुंचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया. शाम होते ही शहरभर में कर्फ़्यू लगा दिया गया. 4 जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके. चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला. इसके बाद सेना ने बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय लिया. 

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5 जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई. इस दौरान भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ. अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया. अकाल तख्त धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि उसे मुगल तख्त से ऊंचा बनवाया गया था. स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं. सदियों में पहली बार हरमंदिर साहिब में 6, 7 और 8 जून को पाठ नहीं हो पाया. इस दौरान ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय भी जल गया. 

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इस दौरान भारतीय सेना ने चरमपंथियों को शिकस्त दी और हरमंदिर साहिब को चरमपंथियों के चुंगल से आज़ाद कराया.

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ये भारतीय सेना के प्रमुख ऑपरेशनों में से एक है.

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