“जाते हुए भी तड़पाते हो आते हुए भी
कल जो इस पल में नहीं है, उसे कैसे थामूं? एक गुज़र गया है और एक आने को है. दोनों के बीच सब बदल रहा है. मैं भी और हमारे घरों में मौजूद वो छोटी-छोटी चीज़ें भी, जो कभी हमारे आसपास मौजूद रहती थीं.
बस कुछ नहीं बदला तो यादें. वो आज भी एक सी ही हैं. कुछ ज़्यादा पर एक सी. सबमें कुछ बीता हुआ नज़र आता है. यक़ीन ही नहीं होता कि ये यादें कभी हमारी हक़ीक़त का हिस्सा भी थीं.
1. याद है कैसे अलार्म लगाने के लिए चाबी घुमाया करते थे?
2. गेहूं फटकते वक़्त सूप से मस्त म्यूज़िक भी निकलता था
3. घर पर BPL का कलर टीवी नहीं, ज़िंदगी में रंगीनी आई थी भाई
4. पानदान जिसे हम लोग पनडब्बा भी कहते थे
5. उस वक़्त लब आज़ाद थे, पर फ़ोन में ताले पड़े थे
6. लाल दन्त मंजन और कोलगेट पाउडर, स्वाद था भाई स्वाद
7. हाथ वाला पंखा झर दो कोई, लोग इसे बेना भी बुलाते थे
8. आंगन में लगे हैंडपंप से पानी भरने का सबका कोटा डिसाइड था
9. AC वाले कमरे क्या जाने धन्नी वाली छत की ठंडक
10. बचपन में इसके एंटीने से कलाकारी कर न जाने क्या मौज मिलती थी
अब भले ही ये सारी चीज़े पीछे छूट गई हों, लेकिन आज भी इन्हें यादकर मन बचपन में वापस लौट जाता है.