‘Mummy’ शब्द अपने आप में ही काफ़ी रोमांचक और रहस्य से भरा लगता है. वहीं, इस बात पर विश्वास करना आज भी थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि क्या वाक़ई किसी मृत शरीर को हज़ारों सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है? लेकिन, आपको बता दें कि ऐसा संभव है और वैज्ञानिक रूप से भी इस बात को स्पष्ट किया जा चुका है. वैसे इस लेख में हम आपको मिस्र की सैर नहीं, बल्कि भारत में ही रखी 900 साल पुरानी एक संत की ममी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में अधिकांश लोगों को पता नहीं है.
900 साल पुरानी ‘Mummy’
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दक्षिण भारत के श्री रंगनाथस्वामी मंदिर (श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली) में प्रसिद्ध संत और दार्शनिक गुरु रामानुजाचार्य के असल शरीर को सुरक्षित रखा गया है. इनका यह शरीर 900 साल पुराना बताया जाता है, जिसके दर्शन कोई भी कर सकता है.
हिंदू धर्म की ख़ास मान्यता
विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है हिंदू धर्म. इस धर्म की मान्यता है कि सिर्फ़ मृत्यु से ही व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि उसकी आत्मा का भी सही रूप में मुक्त होना ज़रूरी है. इसलिए, पूरे कर्मकाण्ड के साथ मृत्यु के बाद शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है. वहीं, ईसाई और मुस्लिम धर्म से अलग हिंदू धर्म में मृत शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाता है. वहीं, मिस्र की ममी की तरह शरीर को सुरक्षित रखने की परंपरा भी इस धर्म में है. इसी परंपरा के तहत गुरु रामानुजाचार्य के शरीर को सुरक्षित रखा गया है.
कौन थे गुरु रामानुजाचार्य?
गुरु रामानुजाचार्य एक भारतीय दार्शनिक, हिंदू धर्मशास्त्री, समाज सुधारक और श्री वैष्णववाद परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण प्रतिपादकों (Exponent) में से एक थे. साथ ही इनके दार्शनिक विचारों ने भक्ति आंदोलन को और भी प्रभावशाली बनाने का काम किया था.
चंदन और केसर का उपयोग
जानकर हैरानी होगी कि गुरु रामानुजाचार्य के मृत शरीर को सुरक्षित बनाए रखने के लिए चंदन के पेस्ट और केसर का उपयोग किया जाता है. इसमें कोई रसायन नहीं मिलाया जाता है. वहीं, साल में दो बार केसर के साथ कपूर के मिश्रण का एक कोट शरीर पर किया जाता है, जिसकी वजह से शरीर का रंग गेरुआ दिखाई पड़ता है.
कोई भी कर सकता है दर्शन
गुरु रामानुजाचार्य का असल शरीर उनकी मूर्ति के पीछे रखा गया है और सभी भक्तों के दर्शन के लिए खुला है. उंगलियों के नाखूनों से पता लगाया जा सकता है कि यह शरीर असली है. बता दें उनका शरीर श्रीरंगम मंदिर के भीतर पांचवे चक्र के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखा गया है. माना जाता है कि यह आदेश स्वयं भगवान रंगनाथ ने दिया था.
अपनी मृत्यु के बारे में बता दिया था शिष्यों को
माना जाता है कि जब गुरु रामानुजाचार्य का इस पृथ्वी को छोड़कर जाने का वक्त नज़दीक आ गया था, तो उन्होंने इस बारे में उनके शिष्यों को बता दिया था. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था कि वो और तीन दिन तक उनके साथ रहेंगे. माना जाता है कि उन्होंने अपनी अंतिम सांस 1137 ईसा पूर्व में ली थी.