भारत की आज़ादी में नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) का अहम योगदान है. नेताजी ने ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ दम पर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग का बिगुल बजाया था. ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ का नेतृत्व करते हुए उन्होंने देश को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. जब भी देश की आज़ादी की बात होती है ‘सुभाषचंद्र बोस’ और ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ का नाम ज़रूर लिया जाता है.
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आज हम बात सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर वाले नोटों की बात करने जा रहे हैं. ये नोट कब और क्यों छापे गए थे आख़िर इन्हें क्यों बंद कर दिया गया? लेकिन इन नोटों के बारे में बात करने से पहले हम आपको इसके पीछे की असल कहानी भी बताते चलते हैं.
बात सन 1941 की है. नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंग्रेज़ों की गिरफ़्त से भागकर विदेश चले गए थे. सन 1942 में मोहन सिंह ने ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ का गठन किया. जुलाई 1943 में नेताजी ने इसका नेतृत्व संभाला. इसके बाद 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में नेताजी ने एक ‘अस्थायी सरकार’ बनाने का ऐलान किया. ये सरकार थी ‘आज़ाद हिंद’ की. नेताजी ने ख़ुद को इस सरकार का मुखिया बनाया.
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नेताजी द्वारा सरकार बनाने के पीछे वजह ये थे कि वो भारत में अंग्रेज़ी शासन को नहीं मानते थे. इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ों से बग़ावत कर अपनी एक अलग सरकार बनाई. ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के दौरान जापान और ब्रिटेन एक दूसरे के जानी दुश्मन थे. इसलिए नेताजी ने जापान से मदद मांगने का फ़ैसला किया.
इस दौरान नेताजी ने प्रोविंशियल सरकार बनाकर जापान से कहा कि, हम अपने मुल्क़ के नुमाइंदे हैं. हमारे देश पर अंग्रेज़ों ने जबरन कब्ज़ा किया हुआ है. इसलिए अंग्रेज़ों को खदेड़ने में आप हमारी मदद करें. इस दौरान नेताजी द्वारा बनाई ‘आज़ाद हिंद सरकार’ को जर्मनी, जापान, फ़िलिपीन्स, कोरिया, चीन, इटली और आयरलैंड जैसे देशों ने मान्यता दी दे.
जर्मनी, जापान, इटली और चीन जैसे देशों का समर्थन मिलने के बाद नेताजी ने देश को आज़ाद कराने के लिए अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग शुरू कर दी. इस दौरान देशभर से नेताजी को काफ़ी सपोर्ट मिला. देशवासियों ने बढ़-बढ़कर ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ के लिए चंदा भी दिया. इन पैसों को संभालने के लिए अप्रैल 1944 में ‘आज़ाद हिंद बैंक’ बनाया गया. इस बैंक की स्थापना रंगून में हुई थी.
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‘आज़ाद हिंद बैंक’ की स्थापना के बाद सरकार चलाने के लिए जब नेताजी को पैसों की ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने ‘आज़ाद हिंद बैंक’ के तहत अपनी करेंसी भी जारी कर दी. जिन-जिन देशों ने ‘आज़ाद हिंद सरकार’ को सपोर्ट किया, उन्होंने भी इस करेंसी को मान्यता दी. इस दौरान ‘आज़ाद हिंद बैंक’ ने 5, 10, 100, 150, 1000, 5000 रुपये और 1 लाख रुपये के करोड़ों नोट जारी किए थे.
सन 1947 में जब भारत अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ तो देश में नया संविधान भी बना. इस दौरान आज़ाद भारत में ‘आज़ाद हिंद बैंक’ द्वारा जारी इन नोटों पर रोक लगा दी गई. इसके बाद सन 1950 में जब देश में नया संविधान लागू हुआ तो इन नोटों को हमेशा के लिए बैन कर दिया गया.
इसके कई साल बाद पश्चिम बंगाल के रहने वाले पृथ्विश दासगुप्ता ने वित्त मंत्रालय और RBI को चिट्ठी भी भेजी थी. जिसमें लिखा था कि भारतीय नोटों पर नेताजी की फ़ोटो छापी जाए. जवाब नहीं मिला तो उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में PIL दाखिल कर दी. इसके जवाब में साल 2010 में ‘रिजर्व बैंक’ के एक पैनल ने कहा था कि, देश में महात्मा गांधी के अलावा कोई ऐसी शख्सियत है ही नहीं, जो भारत के मूल्यों को संपूर्ण रूप में जाहिर कर सके.