भारत में किसी अपराधी को फांसी पर चढ़ाने की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है. इस दौरान जेल प्रशासन को कई तरह की तैयारियां करनी पड़ती हैं. जेलर से लेकर जल्लाद तक हर कोई इस प्रक्रिया के लिए ख़ुद को मानसिक रूप से तैयार करता है. जेल प्रशासन द्वारा जल्लाद को फांसी से कुछ समय पहले ही अल्टीमेटम दे दिया जाता है.
ये भी पढ़ें- किसी अपराधी को फांसी पर लटकाने से चंद देर पहले जल्लाद उसके कान में क्या कहता है?
25 अक्तूबर, 1978 को रायपुर जेल में फांसी की प्रक्रिया को अपनी आंखों से देखने वाले पत्रकार गिरिजाशंकर ने अपनी किताब ‘आंखों देखी फांसी’ में लिखा है मैंने रायपुर जेल में ‘बैजू’ नामक दोषी की फांसी की प्रकिया देखी थी. इस दौरान बैजू की फांसी के लिए लकड़ी का एक पुतला तैयार किया गया था, जिसका नाम ‘गंगाराम’ रखा था’.
इस दौरान जब जेल प्रशासन से पूछा गया कि पुतले का नाम ‘गंगाराम’ ही क्यों रखा गया तो जेल अधीक्षक का कहना था कि ये प्रक्रिया लंबे समय से चली आ रही है. भारत में किसी मृतक के लिए भगवान राम और गंगाजल का बेहद महत्व माना जाता है. इसीलिए पुतले (डमी) का नाम ‘गंगाराम’ रखा गया था.
दोषी से पहले ‘गंगाराम’ को फांसी क्यों दी जाती है?
भारत में आज भी प्रत्येक अपराधी (दोषी) को फांसी देने से पहले एक पुतले (डमी) को फांसी दी जाती है. इसी पुतले का ‘गंगाराम’ होता है. दोषी की फांसी देने से पहले रस्सी को चेक करने के लिए ‘गंगाराम’ को फांसी दी जाती है. इस पुतले का वज़न दोषी के वज़न से डेढ़ गुना ज़्यादा होता है. डमी की फांसी सफ़ल होने के बाद उसी रस्सी और ड्रिल के हिसाब से असली दोषी को फ़ांसी दी जाती है.
ये भी पढ़ें- भारत का वो शातिर मुजरिम जो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद भी 2 घंटे तक रहा ज़िंदा
जानिए आख़िर कैसी होती है फांसी की प्रक्रिया?
जेल मैन्युअल के मुताबिक, किसी भी अपराधी को फांसी सूर्योदय के बाद ही दी जाती है. आमतौर पर गर्मियों में सुबह 6 बजे और सर्दियों में सुबह 7 बजे फांसी दी जाती है. फांसी घर लाने से पहले दोषी को सुबह 5 बजे नहलाया जाता है. उसके बाद उसे नए कपड़े पहनाए जाते हैं. फिर चाय पीने के लिए दी जाती है. दोषी से नाश्ते के लिए पूछा जाता है. अगर वो नाश्ता करना चाहता है तो उसे नाश्ता दिया जाता है.
इसके बाद मजिस्ट्रेट दोषी से उसकी आख़िरी इच्छा के बारे में पूछते हैं. फिर आरोपी को काले कपड़े पहनाकर और हाथ पीछे बांध कर फांसी घर ले जाया जाता है. यहां पहुंचने के बाद उसके चेहरे को भी ढंक दिया जाता है. ये सब काम जल्लाद करता है.
फांसी देते वक्त कोई आवाज़ न हो इसके लिए पूरे बंदोबस्त किए जाते हैं. जब फांसी देने का वक़्त आता है तो उसके लिए इशारे के तौर पर एक रुमाल गिराया जाता है और जल्लाद लिवर खींचता है. ये सभी काम इशारों में इसलिए किया जाता है ताकि फांसी घर में मौजूद किसी भी शख़्स का ध्यान भंग न हो और न ही जिन्हें फांसी दी जा रही है वो हिंसक हों. इसलिए पूरी प्रक्रिया बड़ी ही ख़ामोशी से पूरी की जाती है.
ये भी पढ़ें- क़िस्सा: जब फांसी के बाद भगत सिंह की घड़ी, पेन, कंघा पाने की लगी होड़, जेलर को निकालना पड़ा ड्रॉ
इनके सामने दी जाती है फांसी
जेल मैन्युअल के अनुसार, इस दौरान एक डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, जेलर, डिप्टी जेलर और क़रीब 12 पुलिसकर्मी मौजूद रहते हैं. यहां सारी कार्रवाई इशारों में होती है. ब्लैक वारंट में तय समय पर दोषी को वहां लाकर जल्लाद उसकी गर्दन में फंदा डाल देता है. फिर जेलर के रुमाल गिराकर इशारा करने पर जल्लाद लिवर खींच देता है. लिवर खींचते ही तख़्त खुल जाता है और फंदे पर लटका दोषी नीचे चला जाता है.
फांसी के 2 घंटे बाद डॉक्टर वहां पहुंचकर दोषी की जांच करता है. धड़कन बंद होने की पुष्टि होने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया जाता है. इसके बाद उसे फंदा से नीचे उतार लिया जाता है. इस दौरान जेल में कोई काम नहीं होता है. फांसी लगने के बाद ही जेल के दरवाज़े खोले जाते हैं.