Dussehra Connection With The Pandavas: हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाने के लिए बढ़ी धूम-धाम से विजय दशमी या दशहरा का उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री रामचंद्र जी ने इसी दिन रावण का वध किया था और अधर्म पर धर्म की जीत हुई थी. लेकिन हिंदू पुराणों में ऐसी बहुत सी कहानियां हैं. जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं. ऐसी ही एक कहानी विजय दशमी पर भी है कि, दशहरा का संबंध द्वापर युग के महारभारत काल के विजय गाथा से भी है. तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको दशहरा के पावन अवसर पर इस दिलचस्प कहानी के बारे में बता देते हैं.
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चलिए जानते हैं दशहरा और पांडवों के इस दिलचस्प क़िस्से के बारे में (Dussehra Connection With The Pandavas)-
महाभारत के अनुसार, जब पांडव भाई जुए के खेल में हार गए, तब सभी पांडवों को विराटनगर में अज्ञातवास पर जाना पड़ा था. वहां कुछ समय गुज़ारने के बाद अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष और बाण शमी के पेड़ पर छुपा दिया था. उसी दौरान कीचक का वध हो गया और सुशर्मा और कौरव सेना ने मिलकर विराटनगर पर हमला कर दिया और वो सारी गायों को चुरा कर ले गए. इस बात से क्रोधित होकर विराटनगर के राजा और उनके बेटों ने कौरवों को युद्ध के लिए ललकारा और उनके बीच युद्ध शुरू हो गया.
अर्जुन का गांडीव धनुष और बाण काम आया
मगर कुछ समय बाद ही विराटनगर के राजा और उनके बेटे ने कौरवों के सामने अपने घुटने टेक दिए और मैदान से हारकर भागने लगे. लेकिन अर्जुन से ये बिलकुल बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने अपना बृहन्नला की वेशभूषा त्यागकर अपना छुपाया हुआ गांडीव धनुष और बाण निकला और कौरवों से युद्ध करने लगे. जिसे अर्जुन ने सफ़लतापूर्वक जीत लिया और विजय दशमी के दिन विजय प्राप्त की.
इस भयानक युद्ध में अकेले अर्जुन ने कौरवों को परास्त कर दिया. तभी अर्जुन ने अपनी शंखध्वनी बजाई और भीष्म पितामह ने इस ध्वनि को सुनकर दुर्योधन को 1 तिहाई सेना लेकर हस्तिनापुर से गायों को ले आने का निर्देश दिया था.
जब दुर्योधन को निर्देश मिला और वो लौटने लगा, तो अर्जुन ने रास्ते में ही उस पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. जिसके बाद कर्ण, द्रोण, भीष्म और अन्य योद्धा भी अर्जुन से लड़ने आ गए. लेकिन अर्जुन ने अकेले ही सबको हरा दिया. साथ ही अर्जुन ने सूर्य पुत्र कर्ण को भी युद्ध का मैदान छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया.