केरल(Kerala) का गठन 1 नवंबर 1956 को 3 पुराने रजवाड़ों त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार को मिलाकर किया गया था. यहां कई राजाओं का राज रहा. तब सिर्फ़ शाही परिवार के लोगों के पास ही मोटर गाड़ियां होती थीं, आम लोगों को पैदल या फिर बैलगाड़ी पर ही कहीं आना जाना या फिर सामान लाना पड़ता था.
यहां पहली बस सर्विस 1910 में शुरू हुई थी. इस बस सेवा के शुरू होने का एक दिलचस्प क़िस्सा है, जिसकी कहानी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
केरल में पहली बस सर्विस लेकर आने का क़िस्सा एक 16 साल के बच्चे और उसके अनशन से जुड़ा है. बात 20वीं सदी की शुरुआत की है, जब Joseph Augusti Kayalackakom नाम का एक युवक अपने पिता की मौत के बाद अपने चाचा Augusti Mathai Kayalackakom के यहां पलाई में रहने चला गया. जोसफ़ तब 16 साल का था और उस समय इस उम्र के बच्चों को कमाने लायक समझ लिया जाता था.
इसलिए जोसफ़ भी अपने भाई(Thomas) की तरह चाचा के कपड़ों के बिज़नेस में हाथ बंटाने लगे. बिज़नेस के सिलसिले में उन्हें कई मील तक पैदल या फिर नाव द्वारा सफ़र करना पड़ता था. उनका काम दूर-दराज के इलाकों से कपड़ा इकट्ठा करना था, ऐसे ही एक यात्रा पर जाते हुए उन्होंने मुसाफ़िरों के कष्ट के बारे में सोचा. जोसफ़ ने सोचा क्यों न एक बस सर्विस शुरू की जाए जो पैदल चलने को मजबूर लोगों का सहारा बने. इस बस को चलाने का ये आईडिया लेकर वो अपने चाचा अगस्ती मथाई के पास पहुंचे. उन्होंने कपड़े का व्यापार कर लगभग 1000 Sovereigns बचाए थे.
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भूख हड़ताल
ये इतना पैसा था जिनसे वो उस ज़माने में 3000 एकड़ ज़मीन ख़रीद सकते थे. मगर वो इस पैसे को बस चलाने के लिए ख़र्च करने को तैयार नहीं हुए. इसके बाद जोसफ़ ने घर पर ही भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया, क्योंकि उसे विश्वास था कि उसका बिज़नेस ज़रूर चलेगा. भूख से तड़पते बच्चों को भला कौन परिवार देख सकता है. उसकी चाची का भी दिल पसीज़ गया और उन्होंने जोसफ़ की बस में पैसे लगाने के लिए अपने पति को राज़ी कर लिया.
केरल की पहली बस
इस तरह 1910 में केरल में पहली बस आई. इस बस के साथ जोसफ़ की एक तस्वीर आज भी इनकी फ़ैमिली के पास है. इसमें जोसेफ़ किसी पायलट की तरह आत्मविश्वास से लबरेज दिख रहे हैं. Augusti Mathai के पोते Jacob Xavier Kayalackakom बताते हैं कि जब उनके दादा मद्रास की एक फ़र्म Simpson & Company से बस लेकर आए थे तो लोग दूर-दूर से उसे देखने आए थे. जब बस पलाई से कांजीरापल्ली के बीच चलने लगी तो पहले लोग उसे छूकर देखते तो कुछ बस में सफ़र करने का अनुभव लेने के लिए ही उसमें एक चक्कर लगा आते थे.
Meenachil Motor Association
इस बस सर्विस का नाम उन्होंने Meenachil Motor Association रखा था. कुछ समय बाद बस को तिरुवनंतपुरम और कोल्लम के बीच चलाया जाने लगा जहां अधिक यात्री थे. सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन 1915-16 के बीच में बस चलाने में घाटा होने लगा. इसका सबसे बड़ा कारण था प्रथम विश्वयुद्ध और बस ख़राब होने पर उसके पार्ट्स का न मिलना. इस तरह कुछ समय बाद ही इसे बंद करना पड़ा.
इससे सीख लेते हुए महाराजा श्री चिथिरा थिरुनल बलराम वर्मा ने 1938 में त्रावणकोर राज्य में पहली सार्वजनिक सड़क परिवहन सेवा शुरू की थी. इसे ही आज सभी KSRTC के नाम से जानते हैं.
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