विश्व पटल पर भारत का सिर ऊंचा करने में ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) हमेशा आगे रहा है. 1970 के दशक के दौरान जब दुनिया में अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा जारी थी, तब ISRO ने ‘आर्यभट्ट’ के नाम से देश का पहला स्वदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किया. इस ऐतिहासिक घटना के बाद भारत एक नई ऊर्जा के साथ विश्व के सामने प्रस्तुत हुआ था. आइये, इस ख़ास लेख में जानते हैं पहले स्वदेशी उपग्रह से जुड़ी कुछ ख़ास बातें और इससे नामकरण से जुड़ी दिलचस्प कहानी.  

भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह   

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19 अप्रैल 1975 वो ऐतिहासिक दिन था जब भारत अपना पहला स्वदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने जा रहा था. यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी ISRO द्वारा बनाया गया था.    

ली गई सोवियत संघ की मदद   

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बता दें कि भारत ने अपना स्वदेशी उपग्रह बनाकर तो तैयार कर लिया था, लेकिन इसे अंतरिक्ष में लॉन्च करने की तकनीक भारत में विकसित नहीं हुई थी. इसलिए, इसे अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए सोवियत संघ की मदद ली गई थी. ये रूस की Astrakhan Oblast में स्थित Kapustin Yar साइट से Kosmos-3M Launch Vehicle की मदद से लॉन्च गया था. बता दें कि इस ख़ास प्रोग्राम के लिए भारत-रूस के बीच समझौता 1972 में किया गया था.   

उपग्रह का नामकरण

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भारत के इस पहले स्वदेशी उपग्रह का नाम भारत के मशहूर खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था. आर्यभट्ट विश्व के उन पहले व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने बीजगणित का प्रयोग किया था. जानकारी के लिए बता दें कि यह नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा चुना गया था.  

आए थे तीन नामों के प्रस्ताव

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यह बात बहुत ही कम लोगों को पता होगी कि भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह के नामकरण के लिए तीन नामों के प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास आए थे. ये नाम ISRO की तरफ़ से आए थे. पहला नाम था आर्यभट्ट, दूसरा मैत्री और तीसरा जवाहर. लेकिन, इंदिरा गांधी ने इन नामों में से आर्यभट्ट का नाम चुना था.   

किस उद्देश्य के लिए तैयार किया गया था ‘उपग्रह आर्यभट्ट’?   

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इसरो द्वारा आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में X-rays, Astronomy, Aerology and Solar Physics से जुड़े प्रयोग करने के लिए स्थापित किया गया था.  

टॉयलेट को बनाया डाटा रिसीविंग सेंटर

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जानकर हैरानी होगी कि जिस समय आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था, उस समय आर्यभट्ट के नियंत्रण और डाटा रिसीव करने के लिए जगह की कमी थी. इसलिए, इसरो को थोड़े समय के लिए टॉयलेट को ही डाटा रिसिविंग सेंटर बनाना पड़ा था.   

नोट पर भी छापी गई ‘आर्यभट्ट’ की तस्वीर  

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बता दें कि इस ऐतिहासिक दिन को यादगार बनाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1976 में 2 रुपए के नोट के पीछे भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह की तस्वीर छापी थी. हालांकि, बाद में नोट के डिज़ाइन को बदल दिया गया था.