दिल्ली के नेहरू प्‍लेस में स्थित ‘लोटस टेंपल’ दुनियाभर में मशहूर है. ऑस्ट्रेलिया के मशहूर ‘सिडनी ओपेरा हॉउस’ की तरह ही ‘लोटस टेंपल’ भी भारत में काफ़ी मशहूर है. कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे ‘लोटस टेंपल’ कहा जाता है. ताजमहल की तरह ख़ूबसूरत और सफ़ेद मार्बल से निर्मित इस मंदिर को 20वीं सदी का ‘ताजमहल’ भी कहा जाता है. 

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सन 1978 में शुरू हुआ था निर्माण कार्य

‘लोटस टेंपल’ की स्थापना सन 1986 में की गई थी. इसे पर्शियन आर्किटेक्ट फ़रीबर्ज सहबा ने डिज़ाइन किया था. दुनिया भर में आधुनिक वास्तु कला के नमूनों में से एक ‘लोटस टेंपल’ भी है. इसका निर्माण बहा उल्लाह ने करवाया था, जो कि बहाई धर्म के संस्थापक थे. इसलिए इस मंदिर को ‘बहाई मंदिर’ भी कहा जाता है. इसके निर्माण में क़रीब 1 करोड़ डॉलर की लागत आई थी.

इस मंदिर में न तो कोई मूर्ति है और न ही यहां किसी प्रकार की पूजा की जाती है. पर्यटक इस मंदिर में शांति और सुकून का अनुभव करने आते हैं. इस मंदिर को किसी एक धर्म के दायरे में समेटकर नहीं रह गया. यहां सभी धर्म के लोग आते हैं और शांति और सुकून के लिए आते हैं.  

ये ख़ूबसूरत मंदिर अधखिले कमल की आ‍कृति में संगमरमर की 27 पंखुड़ियों द्वारा बनाया गया है. मंदिर चारों ओर से 9 दरवाजों से घिरा है और बीचोंबीच एक बहुत बड़ा हॉल स्थित है. इस हॉल में एक साथ क़रीब 2500 लोग बैठ सकते हैं.  

चलिए 35 साल पुरानी इन तस्वीरों के ज़रिए जानते हैं ‘लोटस टेंपल’ का निर्माण किस तरह से हुआ था?

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