
ऐसे में न चाहते हुए भी ये कहना पड़ता है कि कुछ मामलों में हम सभी भारतीयों को हद से ज़्यादा आज़ादी मिली हुई है. आज हमारी कोशिश है कि आज़ादी के जश्न की इस चकाचौंध के बीच हम अपने स्याह कामों की तरफ़ भी देख लें
1. सड़क पर धड़ल्ले से गंदगी फैलाने की आज़ादी

इस पर बहुत बात हो चुकी है. तमाम जागरूकता कार्यक्रम चले. मगर नतीजा सिफ़र रहा. सड़क पर थूकना, पेशाब करना या चलते-फिरते कचरा फेंक देना. ये हम भारतीयों की लाइफ़स्टाइल बन गया है. कभी सुबह उठिएगा तो देखिएगा उस सफ़ाईकर्मी को, जो आपकी इस जहालत को रोज़ सड़कों से बीनकर ले जाता है. मगर ग़लती से भी कभी ख़ुद को उसकी आंखों में मत देख लीजिएगा, क्योंकि आप अपनी ही घिनौनी सीरत का अक्स उसमें बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.
2. मॉरल पुलिस के नाम पर कपल्स का शोषण करने की आज़ादी

हमारे देश में सड़क पर हर चलता-फिरता आदमी नैतिकता का ठेकेदार बना है. मुंह से राधे-राधे बोलेंगे, बच्चों को कृष्ण बनाएंगे, मगर हक़ीक़त में प्यार को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. कोई कपल पार्क में दो पल भी बैठ जाए, तो तुम कौन हो, मां-बाप क्या करते हैं, यहां क्यों, दोनोंं अकेले क्या कर रहे हो. न जाने कितने सवाल. और इन सभी सवालों का जवाब भी ये ख़ुद देते हैं, हिंसा से. कपल्स का शोषण करके. कई बार उनके वीडियो बनाकर. फिर करते रहिए पुलिस-थाना, इन संस्कृति के रक्षकों की सोच का समर्थन करने वाले आपको हर मोड़ पर मिल जाएंगे.
3. सोशल मीडिया पर सेलेब्स को कुछ भी बोलने की आज़ादी

आज़ाद ख़्याल वाले इंटरनेट पर सेलेब्स को अपना ग़ुलाम समझते हैं. जब जी चाहा गाली दिया. भद्दे कमंट किए. अब तो सेलेब्स के बच्चों के नाम भी अपने मुताबिक रखवाने का ट्रेंड चल रहा. नहींं माने, तो उंगलियां और गालियां दोनों मौजूद है. इतने से भी काम न चले, तो किसी सेलब का ऑनलाइन ट्रायल खोलकर बैठ गए. किसी के अपराधी और बेगुनाह होने का फ़ैसला लाइक और रीट्वीट से कर दिया जाता है.
4. शादियों-त्योहारों में सड़कें जाम करने की आज़ादी

हमारे देश में लोगों को शादियों-त्योहारों में जो मन आए करने की आज़ादी रहती है. कहने के लिए तो नियम-क़ानून बने हैं, लेकिन बेचारे जाम लगी सड़कों में ही फंसकर टूट जाते हैं. किसी की शादी के उत्पात पर तो फिर कुछ लगाम कसी जा सकती है. मगर इस देश में धार्मिक लोगों को छेड़ने की ग़लती कोई नहीं कर सकता. फिर भले ही उस जाम में फंसकर किसी एंबुलेंस का मरीज़ दम तोड़ दे.
5. लोगों को उनके जेंडर और लुक्स पर ताने कसने की आज़ादी

कालू, मोटू, नाटू, … ऐसे ही बहुत सी चीज़ें है, जो खुलेआम बोली जाती हैं. भारत के कॉमेडी शोज़ देख लीजिए, आपको हर 2 मिनट में एक डायलॉग लुक्स से जुड़ा हुआ ही मिलेगा. स्टार्स भी यहां लड़िकियों की नहीं भाई की क्रीम बेचते हैं. मर्दों वाली. अपनी बेशर्मी भरी हैंडसम गिरी को छिपाने का मस्त डायलॉग भी सुनिए, ‘जो अंदर से फ़ेयर वो बाहर से हैंडसम’. इसका मतलब ये ही हुआ कि जो बाहर से आपके मुताबिक हैंडसम न हो वो अंदर से भी घटिया होगा. तो क्यों न उसकी इज़्ज़त उछाली जाए!

सिर्फ़ लुक्स ही नहीं, जेंडर को लेकर भी हम बड़ी ही आसानी से ताना देते हैं. कोई मर्दों के लिए दुनिया आसान बताता है कि वो कभी भी बाहर निकल सकता है, तो कई औरतों की आसान बताता है कि शादी करके रोटी ही सेंकनी है, पैसा थोड़ी कमाना है. ये हाल तब है, जब ये दोनों ही आज हर तरह की चीज़ें कर रहे हैं और कामयाब भी हो रहे हैं. और कहीं कोई इन दोनों जेंडर का नहीं है, फिर तो हम उसकी ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में देर न करेंगे.
6. शादी के नाम पर आदमियों को बेचने की आज़ादी

अब स्वीकार लीजिए न कि दहेज में लड़के ख़ुद को बेचते हैं. हां, बस चौराहे पर खड़ा कर उनकी बोली नहीं लगती, मगर रेट तो तय होता है. सरकार ने डंडा चलाया तो हमने इसे गिफ़्ट बना दिया. जिसे लड़की का मजबूर बाप सहर्ष देता है. अब क्या कीजिएगा, जब पापा जी को दामाद सरकारी ही चाहिए, तो फिर आदतन अंडर द टेबल पेशगी देनी ही पड़नी है.
7. धार्मिक कट्टरता की आज़ादी

ये किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है. जिसे जब भी मौक़ा मिलता है, वो अपने हिस्से का ज़हर उगलता है. कभी सिर कलम करने पर इनाम रखते हैं, तो कभी बीच सड़क पर कत्लेआम. अब चूंकि इस देश में नफ़रती सबसे ज़्यादा संगठित हैं, इसलिए नेताओंं का ये बढ़िया वोटबैंक हैं. तो बस भले क़ानून इजाज़त न दे, मगर धार्मिक कट्टरता हमारे देश में सबसे ज़्यादा आज़ाद महफ़ूज़ करती है.
8. अपनी राय ज़बरदस्ती दूसरों पर थोपने की आज़ादी

बच्चों को करियर क्या चुनना चाहिए, औरतों को कपड़े क्या पहनने चाहिए, मर्दों को कितना भावुक होना चाहिए, देशप्रेम कैसे दिखाना चाहिए… ये बताने वाले रायचंद देशभर में घूम रहे हैं. और ये सिर्फ़ राय ही नहीं देते, बल्कि जबरन आप पर उसे थोपते भी है. उनसे इख़्तिलाफ़ करना, मतलब अंजाम भुगतने को तैयार हो जाना. क्योंकि आज़ाद वो हैं, आप नहीं.
9. लड़कियों को सरेराह घूरने की आज़ादी

एक लड़की के कपड़े उसके तन को तो ढक देते हैं, मगर लार टपकाती आंखें तो उसकी चमड़ी भेदकर आत्मा तक पहुंचने को आमादा रहती हैं. हमारे देश की सड़कों पर तो ये रोज़ होता है. इतना कि नज़रे झुकाकर चलना लड़कियों की अब मजबूरी नहीं, आदत हो गई है. हम बेशर्मी से उसे शर्म का नाम दे देते हैं. हां, उसकी आंखों में शर्म तो है, मगर वो जो आपकी आंखों में मर चुकी है.
10. ग़लतफ़हमी पालने की आज़ादी

जातिवाद ख़त्म हो गया, महिलाएं आज़ाद हो गईं, मज़दूर-किसानों को उनका हक मिल गया वगैरह-वगैरह… थोड़ा आहिस्ता से जब आप कभी बिस्तर से उठिएगा और एसी को बंद कर दरवाज़े के बाहर झाकिएगा न, तो बहुत तेज़ तपिश महसूस करेंगे. ये तपिश सूरज की गर्मी की नहीं, बल्कि हर रोज़ इन मज़लूम लोगों के अधिकारों के जलने से पैदा होती है. महसूस करेंगे तब ही अपनी ग़लतफ़हमी दूर करेंगे.
कहने के लिए तो अब भी बहुत कुछ है. मगर हम आप पर छोड़ते हैं. आप बताइए, वो कौन सी बातें हैं, जिनमें हमें हद से ज़्यादा आज़ादी मिली है. बात करेंगे, तब ही तो सुधार करेंगे. Happy Independence Day!