भारतीय सेना का हिस्सा बनने वाले जवान हर दम अपनी जान हथेली पर लेकर घूमते हैं. सीमा पर तैनात इन सैनिकों में देश की रक्षा करने की ज़िद होती है. एक ऐसी ही ज़िद लेकर शहीद कैप्‍टन मनोज पांडे भी भारतीय सेना में शामिल हुए थे. जिन्होंने कारगिल युद्ध के बारे में पढ़ा है. वो इस नाम से परिचित होंगे. जिन्होंने नहीं पढ़ा है, उन्हें आज हम देश के बहादुर शहीद की कहानी बतायेंगे.

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कैप्‍टन मनोज पांडे एक निडर और बहादुर सैनिक थे, जो कि उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रहने वाले थे. मनोज पांडे बचपन से ही सेना में भर्ती होना चाहते थे. जिसके लिये उन्होंने NDA का एग्ज़ाम क्लीयर किया. इसके बाद उन्हें इंटरव्यू के लिये बुलाया गया. इंटरव्यू में पैनल ने उनसे पूछा कि वो सेना में क्यों आना चाहते हैं? जवाब में उन्होंने कहा कि ‘मुझे परमवीर चक्र जीतना है’ और कारगिल युद्ध में उन्होंने अपने इन शब्दों को सच भी कर दिखाया.

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जब कैप्टन को मिला परमवीर चक्र जीतने का मौक़ा

सेना में भर्ती होने के बाद मनोज पांडे को उनकी बटालियन के साथ स‍ियाचिन जाना पड़ा. डेढ़ साल तक सियाचिन में रहने के बाद वो पुणे वापस लौटे ही थे कि कारगिल सेक्‍टर में घुसपैठिये घुस आये. इसके बाद उनकी बटालियन को बटालिक सेक्टर में तैनाती के लिये भेज दिया गया.

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बहादुरी से किया दुश्मनों का सामना  

शहीद कैप्टन की बटालियन का हेडक्‍वार्टर येल्‍डोर में बनाया था. कैप्टन ने काफ़ी समझदारी से अपनी टीम को लीड किया और वहां हमला करने वाले दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दिया. हालांकि, इस दौरान बटालिक में हिंदुस्तानी सेना को बहुत नुकसान भी झेलना पड़ा. कैप्टन मनोज पांडे प्‍लाटून कमांडर बन चुके थे. 2 और 3 जुलाई 1999 की बात है जब उन्होंने आधीरात अपनी टीम के साथ दुश्मनों को घेर लिया.   

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दुश्मनों से लड़ते हुए उनके कंधे पर गोली लगी, लेकिन फिर भी वो रुके नहीं और आगे बढ़ते रहे. घायल अवस्था में भी उन्होंने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी और दुश्मनों को हरा कर खालुबार पर कब्ज़ा जमा लिया. इसके साथ ही वहां तिरंगा लहरा कर देश का नाम भी रौशन किया. उनके इसी हिम्मती काम के लिये उन्हें मरणोपरांत परमवीर से सम्मानित किया गया था. 

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कैप्टन जो सपना लेकर सेना में आये थे. वो उन्होंने 24 साल की उम्र में अपने जान की बलि देकर पूरा किया. युद्ध में जाने से पहले उन्होंने अपनी मां से वादा किया था कि वो अपना 25वां बर्थडे घर पर मनायेंगे. वो घर आये ज़रूर, लेकिन शहीद शरीर लेकर. देश के लिये अपनी जान का बलिदान देने वाले शहीद को हमारा नमन!