सन 1965, 1971 और 1999 के ‘भारत-पाक युद्ध’ में भारत की जीत हुई थी. इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान को परास्त कर तिरंगा लहराया था. इन युद्धों से निकली भारतीय सैनकों की वीरता कई कहानियां आज भी हमें प्रेरित करने का काम करती हैं.
ऐसी ही एक कहानी भारतीय सेना के जवान सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव की भी है. सुबेदार योगेंद्र सिंह यादव ने 1999 के ‘कारगिल युद्ध’ में भाग लिया था. योगेंद्र यादव उन वीर सैनिकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी से पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को धराशाही कर दिया था. वो आख़िर तक लड़ते रहे जब पाक पाक सेना ने घुटने नहीं टेक दिये.
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परम वीर चक्र से सम्मानित सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव ने इस युद्ध में बच तो गए लेकिन बुरी घायल हो गए थे. इस दौरान वो 12 गोली लगने से बुरी तरह से घायल हो गए थे, लेकिन ख़ुशकिस्मती से वो बच निकले. आज योगेंद्र यादव देश की युवा पीढ़ी को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं.
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कौन हैं योगेंद्र सिंह यादव?
सूबेदार योगेंद्र यादव का जन्म 10 मई, 1980 को यूपी के बुलंशहर ज़िले के औरंगाबाद अहीर गांव में हुआ था. इनके पिता करन सिंह यादव भी 1965 और 1971 के ‘भारत-पाक युद्ध’ में भाग ले चुके हैं. यादव साल 1998 में भारतीय सेना की ’18 ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट’ में भर्ती हुए थे. ‘कारगिल युद्ध’ के दौरान वो मात्र 19 साल के थे.
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आईये जानते हैं योगेंद्र सिंह यादव की जुबानी ‘कारगिल युद्ध’ की कहानी-
देश के हर सैनिक को पता होता है कि वो कभी भी शहीद हो सकता है. बावजूद इसके देश प्रेम की भावना हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है. हम बेशक ज़िंदा रहें या ना रहें, लेकिन हमारा देश और नागरिक सुरक्षित रहें, यही हर एक सैनिक की चाह होती है.
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साल 2017 में चंडीगढ़ में हुए ‘सेना साहित्य समारोह’ के दौरान यादव ने कहा था-
मैं कारगिल युद्ध के दौरान ‘टाइगर हिल’ के अहम बंकरों पर कब्ज़ा करने वाली ‘घातक’ कमांडो प्लाटून का हिस्सा था. हम 7 सैनिकों के एक ग्रुप ने 4 जुलाई 1999 को ‘टाइगर हिल’ पर चढ़ाई शुरू की. 90 डिग्री की ये चढ़ाई बेहद मुश्किल थी, हम चारों तरफ़ से मौत से घिरे हुए थे. हमें पता था कि हम मरने जा रहे हैं. लेकिन देशप्रेम की भावना ने हमें झुकने नहीं दिया.
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इस दौरान पाक सैनिकों को हमारे आने की भनक लग गई और उन्होंने हम पर फ़ायरिंग शुरू कर दी. हम उनके डायरेक्ट निशाने पर थे. ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार के बीच हमने किसी तरह ख़ुद को संभाला और फिर पोज़िशन लेकर पाक सेना पर फायरिंग शुरू कर दी. इस दौरान पाक सैनिकों के पास के पास 90 डिग्री एडवांटेज था. लेकिन हम 7 जवानों ने अपनी जान पर खेलकर कई पाकिस्तान के कई सैनिकों को ढेर कर दिया था.
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इस बीच मैंने देखा कि मेरे कुछ साथी शहीद हो गए हैं. मेरे बाजू और पैरों में 12 गोलियां लगी थीं. इस दौरान मैं जैसे तैसे ख़ुद को बचाने की कोशिश कर रहा था तभी दुश्मन सैनिक मुझे निशाना बनाने के लिए फ़ायरिंग की, लेकिन मेरी जेब में 5 रुपये का सिक्का रखा था, गोली उससे टकराकर गिर गई.
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जब मैं घायल होकर लेट गया तो दुश्मनों ने सोचा कि मेरी मौत हो चुकी है. मैं मरा या नहीं ये चेक करने के लिए उन्होंने कुछ और फ़ायरिंग भी की, लेकिन मैंने उन्हें ये एहसास कराया कि मेरी मौत हो चुकी है. जब उनकी दूसरी टीम आई तो मैंने एक ग्रेनेड उठाया और उनके एक जवान पर फेंक दिया. इसके बाद मैंने उसकी राइफ़ल उठाई और दुश्मन के 5 सैनिकों को ढेर कर दिया.
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इस दौरान दुश्मन को पता था कि मैं अकेला हूं. वो मुझे आसानी से मार सकते थे. लेकिन इस दौरान मैंने जोश के साथ-साथ होश से काम लिया और छुप छुपकर चारों तरफ़ फ़ायरिंग करने लगा. ताकि दुश्मन को लगे कि यहां भारतीय सैनिक पहुंच चुके हैं. इसके बाद हमारी बैकअप टीम ने क़रीब 25-30 पाक सैनिकों को मार गिराया और टाइगर हिल पर कब्ज़ा जमाया.
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इस दौरान भगवान ने मुझे ज़िंदा रखा, ताकि मैं अपने उन 6 बहादुर साथियों की बहादुरी की वीरता की कहानी देश के लोगों को सुना सकूं.