भारत एक ऐसा देश जहां कई जाति और धर्म के लोग एक साथ रहते हैं. इतनी अलग-अलग संस्कृति होने के बावजूद हमारे अंदर एक समानता है, वो ये कि हम ज़ुल्म बर्दाशत नहीं कर सकते. शायद यही कारण है कि हमारे यहां गांघी भी हुए और चंद्रशेखर आज़ाद भी.
अक्सर हमने सुना है कि बापू एक ही थे, लेकिन बापू कोई शख़्स मात्र नहीं थे, वो एक सोच थे एक विचार थे. वो शख़्स के रूप में एक हो सकते हैं. लेकिन विचार और सोच अनगिनत हो सकती हैं.

ऐसे ही एक शख़्स के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं. उन्हें केन्या का बापू या महात्मा कहना ग़लत नहीं होगा. उनका नाम था मक्खन सिंह. भारत के पंजाब राज्य के मक्खन सिंह ने 1950 में केन्या में अंग्रेजों के खिलाफ़ एक आंदोलन चलाया था. मक्खन सिंह केन्या ट्रेड यूनियन के लीडर थे. जिन्होंने केन्या को पूर्ण स्वराज देने की मांग की थी. पहली बार अंग्रेजों के सामने केन्या में किसी ने इतने सशक्त तरीके से आज़ादी की आवाज़ उठाई थी.
अंग्रेज़ों ने उन्हें हुक़ूमत के खिलाफ़ बोलने पर जेल में बंद कर दिया था. लेकिन ट्रेड यूनियन ने इसके बावजूद उनकी आवाज़ को थमने नहीं दिया और मक्खन सिंह को छोड़ने के लिए हड़ताल कर दी, जिसके बाद इस हड़ताल ने केन्या में आंदोलन का रूप ले लिया था.

करीब 11 सालों तक उन्हें अलग-अलग जेलों में रखा गया, सिर्फ़ उनके परिवार के सदस्यों को उनसे मिलने की इजाज़त दी गई थी.
1963 में केन्या आज़ाद हुआ और मक्खन सिंह को जेल से रिहा कर दिया गया था.

27 दिसंबर 1913 को उनका जन्म पंजाब के गुजरनवाला( अब पाकिस्तान का हिस्सा है) ज़िले में हुआ. उनके पिता केन्या गए थे और कुछ समय बाद अपने परिवार को वहां बुला लिया.
मक्खन सिंह पढ़ाई में काफ़ी अच्छे थे, जिस कारण उन्हें वहां के लोकल और भारतीय अच्छी तरह से जानने लगे थे. ट्रेड यूनियन में उन्हें लीडर भी बना दिया था. ठीक उसी के बाद उन्होंने केन्या में पूर्ण स्वराज की मांग की थी.