पिछले दिनों उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा नदी में आई बाढ़ ने तबाही मचा दिया था. ITBP और NDRF टीम अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी हुई है. 50 से ज़्यादा शवों को निकाला जा चुका है मगर 100 से ज़्यादा लोग अब भी लापता हैं.
किसी दुर्घटना के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन बहुत अहम होता है. ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते लोगों को बचाने के लिए चलने वाले रेस्क्यू ऑपरेशन अक्सर काफ़ी ख़तरनाक होते हैं.
1. Tham Luang Cave Rescue
23 जून को 2018 को 12 लड़के अपने फुटबॉल कोच के साथ थाईलैंड के Chiang Rai प्रांत में घूमने गए और वहां एक पहाड़ के नीचे, गुफ़ा के अंदर फंस गए. दरअसल, एक जूनियर फ़ुटबाल टीम एक फ़ुटबाल अभ्यास के बाद अपने कोच के साथ गुफ़ा में गई थी. ये गुफ़ा लगभग 10 किलोमीटर लम्बी है. उनके अंदर जाने के कुछ समय बाद ही भारी बारिश से गुफ़ा में आंशिक रूप से बाढ़ आ गई जिससे बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया.
उनको बचाने के लिए जो रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ वो 18 दिन तक चला, जिसमें 10,000 से अधिक लोग शामिल हुए. इनमें 100 से अधिक गोताखोर, हज़ारों बचावकर्मी, लगभग 100 सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधि, 900 पुलिस अधिकारी और 2,000 सैनिक शामिल हैं; और इसके लिए 10 पुलिस हेलीकॉप्टर, 7 एम्बुलेंस, 700 से अधिक डाइविंग सिलेंडर की ज़रूरत पड़ी. इस दौरान गुफाओं से एक अरब लीटर से अधिक पानी बाहर निकाला गया. इस पूरे ऑपरेशन में 2 रेस्क्यू डाइवर की मौत भी हो गयी थी. हालांकि कोच सहित पूरी टीम को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.
2. Copiapó, Chile Mine Rescue
क्या आप मानेंगे कि कोई रेस्क्यू मिशन 2 महीने से ऊपर चल सकता है और अंततः सभी फंसे हुए लोगों को बचा लिया जाएगा! तो ज़नाब, ये उपलब्धि चिली के नाम है. 5 अगस्त 2010 को San José तांबे-सोने की खदान में 33 लोग तब फंस गए जब खदान का एक हिस्सा ढह गया. वो धरती से 700 मीटर (2,300 फ़ीट) अंदर फंसे हुए थे और खदान के प्रवेश द्वार से 5 किलोमीटर दूर थे.
खदान में दुर्घटना के बाद सरकारी खनन कंपनी, Codelco ने बचाव कार्य अपने हाथों में ले लिया जगह-जगह पर बोरहोल करने शुरू किये. 17 दिन बाद फंसे हुए लोगों के ज़िंदा होने की बात पता चली, जो एक अंडरग्राउंड शेल्टर में शरण लिए हुए थे.
तीन अलग-अलग ड्रिलिंग रिग टीम सहित चिली सरकार के लगभग हर मंत्रालय, नासा और दुनिया भर की एक दर्जन कंपनियों ने इस बचाव अभियान में सहयोग किया. 69 दिनों तक चले इस रेस्क्यू मिशन में लोगों को बाहर निकालने के लिए विशेष रूप से निर्मित कैप्सूल का इस्तेमाल किया गया. ये कैप्सूल एक-एक कर सभी लोगों को बाहर निकाल सका.
3. जब बेहतरीन रेस्क्यू ऑपरेशन की बदौलत टाइटैनिक जैसी दूसरी दुर्घटना होते-होते रह गयी
26 जुलाई, 1956 को एक इटालियन क्रूज़ शिप, SS Andrea Doria एक स्वीडिश क्रूज़ शिप, MS Stockholm से टकरा गई थी. Nantucket Island, मैसाचुसेट्स (अमेरिका) के पास हुई ये टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि इससे दोनों जहाज़ों को बहुत नुकसान पहुंचा.
जैसे-जैसे Andrea Doria डूबने लगी यात्रियों को पता चला टक्कर भी वहीं हुई थी जहां लाइफबोट्स रखे थे. चालक दल के लिए बचे-खुचे लाइफबोट्स को पानी में उतरना भी मुश्किल साबित हो रहा था. हालांकि, टाइटैनिक वाली दुर्घटना के उलट आस-पास से जहाज़ मदद के लिए तुरंत पहुंचे और रेस्क्यू मिशन शरू हो गया.
टीमवर्क की मिसाल पेश करते हुए कम से कम पांच अन्य जहाजों ने साथ मिलकर 1,663 चालक दल के सदस्यों और यात्रियों को बचा लिया. टक्कर में 51 लोग मारे गए लेकिन इस बचाव अभियान को दुनिया के सबसे सफ़ल रेस्क्यू ऑपरेशन में से एक माना जाता है.
4. जब अंतरिक्ष में चलाना पड़ा रेस्क्यू मिशन
अपोलो 11 की सफ़लता के साथ इंसान चंद्रमा पर चहलक़दमी कर चुका था. अपोलो प्रोग्राम के तहत अपोलो 13 तीसरा ऐसा मिशन था जिसको चांद पर लैंड करना था. 13 अप्रैल, 1970 को 3 अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अपोलो 13 ने उड़ान भरी. चांद की कक्षा में पहुंच, जब अंतरिक्ष यात्री, जेम्स लवेल और फ़्रेड हाइस लैंड करने की तैयारी कर रहे थे तभी यान का ऑक्सीजन टैंक फट गया. इससे यान (कमांड मॉड्यूल) का इलेक्ट्रिकल सिस्टम बंद हो गया.
जल्द ही तीनों अंतरिक्ष यात्रियों ने यान के साथ लगे लूनर मॉड्यूल में शरण ली. मगर लूनर मॉड्यूल की बिजली आपूर्ति केवल 2 लोगों को 45 घंटे तक ज़िंदा रख सकती थी. जबकी 3 लोगों के लिए 90 घंटे तक बिजली की ज़रूरत थी ताकि वो पृथ्वी पर सुरक्षित लौट सकें.
ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों ने जितना संभव था उतना कम उपयोग किया बिजली आदि का, जबकि ज़मीन पर इंजीनियरों ने कमांड मॉड्यूल को फ़िर से शुरू करने की कोशिशें शुरू कर दी. आख़िरकार कमांड मॉड्यूल ने काम करना शुरू किया और चालक दल 17 अप्रैल को प्रशांत महासागर में सुरक्षित रूप से उतर सका.
5. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान युद्ध बंदियों को छुड़ाने के लिए एक आत्मघाती रेस्क्यू मिशन
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फ़िलीपींस भी युद्ध मोर्चे पर था. जापान और मित्र राष्ट्रों की सेना आपस में भिड़ रही थी. यहीं कैबानाटुआन शहर के पास एक जापानी जेल था, जहां सैकड़ों अमेरिकी और फ़िलिपिनो सैनिकों को बेहद क्रूर Bataan Death March के बाद लाया गया था. इस जेल के अंदर के हालात बहुत दयनीय थे और जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा था, जापानी सेना ने दूसरे जेलों में क़ैदियों को मारना शुरू कर दिया. इस बात की पूरी संभावना थी की वो भी मारे जाएंगे.
इसे रोकने के लिए 6th Army ने जो रेस्क्यू मिशन प्लान किया वो लगभग आत्मघाती था. फ़िलिपिनो गुरिल्लों की सहायता से ये सैनिक जापानी लाइनों के 35 मील तक नज़दीक आने में कामयाब रहे. हालांकि, उन्हें तब ये पता चला कि उनके स्काउट्स इस क्षेत्र में जापानी सेना की भारी गतिविधि के कारण जेल की लोकेशन का सही-सही पता नहीं लगा पाए हैं.
अब इन सैनिकों ने अपने दुश्मन से बचते हुए जेल की तलाश जारी रखी और 30 जनवरी, 1945 को जेल में घुस गए. उन्होंने इसे कब्ज़े में लेकर 510 क़ैदियों को आज़ाद करा लिया. इस पूरे रेस्क्यू में केवल दो सैनिक हताहत हुए थे. इस रेस्क्यू मिशन को ‘The Great Raid’ के रूप में जाना जाता है और इसे अब तक के सबसे बहादुर रेस्क्यू मिशनों में से एक माना जाता है.
6. Entebbe में 7 दिन: मिशन इम्पॉसिबल जैसा रेस्क्यू मिशन
27 जून 1976 को एयर फ़्रांस की फ़्लाइट 139 ने इज़राइल के तेल अवीव से पेरिस के चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरी. ग्रीस के एथेंस में विमान का स्टॉपओवर था जहां पर्यटकों के रूप में चार अपहरणकर्ता विमान में सवार हो गए. टेकऑफ़ के बाद 248 लोगों को ले रहे एयरबस ए 300 जेट को युगांडा के Entebbe हवाई अड्डे पर उतरने को मज़बूर किया गया. वहां युगांडा का तत्कालीन तानाशाह ईदी अमीन पहले से सेना की एक टुकड़ी के साथ उनका इंतज़ार कर रहा था. भारी हथियारों से लैस ये बटालियन अपहरणकर्ताओं के लिए बैकअप था.
अपहर्ताओं ने इज़रायली सरकार के सामने अपनी मांगें रखीं: 5 मिलियन डॉलर्स और 50 से अधिक फ़िलिस्तीनी और संबंधित आतंकवादियों की रिहाई या वो तीन दिनों के बाद बंधकों को मारना शुरू कर देंगे. बातचीत से स्थिति को हल करने का प्रयास काम नहीं आ रहा था क्योंकि आतंकवादियों ने फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के विशेष दूतों से मिलने से भी इनकार कर दिया था.
राजनयिक विकल्प समाप्त होने के साथ इज़राइल की प्रधानमंत्री Yitzhak Rabin ने बंधकों को बचाने के लिए अंतिम उपाय को मंजूरी दे दी- इज़राइल से 5 हज़ार किलोमीटर दूर Entebbe हवाई अड्डे पर कमांडोज़ का हमला.
इसके बाद जो हुआ वो अब तक के सबसे दुःसाहसिक रेस्क्यू मिशनों में गिना जाता है. Sharm el-Sheikh से चार C-130 कार्गो विमानों और उसके पीछे दो बोइंग 707 जेट ने उड़ान भरी. मिस्र, सूडान और सऊदी अरब के रडार से बचने के लिए विमान सिर्फ़ 100 फ़ीट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहा था. Entebbe हवाई अड्डे पर कमांडोज़ के उतरने के बाद घमासान लड़ाई हुई. पूरा ऑपरेशन 53 मिनट तक चला. सभी सात अपहर्ता और युगांडा के लगभग 33 से 45 सैनिक मारे गए.
7. तेहरान, ईरान से अमेरिकी राजनयिकों का रेस्क्यू
1979 में हज़ारों ईरानियों ने अमेरिकी दूतावास पर धावा बोला और 63 अमेरिकियों को बंधक बना लिया. इन्हें अगले 444 दिनों तक बंधक बना कर रखा गया. सौभाग्य से छह अमेरिकी राजनयिक दूतावास से निकलने में कामयाब रहे.
ईरान से इनको निकालने के लिए CIA एक योजना लेकर आई, जिसमें इन 6 राजनयिकों को ‘Argo’ नामक एक साइंस-फ़िक्शन फ़िल्म पर काम कर रहे फ़िल्ममेकर होने का नाटक करने को कहा गया जो और लोकेशन स्काउटिंग के लिए ईरान गए थे.
इस ऑपरेशन में वो नकली पासपोर्ट की बदौलत ईरान से बाहर निकलने में सफ़ल रहे. बाद में इस वाकये को भिनेता-निर्देशक, बेन एफ्लेक ने बड़े पर्दे पर उतारा और फ़िल्म ‘Argo’ ने तीन ऑस्कर अपने नाम किये.
8. जब दोनों इंजन फे़ल होने के बाद पानी पर हुई विमान की लैंडिंग
ये इतिहास में सबसे सफ़ल वाकया है जब किसी हवाई जहाज़ को नदी में सही-सलामत लैंड करा दिया गया हो. न्यू यॉर्क के LaGuardia हवाई अड्डे से 150 लोगों को लेकर उड़ान भरने वाला हवाईजहाज़, उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद पक्षियों के एक झुण्ड से टकरा गया और उसके दोनों इंजन फे़ल हो गए.
विमान के कैप्टेन, Capt. Chesley Burnett “Sully” Sullenberger ने न्यू यॉर्क के हडसन नदी में इस विमान की आपात लैंडिंग करा दी. नदी में जितने भी बोट थे सबने तुरंत लोगों को विमान से रेस्क्यू कर लिया. विमान में सवार सभी लोग बच गए और इस आगे चलकर फ़िल्म बनी- Sully
ये रेस्क्यू मिशन इस बात कि मिसाल है कि अगर लोगों में एकता हो और वो साथ मिलकर काम करें तो कुछ भी असंभव नहीं है.
इनमें से कौन सा रेस्क्यू मिशन आपको सबसे शानदार लगा? अपने विचार हम कमेंट में बताइये.