मोहम्मद अली जिन्ना के बिना भारत का राजनीतिक इतिहास अधूरा है. जिन्ना ने भारत में रहकर एक अलग मुल़्क का सपना देखा और काफ़ी राजनीतिक उठा-पटक के बाद पाकिस्तान सामने आया. इस तरह जिन्ना पाकिस्तान के फाउंडर बने और भारत के सबसे बड़े दुश्मन. वहीं, यह भी कहा जाता है कि भारत विभाजन का इतना बड़ा दंश देने के बावज़ूद जिन्ना को बहुत कुछ खोना पड़ा और कई बेशक़ीमती चीज़ें उन्हें भारत में ही छोड़नी पड़ीं. आइये, इसी कड़ी में हम आपको बताते हैं कि भारत छोड़ने से पहले जिन्ना का दिल्ली में आख़िरी दिन कैसा बीता.   

डकोटा विमान   

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तारीख़ थी 7 अगस्त 1947, दिल्ली के पालम हवाईअड्डे पर रॉयल एयरफ़ोर्स ब्रिटेन का ‘डकोटा विमान’ उस मुख्य शख़्स का इंतज़ार कर रहा था जो भारत विभाजन के लिए ज़िम्मेदार था. जी हां, इसी विमान के ज़रिए मोहम्मद अली जिन्ना भारत से अपने नए मुल्क पाकिस्तान रवाना हुए.   

एक महत्वपूर्ण दिन  

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इस दिन को न सिर्फ़ भारत बल्कि जिन्ना के जीवन का भी महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. उन्हें पता था कि कराची जाने के बाद अब वो पहले की तरह भारत में नहीं रह पाएंगे. वहीं, अधिकांश भारतीय विभाजन का दुख लिए इस बात पर थोड़ा संतोष जता रहे थे कि उनके सबसे बड़े दुश्मन को उन्हें दोबारा इस देश की सीमा के अंदर नहीं देखना होगा.  

एक ख़ास कार का इंतज़ाम   

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कहा जाता है कि जिन्ना को हवाई अड्डे तक पहुंचाने के लिए रामकृष्ण डालमिया ने एक ख़ास कार का इंतज़ाम किया था. इस कार में बैठकर ही जिन्ना पालम एयरपोर्ट पहुंचे थे. उनके साथ उनकी बहन फ़ातिमा जिन्ना भी थीं.   

अलविदा कहने आए चंद लोग  

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यह कोई शोर शराबे वाली विदाई नहीं थी. जानकारी के अनुसार, मोहम्मद अली जिन्ना को अलविदा कहने के लिए बहुत की कम लोग हवाई अड्डे पर आए थे. कहते हैं कि जिन्ना ने उनसे मिलने आए चंद लोगों से हाथ मिलाया और तेज़ गति से अपने विमान की ओर बढ़ गए. कहते हैं कि जिन्ना ने तेज़ी से विमान की सीढ़ियां चढ़ीं और मुड़कर दिल्ली को देखा.    

 भावुक थे जिन्ना  

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कहते हैं कि जब तक उड़ते विमान से दिल्ली की इमारतें छोटी होकर ग़ायब न हो गईं, तब तक जिन्ना की नज़र दिल्ली की ही तरफ़ थीं. इस दौरान उन्होंने एक वाक्य कहा कि अब यह भी ख़त्म हो गया. इसके बाद जिन्ना पूरे सफ़र में चुपचाप रहे.   

आख़िरी दिन काफ़ी व्यस्त थे जिन्ना

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कहते हैं कि दिल्ली में आख़िरी दिन जिन्ना काफ़ी व्यस्त थे. उन्होंने कराची जाने से पहले अपना मकान 10, औरंगजेब रोड (वर्तमान में एपीजे कलाम रोड) उद्योगपति राम कृष्ण डालमिया को तीन लाख में बेच दिया था. बाद में डालमिया ने भी इस मकान को बेच दिया था. भारत में अपने आख़िरी दिन वो काफ़ी लोगों से मिले. राम कृष्ण डालमिया भी उनसे मिलने आए.   

मिले थे उपहार   

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कहते हैं कि पाकिस्तान जाने से पहले लार्ड माउंटबेटन ने जिन्ना को दो चीज़ें उपहार में दी. एक एडीसी एहसान अली और दूसरा अपनी रॉल्स रॉयल्स कार. एडीसी एहसान अली पाकिस्तान में जिन्ना के दैनिक कार्य के हिस्सा बने.   

बेटी नहीं आई मिलने   

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कहते हैं कि उन दिनों जिन्ना की बेटी ‘दीना वाडिया’ मुंबई में ही थीं, लेकिन वो अपने पिता से मिलने नहीं आई थीं. बेटी से उनकी बात भी नहीं हुई थी. वहीं, कहते हैं कि वो अपनी बेटी से कुछ नाराज़ भी थे, क्योंकि उनकी बेटी ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ़ जाकर नेविल वाडिया से शादी की थी. इसके अलावा, बेटी दीना ने उनके साथ पाकिस्तान जाने से भी मना कर दिया था.   

कराची में जमा थी भीड़  

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कहते हैं कि जिन्ना का स्वागत करने के लिए कराची हवाई अड्डे पर 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की भीड़ जमा थी. साथ ही पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए जा रहे थे. इसके बाद जिन्ना का काफ़िला कराची की सड़कों को दौड़ने लगा. तो कुछ ऐसा रहा जिन्ना का भारत में आखिरी दिन.