भारत जैसे देश में सिनेमा केवल पर्दे तक ही सीमित नहीं रहता है. यहां फ़िल्में लोगों का और लोग फ़िल्म का हिस्सा हैं. इसलिए सिंगल-स्क्रीन सिनेमा हॉल लोगों के लिए चार दीवारी से बढ़कर थे. यह हॉल देश के लिए ऐतिहासिक और ख़ास रहे हैं. हां, वक़्त के साथ ये सिमटते चले गए, भुला दिए गए मगर कुछ चीज़ें हमेशा के लिए रह जाती हैं. जैसे पुरानी दिल्ली का ‘जगत सिनेमा’.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_f90a669b-3b1a-467f-8527-05a8ba68b7cf.jpg)
1960 के दशक की शुरुआत में बना ‘जगत सिनेमा ‘शहर के सबसे पुराने थिएटरों में से एक है. ‘जामा मस्ज़िद’ के पास बने इस थिएटर को शुरुआत में ‘निशात’ नाम दिया गया था. मगर स्थानीय लोगों के बीच यह जगत कम और ‘मछलीवालों का टॉकीज़’ से ज़्यादा प्रचिलित रहा है. इस सिनेमा में कुछ बेहद आइक़ॉनिक फ़िल्में लगी हैं. 1960 के दौर की ‘मुगल-ए-आज़म’, ‘ज़िंदगी और मौत’, मीना कुमारी की ‘पाकीज़ा’ तो 6 महीने तक चली थी.
अब बंद हो चुकी इमारत के केयरटेकर नौशाद का कहना है, “पहले ये फ़ुल हाउस हुआ करता था. धर्मेंद्र और अन्य प्रसिद्ध अभिनेता अपनी फ़िल्मों के प्रीमियर के लिए यहां आते थे. यह गली लोगों से भरी रहती थी.”
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_01318e3c-d88a-4939-8419-35b145780dfe.jpg)
2004 में सिनेमा हॉल पूरी तरह से बंद हो गया था. आज किसी जर्जर बूढ़े की तरह दिल्ली की गली में खड़ी ये ऐतिहासिक इमारत एक समय सिनेमा प्रेमियों का अड्डा हुआ करती थी.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_d648f346-f397-455d-b397-6e0d70f5bbd5.jpg)
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_ae1e5efe-016c-4408-9d25-7ecc00a774bb.jpg)
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_3917626a-1fe3-4809-b935-b324349e5e88.jpg)
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_b10cf868-cea4-4a31-95f1-3e22a57e544c.jpg)
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2021/06/60b8bf0ed1e99b0866e30148_51b3f21b-1337-4dac-939c-d7e2ac6a5ed6.jpg)