लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें इस नवाबी शहर के कई सदियों का इतिहास अपने में समेटे हुए हैं. मग़र यहां से महज़ 1 घंटे की दूरी पर मौजूद बाराबंकी में एक ऐसा पेड़ है, जिसकी जड़ें महाभारत काल तक जाती है.
लखनऊ से 1 घंटे दूर बाराबंकी के किंतूर गांव में स्थित ये विशाल पारिजात का पेड़ 6 हज़ार साल से भी अधिक पुराना है. दिलचस्प बात ये है कि इस पेड़ का न तो बीज होता है और न ही इस पर फल निकलता है. ऐसे में इस धरती पर ये अपनी तरह का एकमात्र पेड़ है. ये दुनिया के सबसे पुराने पेड़ों में से एक है.
पौराणिक कथा के मुताबिक़, ये पेड़ समुद्र मंथन के दौरान सामने आया था और भगवान इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले गए थे. बाद में भगवान कृष्ण की सलाह पर अर्जुन इसे धरती पर वापस लाए, ताकि महाभारत का युद्ध जीतने के लिए उनकी मां कुंती भगवान शिव को इसके फूल चढ़ा सकें.
इस पेड़ के पौराणिक महत्व के कारण हिंदू इसकी पूजा करते हैं. यहां आस-पास मंदिर भी बने हैं. माना जाता है कि अग़र पारिजात के इस पेड़ के नीचे कोई मन्नत मांगी जाए, तो वो ज़रूर पूरी होती है.
इंद्र भगवान ने दिया था इस पेड़ को श्राप
जैसा पहले बताया गया कि इस पारिजात के इस पेड़ में न तो बीज हैं और न ही फल. इसके पीछे वजह है इंद्र का श्राप. कहते हैं कि जब इंद्र के पास से अर्जुन इस पेड़ को स्वर्स से धरती पर ले आए, तो नाराज़ इंद्र ने पेड़ को श्राप दे दिया. यही वजह कि ये पेड़ कलमहीन हो गया है, यानि इस पेड़ से किसी दूसरी जगह कोई नया पौधा नहीं लगाया जा सकता है.
आप इस पेड़ के पीछे की कहानी पर यक़ीन करें या नहीं, लेकिन ये वाकई में अपनी तरह का एकमात्र पेड़ है. वर्तमान में ये 45 मीटर लंबा और 50 मीटर एरिया में फैला है. साल के 6 महीने ये सूखा रहता है. फिर जून-जुलाई से 6 महीने हरा-भरा हो जाता है. ये पेड़ संरक्षित है, इसलिए लोग इसे छू नहीं सकते हैं.