Rani Avantibai of Ramgarh. 1857 की क्रांति (Revolt of 1857) में न सिर्फ़ भारत के वीरों ने माटी की रक्षा के लिये अंग्रेज़ों से लोहा लिया था बल्कि असंख्य वीरांगनाओं भी अंग्रेज़ों से देश को आज़ाद करने के लिये शस्त्र उठाये थे. 1857 में शामिल वीरांगनाओं की बात करें तो रानी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) का नाम देश का हर नागरिक जानता हैं लेकिन उनके अलावा भी कई महिला योद्धाओं ने देश के कोने-कोने में क्रांति की अग्नि को हवा दी.
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कुछ को इतिहास में हल्की-फुल्की जगह नसीब हुई वहीं कुछ का बलिदान इतिहास के पन्नों में कहीं ग़ुम गया. अंग्रेज़ों से लोहा लेने में एक और रानी के बारे में आज जानते हैं. वो रानी थी, रानी अवंतीबाई (Rani Avantivai). रानी अवंतीबाई लोधी महाराजा विक्रमादित्य सिंह की पत्नी थी और रामगढ़ रियासत की रानी थी. ये रियासत अभी मध्य प्रदेश राज्य में आता है.
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प्रारंभिक जीवन
Live History India के लेख के अनसुार, अगस्त 1831 को एक ज़मीनदार राजा जुझर सिंह के घर रानी अवंतीबाई का जन्म हुआ. Feminism In India के लेख की मानें तो रानी बचपन से ही तलवार चलाना, धनुर्विद्या, सैन्य रणनीतियां आदि में निपुण थीं.
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रामगढ़ की बागडोर संभाली
रामगढ़ (डिंडौरी) के ज़मीनदार राजा गजसिंह के पोते विक्रमादित्य सिंह के साथ अवंतीबाई का विवाह हुआ. बीमार रहने और धर्म में ज़्यादा रूचि होने की वजह से विक्रमादित्य ठीक से राज्य नहीं चला पाते थे. विक्रमादित्य काफ़ी ज़्यादा बीमार हो गये और अवंतीबाई ने रामगढ़ का राज-काज अपने हाथ में लिया. लोधी राज्य अवंतीबाई के कुशल नेतृत्व के अंदर भी फलने-फूलने लगा.
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रामगढ़ पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा
अंग्रेज़ों ने अवंतीबाई का शासन स्वीकार करने से इंकार कर दिया. अंग्रेज़ों ने अवंतीबाई के बेटों, अमन सिंह और शेर सिंह को रामगढ़ का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिय. दोनों राजकुमारों को Minor कहकर अंग्रेज़ों ने अपनी इच्छा चलाई.
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1857 की क्रांति
राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद रानी अवंतीबाई को अंग्रेज़ों से बदला लेने का सुनहरा अवसर मिला. रानी अवंतीबाई ने शेख मोहम्मत को रियासत बाहर कर दिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी.
रानी अवंती बाई ने चूड़ियों के साथ ये संदेश भेजा,
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अंग्रेज़ों के साथ युद्ध
मध्य भारत के प्रांतों में भी क्रांति की ज्वाला भड़क उठी. रानी अवंतीबाई ने 4000 की फौज के साथ अंग्रेज़ों पर हमला बोला. The Better India के लेख के अनुसार, रानी अवंतीबाई की अंग्रेज़ों के साथ पहली जंग, खेरी (Kheri) नामक गांव में हुई. इस जंग में अंग्रेज़ों की हार हुई.
अंग्रेज़ों ने अवंतीबाई को घेर लिया और बंदी बनना रानी को स्वीकार नहीं था. 20 मार्च, 1858 को रानी ने अपनी तलवार से अपने प्राण ले लिये. रानी अवंतीबाई को सच्ची श्रद्धा यही होगी कि हम उनके बारे में पढ़ें और उनके बारे में आने वाली पीढ़ियों को भी बतायें.