दिसंबर 2019 में वैश्विक महामारी ‘कोरोना वायरस’ ने पहली बार चीन के ‘वुहान’ शहर में दस्तक दी थी. 31 दिसंबर को वुहान में कोरोना का पहला मामला सामने आया था. इसके बाद ये वायरस धीरे-धीरे दुनियाभर में फ़ैलने लगा. आज हालात ये हैं कि पूरी दुनिया में अब तक 17 करोड़ से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इस दौरान 35 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
कोरोना वायरस की तरह ही सन 1817 में दुनियाभर में कॉलरा (ब्लू डेथ) ने दस्तक दी थी. भारत में इसे ‘हैजा’ कहा जाता है. इसके बाद ‘हैजा’ दुनियाभर में मौत का तांडव करने लगा और इसकी चपेट में आकर उस समय लगभग 1 करोड़, 80 लाख लोगों की मौत हो गयी थी. इस दौरान दुनिया भर के वैज्ञानिक ‘हैजा’ का इलाज खोजने में जुट गये. इस बीमारी के चलते भारत में भी लाखों लोगों मारे गए थे.
सन 1844 ‘रॉबर्ट कॉख’ नामक वैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च में ‘Asiatic Cholera’ नामक जीवाणु का पता लगाया जिसकी वजह से ‘हैजा’ होता है. इस दौरान रॉबर्ट ने जीवाणु का पता तो लगा लिया, लेकिन वो ये पता लगाने में नाकाम रहे कि ‘Asiatic Cholera’ को कैसे निष्क्रिय किया जा सकता है. ऐसे में ‘हैजा’ तेज़ी से फैलता रहा और दुनियाभर में करोड़ों लोग मरते रहे.
1 फ़रवरी, 1915 को पश्चिम बंगाल के हुगली में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम संभुनाथ डे (Sambhu Nath Dey) था. संभुनाथ शुरुआत से ही पढ़ाई में अव्वल रहे. इसके बाद उन्होंने ‘कोलकाता मेडिकल कॉलेज’ में दाखिला मिल गया, लेकिन डॉक्टरी से अधिक उनका रुझान ‘रिसर्च’ की ओर था. इसके बाद सन 1947 में उन्होंने ‘यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन’ के ‘Sir Roy Cameron’ में पीएचडी में दाखिला ले लिया लिया.
मानव शरीर की संरचना पर शोध करते समय ‘संभुनाथ डे’ का ध्यान ‘हैजा’ फैलाने वाले जीवाणु ‘Asiatic Cholera’ की ओर गया. सन 1949 माटी का प्यार उन्हें हिंदुस्तान खींच लाया. इस दौरान भारत में ‘हैज़ा’ अपने चरम पर था. बंगाल भी हैज़े के कहर से बुरी तरह से बेहाल था. हॉस्पिटल हैज़े के मरीज़ों से भरे हुये थे.
सन 1955 में ‘संभुनाथ डे’ को ‘कलकत्ता मेडिकल कॉलेज’ के पैथोलॉजी विभाग का निदेशक नियुक्त किया गया और वो महामारी का रूप ले चुके ‘हैजा‘ का इलाज ढूंढने में जुट गये. इस दौरान संभुनाथ ने ‘हैजा’ फैलाने वाले जीवाणु ‘Asiatic Cholera’ पर रिसर्च शुरू कर दी. कुछ ही समय बाद उन्होंने अपने शोध के निष्कर्ष से विश्व भर में सनसनी फैला दी.
दरअसल, रॉबर्ट कॉक ने सन 1844 के अपने शोध में जीवाणु को इंसान के सर्कुलेटरी सिस्टम यानी कि खून में जाकर उसे प्रभावित करने की खोज की थी. रॉबर्ट कॉख ने यहीं पर ग़लती कर दी थी, उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि ये जीवाणु व्यक्ति के किसी और अंग के ज़रिए शरीर में ज़हर भी फ़ैला सकता है.
‘संभुनाथ डे’ ने अपने शोध पाया कि ‘Asiatic Cholera’ ख़ून के रास्ते नहीं, बल्कि छोटी आंत में जाकर एक टोक्सिन/ज़हरीला पदार्थ छोड़ता है. इसकी वजह से इंसान के शरीर में ख़ून गाढ़ा होने लगता है और पानी की कमी होने लगती है. सन 1953 में ‘संभुनाथ डे’ का शोध प्रकाशित होने के बाद ही ‘ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन’ (ORS) बनाया गया था.
ये सॉल्यूशन हैजे का रामबाण इलाज साबित हुआ. भारत और अफ़्रीका में इस सॉल्यूशन के ज़रिये लाखों मरीज़ों को मौत के मुंह से निकाला गया था. ‘संभुनाथ डे’ की इस रिसर्च ने ‘ब्लू डेथ’ महामारी के आगे से डेथ (मृत्यु) शब्द को हटा दिया था.
इसके बाद दुनियाभर में ‘संभुनाथ डे’ के शोध का डंका बजने लगा. लेकिन उनकी बदकिस्मती थी कि उनका ये शोध भारत में हुआ था. वो इस जीवाणु पर आगे और शोध करना चाहते थे, लेकिन भारत में संसाधनों की कमी के चलते नहीं कर पाये. देश के करोड़ों लोगों को जीवनदान देने वाले संभुनाथ को अपने ही देश में वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे.
‘संभुनाथ डे’ का नाम एक से अधिक बार नोबेल पुरस्कार के लिए भी दिया गया. इसके अलावा, उन्हें दुनियाभर में सम्मानों से नवाज़ा गया, लेकिन भारत में वो गुमनामी की ज़िंदगी जीते रहे. इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी वो न तो ‘राष्ट्रीय नायक’ बन सके न ही किसी सम्मान से नवाजे गये. सरकार ने भी उनकी कोई सुध नहीं ली. इसीलिए ‘संभुनाथ डे’ को ‘गुमनाम नायक’ के नाम से जाना जाता है.