यहूदियों को मारने और यातनाएं देने वाले नाज़ी पार्टी के नेता जर्मनी के क्रूर तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर के बारे में तो ख़ूब सुना होगा, लेकिन वो सब उसके खिलाफ़ ही था. मगर एक ऐसी महिला थी, जो हिटलर को भगवान मानती थी और उसकी विचारधारा से बहुत प्रेरित थी. वो महिला सावित्री देवी थी, जो एक नाज़ी जासूस थी. नाज़ी जासूस वो होते हैं, जो भारत में अंग्रेज़ों की जासूसी करते हैं. इसके अलावा उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जापानियों से मुलाक़ात कराने में भी अहम भूमिका निभाई थी. यही वजह थी कि आज़ाद हिंद फ़ौज की नींव पड़ी, लेकिन सावित्री देवी जन्म से भारतीय नहीं थीं. वो एक फ़्रेंच-हिंदू महिला थीं.

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सावित्री देवी 30 सितंबर, 1905 को फ्रांस के लियॉन शहर में पैदा हुईं थी. इनका असली नाम मैक्सिम्यानी जूलिया पोर्टास था. इनकी मां ब्रिटिश थीं और पिता ग्रीक इतालवी थे. इनके बार में कहा जाता था कि वो हिटलर की दीवानी थीं और हिटलर की तरह ही जानवरों से प्यार करती थीं और शाकाहारी थीं. वो हमेशा जानवरों पर होने वाले अत्याचारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती थीं.

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1958 में सावित्री देवी की क़िताब ‘द लाइटनिंग एंड द सन’ में छपी एक बात ने साबित किया कि वो हिटलर की दीवानी थीं. उन्होंने लिखा था कि वो हिटलर को भगवान विष्णु का अवतार मानती हैं और उन्हें लगता है कि हिटलर का जन्म कलयुग ख़त्म करने के लिए हुआ है. इस क़िताब के चर्चे भी ख़ूब हुए थे.

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जहां एक ओर फ़्रांस के अधिकतर लोग यहूदियों को मारने वाले और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ़्रांस की सरकार को घुटने पर लाने वाले हिटलर से नफ़रत कर रहे थे, वहीं जूलिया यानी सावित्री देवी हिटलर की विचारधारा को पसंद कर रही थीं, उन्हें आर्य संस्कृति से भी लगाव था. इसके चलते ही उन्होंने अपना नाम सावित्री देवी रख लिया और हिंदू धर्म अपना लिया.

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सावित्री देवी ने केमिस्ट्री में मास्टर्स और फ़िलॉस्फ़ी में पीएचडी की और पढ़ाई पूरी होने के बाद वो अध्यात्म की ओर चली गईं. इसी के चलते वो ग्रीस गईं, जहां उन्होंने एथेंस के एक महल में स्वास्तिक चिह्न देखा, जिसे 19वीं सदी के जर्मन आर्कियोलॉजिस्ट हैनरीक श्लैमन ने बनवाया था. तभी उन्होंने सोचा कि प्राचीन ग्रीक असल में आर्य ही थे. बस फिर उनकी ज़िंदगी बदलती चली गई और आर्यों में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी.

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इसके बाद उन्होंने ग्रीस की नागरिकता ले ली और 1929 में फ़लस्तीन में एक धार्मिक यात्रा के दौरान ख़ुद को नाज़ी मान लिया. नाज़ियों के अनुसार, आर्य जाति सभी सभ्यताओं का आधार थी. सावित्री देवी भी इसी विचारधारा को मानती थीं और इसीलिए हिटलर के यहूदियों पर किए जा रहे ख़ौफ़नाक अत्याचारों को वो ‘आर्य वंश’ को बचाने की दिशा में उठाया गया एक सही क़दम मानती थीं.

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मगर 1945 में जर्मनी में नाज़ियों के पतन और हिटलर की आत्महत्या ने सावित्री देवी को हिलाकर रख दिया और उन्होंने लिखा, ‘हमारे समय के भगवान रूपी इंसान, समय के विरुद्ध चलने वाले, सबसे महान यूरोपियन, सूर्य के तेज और बिजली की चमक वाले एडोल्फ़ हिटलर को कभी न ख़त्म होने वाले प्यार और वफ़ादारी भरी श्रद्धांजलि.’ इसके बाद वो यूरोप वापस चली गईं, ताकि नाज़ियों का मनोबल बढ़ा सकें.

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1948 में जब वो नाज़ियों की वक़ालत करने वाले पर्चे बांट रही थीं, तो इसे जुर्म मानकर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और दो साल की सज़ा सुनाकर जेल भेज दिया गया. जेल में भी उन्होंने आर्यों की श्रेष्ठता और उनके प्रभुत्व का बखान किया. इसके बाद नाज़ियों और उनकी विचारधारा पर लिखी क़िताबों की वजह से धीरे-धीरे सावित्री देवी यूरोप में मशहूर हो गईं. 1971 में सावित्री देवी भारत लौट आईं और दिल्ली में रहने लगीं.

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कुछ वक़्त बाद उन्हें मोतियाबिंद होने से उनकी तबियत ख़राब रहने लगी.तो1981 में वो इंग्लैंड चली गईं. फिर 1982 में उनकी मृत्यु हो गई. सावित्री देवी को वर्जीनिया में अमेरिकी नाज़ी नेता जॉर्ज लिंकन रॉकवेल की कब्र के बगल में दफ़नाया गया.