IAF Veteran Jagan Mohan Nath. लगभग 58 साल पहले स्क्वाड्रन लीडर जग मोहन नाथ (Squadron Leader Jag Mohan Nath) अपने Jet में बैठे और पड़ोसी देश पाकिस्तान (Pakistan) की तरफ़ उड़ गये, एक टॉप सिक्रेट मिशन (Top Secret Mission) को पूरा करने. 3 साल बाद सितंबर 1965 को भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के इस जाबांज़ पायलट को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. परम वीर चक्र (Param Vir Chakra) के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा मिलिट्री वीरता पुरस्कार है.


ये है स्क्वाड्रन लीडर जग मोहन नाथ की कहानी, जिन्हें जीवनकाल में 2 बार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.   

Rediff

प्रारंभिक जीवन 

जग मोहन नाथ का जन्म पंजाब के एक गांव में हुआ, जिस गांव में उनका जन्म हुआ वो अब पाकिस्तान में है. विभाजन (Partition) के बाद जग मोहन का परिवार भारत आ गया. उनके परिवार में सभी डॉक्टर्स थे लेकिन बचपन से ही उनकी रूचि हवाई जहाज़ों में थी और वो घंटों आकाश में उड़ते विमानों को देखकर बिताते.  

Rediff

भारतीय वायुसेना से जुड़े 

1948 में जग मोहन नाथ ने एयर फ़ोर्स एडमिनिस्ट्रेटिव कॉलेज, कोयंबटूर (Air Force Administrative College, Coimbatore) जॉइन किया. जग मोहन की वीरता और बहादुरी देखकर जल्द ही उन्हें कठिन ऑपरेशन्स के लिये चुन लिया गया.  

Rediff

1962 भारत-चीन युद्ध 

20 अक्टूबर, 1962 को भारत और चीन के जवानों के बीच महीनेभर का Standoff शुरू हुआ. भारत के लगभग 10000-20000 सिपाही और चीन के 80000 सिपाही शामिल थे. भारतीय वायुसेना ने थल सेना की हर तरह से मदद की.

इस Stand-off के दौरान जग मोहन नाथ को अकसाई चीन (Aksai Chin Area) और तिब्बत (Tibet) में चीन की सैन्य शक्ति का जायज़ा लेने का कार्य सौंपा गया. जग मोहन ने Canberra (2 इंजन वाले Jet Bomber) में उड़ान भरी. इस प्लेन में कैमरा लगे थे. दुश्मन के क्षेत्र में निडर होकर भारत-चीन संघर्ष से पहले और संघर्ष के बाद जग मोहन नाथ ने उड़ानें भरी. 

विपरीत परिस्थितियों में भी शौर्य दिखाने के लिये जग मोहन नाथ को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.    

Facebook

1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध 

1965 के युद्ध में भी जग मोहन नाथ ने वीरता दिखाई. उस दौर में हिमालय की घाटियों में बने रणक्षेत्र में Radar नहीं लगे थे और दुश्मन देश की सेना ने पोस्ट बना लिये थे. भारतीय सेना की खोज में पाकिस्तान सक्ती से गश्त भी लगा रहा था.

अपने Sorties के दौरान जग मोहन नाथ अपनी Electra Canberra में दुश्मन के क्षेत्र में उड़ान भरते. कम ऊंचाई पर, पेड़ों की आड़ से होते हुये जग मोहन नाथ ने कई तस्वीरें ले लीं. 12000 फ़ीट पर आकर दिन के समय जग मोहन नाथ ने Airfields और Installations की तस्वीरें ले लीं. मिशन का ये 5 मिनट सबसे ख़तरनाक था और कुछ भी हो सकता था. पाकिस्तानी सेना द्वारा मार गिराये जाने से बचने के लिये जग मोहन को कई बार चोटियों के बीच प्लेन को ख़तरनाक तरीके से उड़ाना पड़ा. जग मोहन कुछ इस तरह अपने देश के आकाश में लौटे कि उन्हें भारतीय वायुसेना का Mig दुश्मन समझ कर उड़ा ही देता! जग मोहन ने पाकिस्तान क्षेत्र में लगभग 30 बार Sortie की. उनकी वजह से भारतीय वायुसेना Badin के शक्तिशाली Radar को नष्ट करने में क़ामयाब हुई.   
जग मोहन नाथ के ख़तरनाक मिशन्स के बारे में सिर्फ़ भारतीय वायुसेना के चीफ़, एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह (Air Chief Marshal Arjan Singh) को पता था. मिशन के लिये जग मोहन नाथ को ‘Professor’ कोडनेम दिया गया था. 

1965 के युद्ध में वीरता के लिये जग मोहन नाथ को दूसरी बार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

Rediff

जग मोहन नाथ ने 1962 और 1965 के युद्ध में बेहद अहम भूमिका निभाई, उनके शौर्य को हमारा सलाम.