7वीं सदी में मुग़ल शासक मोहम्मद बिन कासिम ने ‘अरोर की लड़ाई’ में अंतिम हिंदू राजा, राजा दाहिर को हराकर सिंध और मुल्तान पर कब्ज़ा किया था. कासिम पहला मुस्लिम शासक था जिसने सफ़लतापूर्वक हिंदू क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया था. मोहम्मद बिन कासिम ने जब सिंध और मुल्तान पर आक्रमण किया तब वो अरब सेना में कमांडर था. लेकिन वीर योद्धा तक्षक ने इन विदेशी आक्रमणकारियों को वो सबक सिखाया जिसकी ये कल्पना भी नहीं कर सकते थे.
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मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में जब अरब सेना ने सिंध पर आक्रमण किया था, तब ‘तक्षक’ मात्र 8 वर्ष का था. अरब सेना जब ‘तक्षक’ के गांव पहुंची तो गांव में हाहाकार मच गया. कासिम और उसके सैनिकों ने चुन-चुनकर गांव के सभी युवाओं को मार डाला. तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर की सेना में सैनिक थे. वो इस युद्ध में लड़ते हुए वो शहीद हो गए. कासिम के सैनिकों के जुल्मों से तंग आकर ‘तक्षक’ की मां और दोनों बहनों ने भी ख़ुदकुशी कर ली.
मां ने मरने से पहले ‘तक्षक’ को एक अंधेर कोने में छुपा दिया था. कासिम के सैनिकों के जाने के बाद ‘तक्षक’ ने जब ज़मीन पर मृत पड़ी मां और दोनों बहनों के चेहरों को देखा तो उसी समय कसम खा ली थी कि वो एक दिन इन विदेशी आक्रमणकारियों का सर्वनाश कर देगा. इसके बाद 8 साल के ‘तक्षक’ ने ज़मीन पर पड़ी मृत मां के आंचल से अंतिम बार अपनी आंखें पोंछी और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया.
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25 वर्ष बीत गए, अब ‘तक्षक’ 33 वर्ष का नौजवान बन चुका था. वो कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था. वर्षों से किसी ने भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं देखा. वो न कभी ख़ुश होता था, न कभी दुखी, उसकी आंखें सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं. दरअसल, तक्षक को उसके परिवार के साथ हुई वो दुर्घटना हमेशा इस बात का अहसास दिलाती थी कि उसने कासिम की सेना से बदला लेना है.
कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का अंगरक्षक होने के नाते ‘तक्षक’ भी पराक्रम के मामले में उनसे कुछ कम नहीं था. अपनी तलवार के एक वार से हाथी तक को मार गिराने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था. कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति के लिए जाने जाते थे. सिंध पर शासन कर रहा अरब नरेश कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुका था, लेकिन हर बार राजपूत योद्धाओं ने उसे खदेड़ फेंका.
7वीं सदी के अंत की बात है. कन्नौज नरेश नागभट्ट को सूचना मिली कि अरब ख़लीफ़ाओं के सहयोग से सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: 2 से 3 दिन के अंदर ये सेना कन्नौज की सीमा पर होगी. सिंध की सेना से निपटने के लिए महाराज नागभट्ट ने रणनीति बनाने के लिए एक सभा बैठाई.
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कन्नौज नरेश नागभट्ट की सबसे अच्छी बात ये थी कि वो अपने सभी सेनानायकों का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे. आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे. अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला- महाराज, ‘हमें इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा’. महाराज ने ध्यान से अपने इस अंगरक्षक की ओर देखा और बोले- ‘अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नहीं पा रहे हैं’.
इसके बाद तक्षक ने कहा, महाराज, ‘अरब सैनिक महा बर्बर हैं. सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे. उनको उन्ही की शैली में हराना होगा’. महाराज के माथे पर लकीरें उभर आई और बोले– ‘किन्तु हम धर्म और मर्यादा नहीं छोड़ सकते हैं वीर योद्धा तक्षक’.
इस पर तक्षक ने कहा, ‘मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों, ये राक्षस हैं महाराज, इनके लिए मासूमों की हत्या और बलात्कार ही धर्म है, लेकिन ये हमारा धर्म नही हैं. राजा का केवल एक ही धर्म होता है और वो है प्रजा की रक्षा करना. देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था. महाराज, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब सैनिक हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ न जाने कैसा व्यवहार करेंगे’.
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, इस दौरान सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था. इसके बाद महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ युद्ध रणनीति के लिए गुप्तकक्ष की ओर चल दिए. अगले दिन कन्नौज सेना तक्षक के नेतृत्व में युद्ध के लिए सीमा की ओर निकल पड़ी. आधी रात्रि बीत चुकी थी, अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी. अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी.
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सिंध सेना को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा कतई न थी. एरान सैनिक उठते, सावधान होते और हथियार संभालते इससे पहले ही तक्षक की सेना ने उन्हें गाजर-मूली की तरह काट डाला था. इस दौरान ‘तक्षक’ का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था. वो अपनी तलवार चलाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी. सूर्य उदय से पहले ही अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी. दोपहर होते-होते समूची अरब सेना का विनाश हो चुका था.
अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले अरब आक्रमणकारियों को पहली बार ऐसा जवाब मिला था. विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, लेकिन ‘तक्षक’ नज़र नहीं आ रहा था. इसके बाद जब सैनिकों ने युद्धभूमि में खोज की तो देखा कि अरब सैनिकों के शवों के बीच ‘तक्षक’ मृत पड़ा है. उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया. कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा निहारने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उन्हें प्रणाम किया.
इस तरह से ‘वीर योद्धा तक्षक’ ने अपने शौर्य कौशल और बुद्धि से कासिम और उसकी सेना को ख़त्म कर हिन्दुस्तान की रक्षा की थी. ‘तक्षक’ ही वो वीर योद्धा था जिसने सिखाया कि देश पर आक्रमण करने वालों से कैसे निपटा जाता है!
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