Locally Famous Temples Uttarakhand. उत्तराखंड (Uttarakhand) को देवताओं की भूमि कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार, उत्तरी भारत के इस राज्य में कई देवताओं का निवास रहा है. जहां-जहां देवताओं का निवास रहा वहां मंदिरों का निर्माण किया गया. पूरे राज्य में कई देवी-देवताओं के वर्षों पुराने मंदिर हैं. हरिद्वार (Haridwar), ऋषिकेश (Rishikesh), नैनी देवी मंदिर (Naini Devi Mandir), केदारनाथ (Kedarnath), बद्रीनाथ (Badrinath) के बारे में ज़्यादातर देशवासियों को पता है.
आज हम बात करेंगे, उत्तराखंड के कुछ ऐसे स्थानीय मंदिरों (Local Temples) की जिनसे स्थानीय निवासियों की आस्था जुड़ी हुई है-
1. कोटेश्वर महादेव मंदिर, रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) से 3 किलोमीटर ट्रेक करने के बाद कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple) पहुंच सकते हैं. ये मंदिर गुफ़ा के अंदर है. कहते हैं कि पांडव, कौरवों को मारने के बाद महादेव के पास क्षमा प्राप्ति के लिये जा रहे हैं. उस समय महादेव पांडवों को दर्शन न देने की इच्छा से इधर-उधर छिप रहे थे. केदारनाथ के रास्ते जाते समय कुछ समय के लिये महादेव कोटेश्वर में रुके थे.
2. बागनाथ मंदिर, बागेश्वर
बागेश्वर (Bageshwar) में है बागनाथ मंदिर (Bagnath Temple). शिवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित है महादेव को समर्पति ये मंदिर. कहते हैं कि ऋषि मार्कण्डेय ने यहां महादेव की पूजा की थी और महादेव ने बाघ के रूप में उन्हें दर्शन दिये थे.
3. कैंची धाम, नैनीताल
नैनीताल (Nainital) ज़िले में क्षिप्रा नदी के तट पर है कैंची धाम (Kainchi Dham). 1962 में बाबा नीम करौरी (Baba Neem Karoli) यहां पधारे थे. 15 जून, 1964 को यहां हनुमान जी की स्थापना की गई और यहां एक वार्षिक मेला भी लगता है.
4. कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा
अल्मोड़ा (Almora) स्थित कसार देवी मंदिर (Kasar Devi Temple) दूसरी शताब्दी में बना था. इस मंदिर में न सिर्फ़ श्रद्धालु बल्कि NASA वैज्ञानिक भी आते हैं क्योंकि ये मंदिर Vab Allen Belt पर है. यहां ध्यान लगाने वाले लोगों को अलग ही ऊर्जा की अनुभूति होती है क्योंकि इस क्षेत्र में Geomagnetic Forces हैं.
5. चितई गोलू देवता मंदिर, अल्मोड़ा
अल्मोड़ा (Almora) से 8 किलोमीटर की दूरी पर और बिनसर वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी (Binsar Wildlife Sanctuary) के मुख्य द्वार से 4 किलोमीटर दूर है चितई गोलू देवता मंदिर (Chitai Golu Devta Temple). चितई मंदिर की सबसे बड़ी पहचान हैं यहां बंधे हज़ारों घंटियां. कहते हैं गोलू जी न्याय के देवता हैं और उत्तराखंड निवासियों का विश्वास है कि जो उनकी पूजा करता है उसे न्याय ज़रूर मिलता है.
6. जागीश्वर धाम मंदिर, अल्मोड़ा
वास्तुकला का बहुत अच्छा उदाहरण है उत्तराखंड के अल्मोड़ा का जागीश्वर धाम मंदिर (Jageshwar Dham Temple). इस स्थान पर महादेव को समर्पित लगभग 124 मंदिर हैं. इस मंदिर के पीछे जटा गंगा बहती है और चारों तरफ़ सुंदर पहाड़ हैं. Archaeological Survey of India के अनुसार ये मंदिर गुप्त काल के हैं यानि 2500 सालों से भी ज़्यादा पुराने हैं.
7. पाताल भुवनेश्वरी मंदिर, पिथौड़ागढ़
पिथौड़ागढ़ (Pithoragarh) स्थित पाताल भुवनेश्वरी मंदिर (Patal Bhuvneshwari Temple) का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है. कहते हैं इस स्थान पर 33 करोड़ देवी-देवता, देवी के संग हैं. पाताल भुवनेश्वरी की गुफ़ा 180 मीटर लंबी और 90 फ़ीट गहरी है.
8. नंदा देवी मंदिर, पिथौड़ागढ़
पिथौड़ागढ़ (Pithoragarh) स्थित नंदा देवी मंदिर (Nanda Devi Temple) देवी नंदा या देवी पार्वती को समर्पित है. 3 किलोमीटर की चढ़ाई कर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. यहां से हिमालय पर्वतों का अद्भुत नज़ारा दिखता है.
9. बिनसर महादेव मंदिर, रानीखेत
रानीखेत (Ranikhet) में देवदारों के ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच है बिनसर महादेव मंदिर (Binsar Mahadev Temple). कहते हैं इस मंदिर का निर्माण 9वीं-10वीं शताब्दी के बीच हुआ. इस मंदिर में गणेश, हर गौरी और महेशमर्दिनी की मूर्तियां हैं.
10. मध्यमहेश्वर मंदिर, चमोली
चमोली (Chamoli) ज़िले के मंसुना गांव में स्थित मध्यमहेश्वर मंदिर (Madhyamaheshwar Temple) महादेव को समर्पित मंदिर है. पंच केदार तीर्थ यात्रा का चौथा मंदिर है, मध्यमहेश्वर. कहते हैं इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. इस मंदिर की वास्तुकला उत्कृष्ट है.
11. झूला देवी मंदिर, रानीखेत
रानीखेत (Ranikhet) से 7 किलोमीटर दूर है झूला देवी मंदिर (Jhoola Devi Temple) देवी दुर्गा का मंदिर है. इस मंदिर की देवी झूले पर हैं इसलिये मंदिर का नाम झूला देवी पड़ गया. स्थानीय निवासियों का कहना है कि ये मंदिर 700 साल पुराना है. इस मंदिर में भी बहुत सारी घंटियां टंगी दिख जायेंगी.
12. योगध्यान बदरी, चमोली
चमोली (Chamoli) स्थित योगध्यान बदरी (Yogdhyan Badri), बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Mandir) जितना ही पुराना है. पांडुकेश्वर जोशीमठ से 24 किलोमीटर दूर यह मंदिर, पांच बद्री में से एक है. कहा जाता है कि पांडवों ने परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा बनाया और यहां सेवानिवृत्त हुये. राजा पांडु ने यहीं पर भगवान विष्णु की तपस्या कर दो हिरणों (ऋषि और ऋषि पत्नी) की हत्या करने की क्षमा याचना की थी. पांडवों का जन्म भी यहीं हुआ था.
13. माता मूर्ति मंदिर, बद्रीनाथ
बद्रीनाथ (Badrinath) से 3 किलोमीटर दूर है माता मूर्ति मंदिर (Mata Murti Temple). नर और नारायण की माता को समर्पित यह मंदिर अलकनंदा नदी (Alaknanda River) की दाहिनी ओर है. माता मूर्ति ने भगवान विष्णू से प्रार्थना की थी कि वो उनके गर्भ से उतपन्न हों.
14. चंद्रबदनी मंदिर, टिहरी
चंद्रबदनी पहाड़ (पहले चंद्रकूट पहाड़) पर स्थित है चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadni Temple) एक शक्ति पीठ है और कहते हैं यहां पर सती का बदन (शरीर) गिरा था. इस मंदिर से सुरकंडा, केदारनाथ और बद्रीनाथ की पहाड़ियों का बड़ा ही मनोरम दृश्य देखने को मिलता है. इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि माता की पूजा एक यंत्र के रूप में होती है. कहते हैं कि क्योंकि यहां माता का बदन गिरा था इसलिये कोई माता के दर्शन नहीं कर सकता. पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर माता को स्नान कराते हैं.
15. पूर्णागिरी मंदिर, चम्पावत
देवी के 108 शक्ति पीठों में से एक है चम्पावत (Champawat) का पूर्णागिरी मंदिर(Purnagiri Temple). चैत्र नवरात्र के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. कहते हैं कि इस स्थान पर सती का वक्ष गिरा था. मंदिर तक पहुंचने के लिये लगभग 3 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है और चढ़ाई करने में सक्षम लोग ही इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं.
16. मां वाराही धाम, देवीधूरा, चम्पावत
चम्पावत (Champawat) लोहाघाट (Lohaghat) से 45 किलोमीटर दूर है देवीधूरा (Devidhura) और यहां है मां वाराही धाम (Maa Barahi Dham). हर साल इस मंदिर में एक विराट मेला लगता है जिसे बगवाल कहते हैं. इस मेले के दौरान दो गुटों के बीच पत्थरबाज़ी होती है, नाचना-गाना होता है. कहते हैं कि पत्थरबाज़ी के दौरान किसी की भी मौत नहीं होती.
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