15 अगस्त, 1947 भारतीय इतिहास का वो दिन था जब हमें बहुत कुछ वापस मिला तो हमने उससे ज़्यादा खोया भी था. जिसकी भरपाई हम आजतक कर रहे हैं. आपने सही समझा मैं यहां भारत-पाकिस्तान के विभाजन की बात कर रही हूं. यह विभाजन अपने साथ हिंसक दंगे, बड़े पैमाने पर हताहत और लाखों लोगों का पलायन अपने साथ लाया.
इस विभाजन ने देश की राजधानी को एक नए सांचे में ढाल दिया. ऐसे तो दिल्ली में कई उठा-पटक होती रही है मगर ये जो अब बदल रहा था ऐसा पहले कभी न हुआ था. दिल्ली की एक तिहाई आबादी ( 9,00,000 में से 3,29,000 लोग) पाकिस्तान के लिए निकले. तो वहीं पाकिस्तान से 4,95,000 लोग दिल्ली में रहने के लिए आये. आइए, तस्वीरों में देखते हैं बदलती और बदहाल दिल्ली को:
1. दिल्ली के पुराने क़िले के पास लगा एक शरणार्थी शिविर.

2. हुमांयू के मक़बरे पर लगा मुस्लिमों के लिए शरणार्थी शिविर.

3. दिल्ली से पाकिस्तान के लिए रवाना होने के लिए इंतज़ार करते लोग

4. शरणार्थी शिविर के अंदर का नज़ारा

5. पुराने क़िले का एक नज़ारा

6. हुमांयू के मक़बरे के पास शरणार्थियों के लिए लगे कैंप

7. सब जगह एक ही नज़ारा दिखता है

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8. पलायन करते लोग

9. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को तिरंगा फहराते देखने के लिए 16 अगस्त, 1947 की सुबह लाल किले पर एकत्र हुए हज़ारों लोग

10. 7 अगस्त, 1947 को नए बने पाकिस्तान सरकार के कर्मचारियों को कराची ले जाने वाली 30 विशेष ट्रेनों में से एक, पुरानी दिल्ली स्टेशन को छोड़ने की तैयारी करते हुए.

11. दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों में मारे गए लोगों के शव सड़कों से हटाते हुए. सदर बाज़ार, सब्ज़ी मंडी, पहाड़गंज और करोल बाग सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र थे.

12. किंग्सवे कैंप, दिल्ली का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर था. इसमें लगभग 3,00, 000 लोग थे. यह इतना बड़ा था कि सीमा के दूसरी ओर से अपनों से बिछड़े लोग अपने परिवारवालों को यहां मिल जाते थे. किंग्सवे कैंप वहां स्थित था जहां आज गुरु तेग बहादुर या जीटीबी नगर है.

13. दिल्ली के एक शरणार्थी शिविर का ऊपर से नज़ारा

14. चांदनी चौक
