सन 1975 में आपातकाल के समय भारत सरकार सभी राज रियासतों को मिलने वाली सरकारी पेंशन बंद कर दी थी. सरकार के इस फ़ैसले से कई राज घरानों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया था. इन्हीं में से एक बेगम विलायत महल थीं. बेगम विलायत ‘अवध’ के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की स्व-घोषित परपोती थीं.

भारत सरकार द्वारा पेंशन रोक दिए जाने और मुआवज़े की मांग को लेकर बेगम विलायत लखनऊ से दिल्ली आ गयीं. इसके बाद उन्होंने 9 साल तक अपने लाव-लश्कर के साथ पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर डेरा जमाए रखा. इस दौरान वो अवध (लखनऊ) में अपनी पैतृक संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजे की मांग करती रहीं.  

कथित तौर पर सन 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के बाद मई 1985 में उन्हें दिल्ली के चाणक्यपुरी में महल (मालचा महल) आवंटित किया गया. इसके बाद बेगम विलायत अपने दो बच्चों बेटी सकीना और बेटे अली रजा व कुछ नौकरों और 12 डाबरमैन कुत्तों के साथ इस महल में रहने लगी.

दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाक़े में स्थित ये वही जगह है जिसे आज दिल्ली की सबसे भूतिया जगह भी कहा जाता है, ये महल चाणक्यपुरी के घने जंगलों में स्थित है. इस महल को फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी शिकारगाह के तौर पर बनवाया था. अब इसे ‘विलायत महल’ भी कहा जाता है. 

हैरानी की बात तो ये थी कि इस महल में न बिजली थी और न ही पानी. फिर भी बेगम विलायत ने ख़ुद को इस महल में 10 साल के लिए क़ैद कर लिया था. इस महल जहां दिन में जाने से भी डर लगता था, बेगम विलायत भी वहां ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकी.

बताया जाता है कि सन 1993 में डिप्रेशन की वजह से बेगम विलायत ने हीरे का चूरा खाकर आत्महत्या कर ली थी. इस दौरान उसके बच्चों ने उसे पहले ‘मालचा महल’ में ही दफ़न कर दिया था. सन 1994 में खज़ाने के लालच में डर की वजह से उन्होंने अपनी मां की कब्र खोदकर उसकी लाश को जला दिया और राख को एक बोतल में भर कर महल में ही रख दिया.  

कहा जाता है कि बेगम विलायत की बेटी सकीना कभी घर से बाहर नहीं निकलती थी. इस दौरान खाने-पीने का सामान लेने के लिए बेटा रजा अली ही कभी-कभार बाहर जाया करता था. इसके बाद साल 2017 में रहस्यमय परिस्थितियों में पहले सकीना और फिर रजा अली की भी मौत हो गई.

वर्तमान में ‘मालचा महल’ में सिर्फ़ सन्नाटा पसरा रहता है और कई बार यहां से किसी के रोने और कुत्तों के भौंकने की आवाजें आती हैं, लोगों का कहना है कि कुत्ते ‘विलायत महल’ की भटकती रूह को देखकर भौंकते हैं.