हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर को लेकर भारतीय नीतियों की आलोचना करते हुए इसकी तुलना ‘प्रथम विश्वयुद्ध’ के दौरान तुर्की में हुई गैलीपोली की लड़ाई (Battle of Gallipoli) से कर दी थी. लेकिन पूरी दुनिया जानती है तुर्की के राष्ट्रपति जिस पाकिस्तान का दौरा करके आये हैं वो आज दुनिया की नज़रों में आतंकवादियों को पनाह देना वाला मुल्क बन चुका है.
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अब आप सोच रहे होंगे कि ‘गैलीपोली की लड़ाई’ की लड़ाई है क्या चीज़?
गैलीपोली अभियान (Gallipoli Campaign) प्रथम विश्व युद्ध की खाई को रोकने के लिए मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस और रूस) द्वारा एक साहसिक प्रयास था. ‘मित्र राष्ट्रों’ ने अपने मुख्य शत्रुओं, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी को परास्त करने का लक्ष्य रखा था. इस दौरान लंदन में विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व में ‘Black Sea और Aegean Sea‘ के बीच जलमार्ग पर नियंत्रण करके युद्ध से ओटोमन (तुर्क) साम्राज्य को ख़त्म करने की योजना बनाई गई थी. इसके बाद ‘मित्र राष्ट्रों’ की सेना ने तुर्की के ‘Gallipoli Peninsula’ में कदम रखा.
दरअसल, ‘प्रथम विश्व युद्ध’ के दौरान ओटोमन (तुर्क) सेना ने ‘मित्र राष्ट्रों’ की सेना के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा था. ‘गल्लीपोली’ तुर्की का वो इलाक़ा था जहां से ‘मित्र राष्ट्रों’ ने ओटोमन (तुर्क) के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाला था. इसे ‘कानाक्कले की लड़ाई’ जिसे गैलीपोली अभियान (Gallipoli Campaign) या डार्डानेल्स अभियान (Dardanelles Campaign) के नाम से भी जाना जाता है. ये ‘प्रथम विश्व युद्ध’ की सबसे अधिक रक्तपात वाली घटनाओं में से एक मानी जाती है. इसीलिए इसे इतिहास के सबसे ख़राब मोर्चों में से एक कहा जाता है.
मार्च 1915 में यूरोप में ‘प्रथम विश्व युद्ध’ के दौरान पहले विंस्टन चर्चिल ने फिर ब्रिटेन के पहले लाॅर्ड एडमिरल्टी ने तुर्की के डार्डानेल्स (Dardanelles) को नियंत्रण में लेने की योजना तैयार की. इस दौरान डार्डानेल्स पर ब्रिटेन का अधिकार हो जाने से ‘मित्र राष्ट्र’ कांस्टेंटिनोपल (इस्तांबुल) तक पहुंच गए. मित्र देशों ने इस्तांबुल पर कब्ज़ा करने के मक़सद से डार्डानेल्स के तट पर स्थित क़िलों में भारी बमबारी शुरू कर दी. लेकिन उनका ये प्रयास विफ़ल रहा. इसके बाद ‘मित्र राष्ट्रों’ ने इस ऑपरेशन में नौसेना का इस्तेमाल किया जो उस समय के सबसे बड़े नौसैनिक ऑपरेशनों में से एक था.
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जनवरी 1916 तक चली इस लड़ाई में क़रीब 8,000 ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के साथ 40,000 से अधिक ब्रिटिश सैनिक मारे गये थे. इस दौरान तुर्की के क़रीब 60,000 सैनिक मारे गये. बावजूद इसके इस युद्ध में तुर्की की जीत हुई और परिणामस्वरूप विंस्टन चर्चिल को उसके पद से हटा दिया गया और मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क के युवा नेतृत्व में ‘तुर्की’ का उदय हुआ.
आख़िर मित्र राष्ट्रों के ‘गैलीपोली अभियान’ को इतिहास के सबसे ख़राब मोर्चों में से एक क्यों कहा जाता है. इस दौरान ‘मित्र राष्ट्रों’ की हार के प्रमुख कारण क्या थे?
1- युद्ध क्षेत्र होने की वजह से ‘गैलीपोली’ में गर्म जलवायु, जवानों के सड़े हुए शरीर और गंदगी की वजह से मक्खियों के विशाल झुंड ने जन्म ले लिया था. इस दौरान सैनिकों का जीवन लगभग असहनीय हो गया था. इस दौरान मक्खियों ने उन्हें इस कदर त्रस्त कर दिया था कि सैनिकों का सांस लेना और खाना भी दुश्वार हो गया था.
2- गैलीपोली युद्ध के दौरान सैनिकों को दिया जाने वाला भोजन को लेकर उनकी काफ़ी शिकायतें थीं. हेलीकॉपटरों द्वारा जो बिस्किट्स, जैम और बीफ़ सप्लाई किया जाता था वो ज़मीन पर गिरते ही प्रदूषण की वजह खाने लायक नहीं रहता था. सीमाएं तंग होने वजह सैनिकों को समय पर राशन भी नहीं मिल पाता था.
3- धूल भरे और सूखे ‘गैलीपोली प्रायद्वीप’ पर ताज़ा पानी दुर्लभ सा था. ख़ासकर एंज़ैक कोव इलाके में सैनिकों को पानी की आपूर्ति करना सबसे कठिन प्रक्रिया थी. सैनिकों को जो पानी सप्लाई होता था उसे विदेश से समुद्र के ज़रिए गैलीपोली लाया जाता था. पर्याप्त पानी नहीं मिलने की वजह से सैकड़ों सैनिक बीमार पड़ गए थे.
4- गैलीपोली में मौसम सबसे मश्किल चुनौती थी. गर्मियों के महीनों यहां बेहद गर्मी होती थी. जबकि शरद ऋतु और सर्दियों में सैनिक अपनी वर्दी में भी कांप रहे होते थे. इस वजह से भी मित्र राष्ट्रों के सैकड़ों सैनकों को अपनी गंवानी पड़ी थी.
5- गैलीपोली में हर जगह फ़ैली गंदगी की वजह से सैनिकों को जूं के कहर से भी लड़ना पड़ा. इस दौरान सैनिक जूं-ग्रस्त त्वचा पर खरोंच करते और बीमारियों बन जाते. कपड़ों से जूं को साफ़ करना और इनसे छुटकारा पाना सैनिकों के लिए बेहद मुश्किल हो गया था.
6- गैलीपोली में शुद्ध हवा न मिलना सबसे मुश्किल काम था. युद्ध क्षेत्र होने की वजह से इस इलाके में सैकड़ों किमी तक बस सिर्फ़ बदबू ही बदबू आती थी. युद्ध में मारे गए सैनकों को दफ़नाना एक बड़ी चुनौती थी. ऐसे में सड़े-गले शवों की वजह से वातावरण पूरी तरह से दूषित हो गया था.
7- गैलीपोली में जवान कई तरह की बीमारियों के चपेट में भी आ गए थे. इनमें विशेष रूप से पेट ख़राब होना (पेचिश) सबसे प्रमुख था. इसके अलावा भी सैनिक पीलिया, अल्सर, सर्दी-खांसी जैसी बीमारियों से ग्रस्त थे.
8- गैलीपोली में शौचालय की सुविधा भी सबसे बड़ी मुसीबत में से एक थी. युद्ध क्षेत्र में शौचालय मुश्किल से ही मिलते हैं. ऐसे में जवानों को खुले में ही शौच करना पड़ता था. बावजूद इसके सैनिकों को इन्हीं कठिनाईयों के साथ जीना पड़ता था.
9- गैलीपोली प्रायद्वीप 1915 में एक दुर्गम इलाक़ा माना जाता था. ये इलाक़ा तब छोटी पहाड़ी भूमि के साथ चट्टानी ज़मीन वाला हुआ करता था. मित्र राष्ट्रों की सेना यहां के वातावरण से अनजान थी. तुर्की की सेना ने इसी चीज़ का फ़ायदा उठाकर इस युद्ध में जीत हासिल की थी.
बता दें कि प्रथम विश्व युद्ध ‘अलाइड शक्ति’ और ‘सेंट्रल शक्ति’ के बीच 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक लड़ा गया था. इस दौरान ‘अलाइड शक्ति’ रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान आदि देश थे, जबकि ‘सेंट्रल शक्ति’ में केवल 3 देश ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन (तुर्क) एम्पायर शामिल थे.
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