स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को बहुत से लोग अब भूलने लगे हैं. इनमें से कुछ के नाम तो लोगों को याद हैं पर सैकड़ों ऐसे हैं जिन्हें आज भी वो मुक़ाम नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे. उन्हीं में से एक हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) जिन्होंने कभी देश को आज़ाद करवाने के लिए अंग्रेज़ों से लोहा लिया और विदेश भ्रमण कर भारत को स्वतंत्रता दिलाने की भरसक कोशिश की.
ये जाट समुदाय से ताल्लुक रखते थे और ग़रीब लोगों के उत्थान और शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया था. आइए आज आपको इनकी कहानी भी बता देते हैं.
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गांधी जी भी थे इनसे प्रभावित
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राजा महेंद्र प्रताप सिंह मुरसान रियासत के राजा थे. वो एक महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे. माध्यमिक शिक्षा हासिल करने के बाद वो देश को आज़ाद करने में जुटे क्रांतिकारियों से प्रभावित होकर उनसे जुड़ गए. अपने राज्य में स्वदेशी अपनाने और विदेशी कपड़ों को जलाने का आंदोलन उन्होंने ही शुरू किया था. उनके चर्चे गांधी जी तक भी पहुंचे वो उनसे बहुत प्रभावित हुए.
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अंग्रेज़ों ने भगोड़ा घोषित कर जब्त की संपत्ति
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अंग्रेज़ों का मुक़ाबला करने के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने विदेशी ताक़तों से मदद लेने की ठानी. इसलिए वो कई बार विदेश दौरे पर गए, रूस, जर्मनी और जापान को भारत की मदद करने के लिए राज़ी भी कर लिया था. रूसी क्रांतिकारी व्लादिमीर लेनिन के साथ राजा महेंद्र प्रताप की बहुत अच्छी दोस्ती थी. मगर जैसे ही अंग्रेज़ों को पता चला कि वो बाहर से भारत को आज़ाद करवाने की कोशिश कर रहे हैं तो उनकी संपत्ति जब्त कर महेंद्र प्रताप सिंह को भगोड़ा घोषित कर दिया.
किया भारत की पहली निर्वासित सरकार का गठन
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देश से निर्वासित होने के बाद वो अफ़गानिस्तान पहुंचे. यहां भी इंडिया को आज़ाद करवाने की कोशिश करते रहे. 1915 में उन्होंने देश को आज़ाद करवाने के उद्देश्य से भारत की पहली अंतरिम सरकार का गठन अफ़गानिस्तान में किया. देश की इस पहली निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति वो स्वयं थे और प्रधानमंत्री उन्होंने मौलवी बरकतुल्लाह को बनाया. ऐसी ही एक सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी बनाई थी.
पंचायती राज स्थापित करने की छेड़ी मुहिम
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ख़ैर, कुछ सालों तक भारत की आज़ादी के लिए विदेश से सपोर्ट करने के बाद 1946 में वो भारत आ गए. यहां 1947 में अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने के बाद उन्होंने देश में पंचायती राज स्थापित करने यानी लोगों के हाथ में सत्ता देने की मुहिम छेड़ी. 1957 में हुए लोकसभा चुनावों हिस्सा भी लिया और मथुरा से सांसद भी बने.
शैक्षणिक संस्थानों को दिल खोलकर दान किया
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मगर जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने उन्हें अपनी सरकार में जगह नहीं दी. राजनीति में भले ही उन्हें बहुत सफ़लता न मिली हो मगर समाज सेवक के रूप में महेंद्र प्रताप सिंह ने ख़ूब ख्याति बटोरी. उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों को दिल खोलकर दान किया. यही नहीं जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन रही थी तब उन्होंने विश्वविद्यालय को क़रीब 4 एकड़ ज़मीन दान दी थी.
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पश्चिमी यूपी में लगातार उनके नाम पर विश्वविद्यालय बनाने की मांग उठती रही है ताकि आने वाली पीढ़ी उनके बलिदान को याद रख सके. इसी संदर्भ में पीएम मोदी ने बीते 14 सितंबर को अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया था.