2002 में एक फ़िल्म आई थी ‘द लेजेंड ऑफ़ भगत सिंह’. अजय देवगन, सुशांत सिंह, फ़रीदा जलाल, अमृता राव जैसे कलाकारों की ये फ़िल्म सभी को पसंद आई थी. अंदर तक हिला देने वाले सीन्स और परफ़ॉर्मेंस. इस फ़िल्म में ही कॉलेज प्रोग्राम में गोरों के सामने भगत सिंह और साथी ‘पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल होए…’ गाना गाते हैं, नाचते हैं और पूरा ऑडिटोरियम झूम उठता है. सुखविंदर सिंह की आवाज़ में ये गाना सुनने में ग़ज़ब लगता है.
इससे पहले ये गाना 1965 में आई फ़िल्म ‘शहीद’ में मोहम्मद रफ़ी ने गाया था. बोल कुछ अलग, धुन अलग, पिक्चराइज़ेशन अलग. लेकिन दोनों गानों को सुनकर जो भावनाएं मन में उमड़ती हैं वो एक जैसी हैं.
कभी सोचा है ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ वाक्यांश कहां से आया?
Tribune India के एक लेख के अनुसार, अंग्रेज़ों ने पंजाब लैंड कॉलोनाइज़ेशन एक्ट और बारी दोआब कैनल एक्ट बनाया था. इस एक्ट के तहत नहर बनाने के बहाने से किसानों की ज़मीन हथिया ली जाती और उन पर मनमाने कर लगाए जाते.
अंग्रेज़ी हुक़ुमत ने क्रांति ख़त्म करने की कोशिश की
अंग्रेज़ी हुक़ुमत भला चुप कैसे बैठती? सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ऑफ़ इंडिया, Lord Morley ने ब्रिटिश संसद में कहा कि पंजाब में कुल 33 मीटिंग हुईं, जिनमें से 19 में मुख्य वक़्ता थे, सरदार अजीत सिंह. अजित सिंह अपनी बातों से जनता को बांध लेते थे और लोग उनकी बात सुनते थे. 21 अप्रैल, 1907 को उनके द्वारा दिया गया भाषण ‘देशद्रोही’ माना गया. लाला लाजपत राय ने भी इनमें से कुछ मीटिंग में भाषण दिए.
कौन थे क्रांतिकारी अजीत सिंह?
अजीत सिंह का जन्म, 23 फरवरी, 1881 को खटकर कलां(तब जालंधर ज़िले) में हुआ. अर्जन सिंह, किशन सिंह (भगत सिंह के पिता), अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह देशभक्त थे.
दिसंबर 1907 में अजित सिंह और सूफ़ी अंबा प्रसाद सूरत के कांग्रेस सेशन में शामिल हुए. यहां पर बाल गंगाधर तिलक ने अजीत सिंह को ताज पहनाया और ‘पंजाब किसानों का राजा’ घोषित किया.
देश से बाहर जाने को हुए मजबूर
अजीत सिंह को आभास हो गया था कि उन्हें ग़लत केस में फंसाया जा सकता है. सूफ़ी अम्बा प्रसाद के साथ अजीत सिंह, कराचि से जहाज़ द्वारा ईरान चले गये. उन्होंने मिर्ज़ा हसन ख़ान नाम रखा और 1914 तक ईरान, तुर्की, फ़्रांस, स्विट्जरलैंड में रहे. इसके बाद उन्होंने 18 साल (1914-1932) ब्राज़ील में बिताये. वे जहां भी गये वहां के लोगों को भाषाएं सिखाकर गुज़र-बसर किया.
निर्वासन में रहकर भी देश के लिए काम करते रहे
देश के बाहर भी अजीत सिंह ने देश के लिए काम जारी रखा. वे इटली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिले और 11 हज़ार सैनिकों की टुकड़ी, आज़ाद हिन्द लश्कर बनाया.
आज़ाद भारत में ली आख़िरी सांस
जुलाई 1947 को वे उपचार के लिए डलहौज़ी पहुंचे लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया. पंडित नेहरू का ‘Tryst with Destiny’ भाषण सुनने के बाद आज़ाद भारत में उन्होंने आख़िरी सांस ली.